बाल श्रमिकों को जंगल में मिलता है रोजगार, मजदूरी में लकड़ी
संसू जमुनहा(श्रावस्ती) बाल श्रम कानून की नजरों में अपराध है लेकिन वन विभाग इससे शायद इत्तेफा
संसू, जमुनहा(श्रावस्ती): बाल श्रम कानून की नजरों में अपराध है, लेकिन वन विभाग इससे शायद इत्तेफाक नहीं रखता है। आलम यह है कि जंगल में बच्चों से मजदूरी कराई जाती है। मेहनताने के रूप में उन्हें सूखी लकड़यिों को काट कर बेचने की छूट मिलती है। यह धंधा वर्षों से फलफूल रहा है।
मल्हीपुर थाना क्षेत्र के ककरदरी जंगल में बाल श्रम आम बात है। जंगल में झाड़ी साफ कराने के लिए आसपास के गांवों के बच्चों व किशोरों को मजदूरी पर रखा जाता है। पूरे दिन काम करवाने के बाद मजदूरी के बदले इन बच्चों को एक और जोखिम भरा काम पकड़ा दिया जाता है। जंगल में लगे पेड़ों पर चढ़कर बच्चे सूखी टहनियों को काटते हैं। इसे साइकिल पर लाद कर आसपास के बाजारों में लेकर जाते हैं। यहां इस लकड़ी को मजदूरी से थोड़े अधिक रुपये मिल जाते है। इस लालच में बच्चे अगले दिन फिर काम करने के लिए जंगल पहुंच जाते हैं। राप्ती बैराज के पास साइकिल पर लकड़ी लाद कर निकल रहे बच्चों से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जंगल में मजदूरी किया है। उसके बदले लकड़ी मिली है।
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जंगल में मजदूरी के बदले लकड़ी दिए जाने का कोई नियम नहीं है। फिलहाल वन क्षेत्र में मजदूरी जैसा कोई काम भी नहीं है और इसके लिए बजट की कोई व्यवस्था अभी नहीं है। जंगल में होने वाले काम के बदले मजदूरी देने के लिए बजट मिलता है। ककरदरी वन क्षेत्र में यदि बाल श्रम कराए जाने की पुष्टि होती है तो संबंधित पर कठोर कार्रवाई होगी।
-एपी यादव, प्रभागीय वनाधिकारी, श्रावस्ती।