श्रावस्ती में लखनऊ की तरह मिलेगा जेई-एईएस का इलाज
तैयारियों के मामले में टॉप थ्री में है संयुक्त जिला चिकित्सालय
भूपेंद्र पांडेय, श्रावस्ती : दिमागी बुखार के मरीजों के लिए खबर अच्छी है। इससे होने वाली मौतों पर अब अंकुश लग सकेगा। बस मर्ज बढ़ने से पहले इलाज के लिए रोगी को संयुक्त जिला चिकित्सालय भिनगा पहुंचना होगा।
जी हां! जेई (जापानी इंसेफेलाइटिस) व एईएस(एक्यूट इंसेफेलाइटिस) के इलाज के लिए संयुक्त जिला चिकित्सालय भिनगा में लखनऊ की तरह इलाज की मुकम्मल व्यवस्था की गई है। जांच के लिए संसाधनों की उपलब्धता के साथ चिकित्सक व आवश्यक दवाओं का भी पर्याप्त स्टॉक है। जेई-एईएस के इलाज की तैयारियों के मामले में जिला अस्पताल श्रावस्ती प्रदेश की टॉप थ्री रैंकिग में शामिल है।
जेई-एईस एक प्रकार की गंभीर बीमारी मानी जाती है। इससे पीड़ित लोगों की मौत होने की संभावना सबसे अधिक होती है। यह बीमारी अलग-अलग कारणों से होती है। प्रदेश सरकार बीमारी पर अंकुश लगाने के साथ पीड़ितों को तत्काल इलाज उपलब्ध कराने के लिए प्रयत्नशील है। इसके लिए अस्पतालों को हमेशा तैयार रहने को कहा गया है। जिले स्तर पर तैनात जेई-एईएस कार्यक्रम के जिला समंवयक अस्पताल में जांच के लिए मशीन की उपलब्धता, क्रियाशीलता, जीवन रक्षक दवाओं व सहयोगी दवाओं की उपलब्धता समेत अन्य बिदुओं पर अपनी नियमित रिपोर्ट देते हैं। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एपी भार्गव ने बताया ताजा रैंकिग में संयुक्त जिला चिकित्सालय भिनगा को टॉप थ्री में शामिल किया गया है। यहां की तैयारियों को लखनऊ के समानांतर माना गया है। इनसेट पांच प्रकार की होती है जांच किसी भी व्यक्ति को तेज बुखार होने पर पांच प्रकार की जांच होती है। इसमें डेंगू, चिकनगुनिया, जेई, मलेरिया, स्क्रपटाइफस की जांच शामिल है। इनमें से किसी भी प्रकार का बुखार दिमागी बुखार का रूप ले सकता है। इस जांच के लिए जिला अस्पताल भिनगा में मशीन तो थी तो लंबे समय से खराब पड़ी थी। इसकी वजह से इलाज में समस्या आती थी। अक्टूबर माह में यह मशीन बन गई है। अब जिला अस्पताल इलाज के लिए हर प्रकार से तैयार है। इनसेट चूहा व छछूंदर की किलनी से होता है दिमागी बुखार
जेई-एईएस कार्यक्रम के जिला समंवयक सोएब जैदी ने बताया कि चूहा व छछूंदर को लगने वाली किलनी काफी खतरनाक होती हैं। यह किलनी बच्चों को काट लें तो दिमागी बुखार हो जाता है। दिमागी बुखार का यह सबसे गंभीर स्वरूप होता है। पीड़ित को इससे बचाने के लिए समय से इलाज उपलब्ध कराना जरूरी होता है।