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बुलाती है सोहेलवा की मोहक छटा

By Edited By: Published: Mon, 02 May 2011 11:48 PM (IST)Updated: Wed, 16 Nov 2011 04:44 PM (IST)
बुलाती है सोहेलवा की मोहक छटा

श्रावस्ती, दुधवा और कतर्निया की तरह ही सोहेलवा वन्य जीव विहार की नैसर्गिक छटा सैलानियों का स्वागत करने को तैयार हैं। बहते पहाड़ी नाले और शिवलिक पहाड़ियों का मनोरम दृश्य इसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे हैं। बाघ, गुलदार, भालू, हिरन या फिर चीतल, सभी जंगल में घूमते मिल जाएंगे। नेपाल की तलहटी से तराई के मैदानी इलाके तक फैला सोहेलवा वन प्रभाग को कुदरत से बेपनाह खूबसूरती की दौलत मिली है। सैनालियों की सुविधा के अनुरूप इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए टूरिज्म प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। शासन में विचाराधीन यह परियोजना यदि स्वीकृत हो जाती है तो इस प्राकृतिक धरोहर में चार चांद लगना तय है।

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सोहेलवा वन प्रभाग श्रावस्ती और बलरामपुर जिलों को समेट कर भारत-नेपाल अंतराष्ट्रीय सीमा पर 452 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस वन्य जीव विहार के उत्तर में नेपाल के वन और पहाड़ियां वन क्षेत्र की भौगोलिक दशा को जहां दुर्गम और विहंगम बनाती हैं, वहीं चट्टानों पर रेत पटी मिट्टी की परतें वनस्पतियों के फैलाव को भी रोकती हैं। कतर्निया और दुधवा के बाद सोहेलवा ही तराई का एक मात्र ऐसा वन क्षेत्र है जहां वन्य जीवों का प्राकृतवास है।

मनोहारी दृश्य वाले इस वन क्षेत्र में साल, शीशम, खैर, सागौन, धौ, असना, जामुन, बहेड़ आदि वन प्रजातियां भी भरी पड़ी हैं। रायल बंगाल टाइगर के प्रकृतिवास के लिए भी सोहेलवा जाना जाता है। वर्ष 1988 में घोषित सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग का गठन 1998 में किया गया। पर्यटन की अपार संभावनाएं होने के बाद भी यह वन क्षेत्र दुधवा और कतर्निया की तर्ज पर विकसित नहीं हो पा रहा है, जबकि पीलीभीत के बाद भालुओं की तादाद सोहेलवा के पूर्वी-पश्चिमी व बनकटवा क्षेत्र में सबसे ज्यादा है। साल के छह महीने हाथियों के झुंड यहां प्रवास करते हैं जो नेपाल के जंगलों से सैर करते हुए सोहेलवा में प्रवेश करते हैं और महीनों तक मेहमान के तौर पर रहते हैं। सोहेलवा के रेंजर ओपी मिश्रा बताते हैं कि यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। इसे पर्यटन मानचित्र में शामिल कराने का प्रयास किया जा रहा है।

यहां ठहरें : सोहेलवा वन प्रभाग में आधा दर्जन वन विश्राम भवन हैं। भांभर में बीरपुर, रामपुर में जरवा, तुलसीपुर रेंज में जनकपुर, बरहवा रेंज में नंद महरा, बनकटवा में पिपरा तथा पूर्वी सोहेलवा में सोहेलवा डाक बंगले में ठहर सकते हैं।

बुकिंग : डाक बंगले प्रभागीय वनाधिकारी कार्यालय बलरामपुर से बुक होते हैं। इसके अलावा ठहरने के लिए पांच टूरिस्ट हट भी बनाए गए हैं। विभाग के वाचर और अन्य कर्मचारी ही सैलानियों के लिए गाइड का काम करते हैं। यात्रा के दौरान आग्नेयास्त्र ले जाना प्रतिबंधित है।

कैसे पहुंचे : सोहेलवा वन्यजीव प्रभाग श्रावस्ती और बलरामपुर की सीमा में आता है। श्रावस्ती जिला मुख्यालय भिनगा से सोहेलवा की दूरी 30 किमी है, जबकि बलरामपुर से इसकी दूरी करीब 70 किमी है। सोहेलवा तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से भिनगा होते हुए सिरसिया से तथा बलरामपुर से तुलसीपुर होते हुए सोहेलवा वन क्षेत्र तक पहुंच सकते हैं।

प्रमुख वन्यजीव : करीब 15 बाघ, 50 गुलदार, 300 चीतल, 150 लकड़बंघा के अलावा हिरन, भालू, भेड़िया, खरगोश, गीदड़, जंगली सुअर, सांभर, बंदर, लंगूर, अजगर, ऊदबिलाव, काला व भूरा तीतर, बटेर, कबूतर, धनेश, नीलकंठ, कठफोड़वा, बुलबुल, मैना, चील, कोयल, उल्लू आदि पक्षियों का वास पर्यटकों को लुभाने के लिए मौजूद हैं।

प्राकृतिक स्थल : सोनपथरी आश्रम, रजिया ताल, विभूतिनाथ मंदिर, पहाड़ी नालों की नैसर्गिक बनावट और शिवलिक पहाड़ियों की खूबसूरत छटा

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