बुद्धं शरणं गच्छामि की मधुर ध्वनि से गुंजायमान होगा तीर्थ क्षेत्र
वर्षावास काल में चार माह तक बौद्ध तीर्थ क्षेत्र श्रावस्ती में जुटेंगे बौद्ध अनुयायी एक ही स्थान पर रहकर प्रार्थना में लीन होंगे बौद्ध भिक्षु व उपासक
श्रावस्ती : अंतरराष्ट्रीय तीर्थ क्षेत्र श्रावस्ती वर्षाकाल में जैन मुनियों व बौद्ध भिक्षुओं के आध्यात्मिक जागरण का साक्षी बनेगा। तीर्थ क्षेत्र में वर्षावास के चार माह बौद्ध भिक्षु व साधु, सन्यासी एक ही स्थान पर रहकर ध्यान साधना में लीन होकर आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के साथ आमजन को धार्मिक वृत्ति अपनाकर स्वस्थ समाज की स्थापना के प्रति जागरूक करेंगे।
बौद्ध चितक विजय नाथ द्विवेदी ने बताया कि लगभग सभी भारतीय परंपराओं में वर्षाकाल में चार माह साधु, सन्यासियों को एक स्थान पर रहकर धर्म साधना करने का विधान है। बौद्ध परंपरा में आषाढ़ पूर्णिमा से अश्विन पूर्णिमा तक वर्षावास काल माना जाता है। इस दौरान बौद्ध भिक्षु, उपासक व साधक बौद्ध विहार या एक निश्चित स्थान पर रुककर ध्यान साधना व ज्ञानार्जन करते हैं। भंते विमल तिस्य कहते हैं कि बौद्ध धर्म में वर्षावास संकल्प का बहुत महत्व है। बुद्ध विहार में आसपास व सुदूर क्षेत्र के उपासक बौद्ध संघ के सानिध्य में रहकर बुद्ध उपदेश का श्रवण, अध्ययन व पालन कर वर्षावास का संकल्प पूरा करते हैं। भगवान बुद्ध ने अपने जीवन में सर्वाधिक 24 वर्षावास श्रावस्ती के जेतवन में व पूर्वाराम में एक वर्षावास व्यतीत किया था। इसी के चलते बौद्ध धर्म में श्रावस्ती का विशेष महत्व है। देश-विदेश के बौद्ध मतावलंबी वर्षावास में श्रावस्ती में ठहर कर ध्यान साधना करते हैं। श्रीलंका मंदिर के अधिष्ठाता भंते श्रद्धा लोक महाथेरो कहते हैं कि कोविड के कारण दो वर्ष से विदेशी तीर्थ यात्रियों का आवागमन बंद है, लेकिन स्थानीय बौद्ध भिक्षु बौद्ध मठों में रहकर ध्यान साधना व बौद्ध साहित्य पर अध्ययन चितन करेंगे। श्रावस्ती के श्रीलंका मंदिर, इंडिया मंदिर समेत अन्य मठ-मंदिरों में बौद्ध भिक्षु आषाढ़ पूर्णिमा से अश्विन पूर्णिमा तक बौद्ध साहित्य पर चितन मनन कर आध्यात्मिक ऊर्जा अर्जित करने के साथ अपने आसपास युवा पीढ़ी में सामाजिक एकता व राष्ट्रीय उत्थान का भाव जागृत करेंगे।