मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं कुपोषित बच्चे
श्रावस्ती : बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए उनके शरीर में पोषक की पर्याप्त उपलब्धता जरूरी है।
श्रावस्ती : बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए उनके शरीर में पोषक की पर्याप्त उपलब्धता जरूरी है। कुपोषण का प्रभाव बच्चों के स्वास्थ्य व विकास पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। कुपोषित बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत नहीं हो पाते हैं। इसका प्रभाव उनके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पड़ता है। काफी संख्या में बच्चों की कुपोषण से मौत भी हो जाती है।
कठिन शारीरिक श्रम करने वाले लोगों को 2400 कैलोरी तथा कम शरीरिक श्रम करने वाले लोगों को 2100 कैलोरी पोषण की जरूरत प्रतिदिन होती है। गर्भवती महिलाओं में पोषण व खून की कमी का प्रभाव उनके बच्चों पर पड़ता है। प्रसव के बाद बच्चे कुपोषित होते हैं। इससे उनकी मौत हो जाती है। मुश्किल से जो बच्चे बच पाते हैं, उन्हें पोषण युक्त न हो पाने पर जीवन भर जिंदगी और मौत के बीच जूझना होता है। शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से कुपोषित बच्चों को बीमारियां आसानी से घेर लेती हैं। इसके अलावा कुपोषण विकास के अन्य कई स्तर पर बच्चों को प्रभावित करता है। संयुक्त जिला चिकित्सालय भिनगा की महिला चिकित्सक डॉ. दीप शिखा मिश्रा कहती हैं कि कुपोषण के चलते बच्चों का वजन कम हो जाता है। उम्र के हिसाब से वजन कम होना शरीर की दुर्बलता को दिखाता है। उन्होंने बताया कि कुपोषण का प्रभाव लंबाई पर भी पड़ता है। शरीर में पोषक तत्वों की कमी के चलते कई बच्चे ठिगने रह जाते हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप कुमार कहते हैं कि छह माह तक बच्चों को मां का दूध जरूर पिलाना चाहिए। इसके बाद पोषण के लिए आहार की मात्रा तय है। सही ढंग से बच्चों को आहार न मिलने पर कुपोषण की स्थिति बनती है। इसका प्रभाव वजन, लंबाई और मानसिक स्तर पर भी पड़ता है। काफी हद तक यह संभावना रहती है कि कुपोषित बच्चे मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं।