संस्कारों की फसल बोएं..'भविष्य' की फसल काटें
शामली : नई रोशनी और पुरानी में फर्क सिर्फ इतना है, उन्हें किश्ती नहीं मिलती इन्हें साहि
शामली : नई रोशनी और पुरानी में फर्क सिर्फ इतना है,
उन्हें किश्ती नहीं मिलती इन्हें साहिल नहीं मिलता।
परवरिश का एक सबसे बड़ा हिस्सा है संस्कार। संस्कार ही वह नींव है जिस पर बच्चा अपने भविष्य रूपी कमरे का निर्माण करता है। लेकिन कितने बच्चे हैं जिन्हें अपनी मनचाही मंजिल मिलती है और जिन्हें नहीं मिलती उसके लिए जिम्मेदार कौन है? ख्वाहिशें, परवरिश, समाज या शिक्षक। मेरा मानना है इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ हालात हैं। जैसे एक उदाहरण ले, हर बच्चे को सिखाया जाता है बचपन से सच बोलो, बड़ों का सम्मान करो ओर होना भी यही चाहिए। लेकिन जैसे ही बच्चा इन सब संस्कारों को प्रयोग द्वारा अपनाना चाहता है तो अपने आप को दोराहे पर खड़ा पाता है। हम हर पल इतना झूठ बोलते हैं कि हमें पता ही नहीं चलता कि हम झूठ बोल रहे हैं। जैसे आप मोबाइल पर, होते हैं कहीं और, और बताते हैं कहीं और, क्या ये झूठ नहीं है? आज बच्चा झूठ का सहारा लेकर अपने आप को विषम परिस्थिति में सुरक्षित कर लेता है। उसके लिए अब झूठ, झूठ नहीं, ये शब्द स्मार्ट टॉक बन चुका है। क्या उसे परवरिश में ये सब सिखाया गया है? शायद नहीं। आज परिवार विघटित हो रहे हैं। एकांकी परिवार का चलन है कोई पारिवारिक बंधन में नहीं बंधना चाहता। बड़ों के प्रति अपने फर्ज को नहीं अंजाम देना चाहता। दूसरी ओर आज इस दिखावे और महगाई के दौर में माता-पिता दोनों कामकाजी हैं, और बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। पर्याप्त स्नेह एवं समय न मिलने के कारण बच्चे जिद्दी होते जा रहे हैं और मनमानी करने लगते हैं। माता-पिता भी बच्चो की ख्वाहिशों का पूरा करके अपने प्रेम की इतिश्री कर देते हैं, मगर सामाजिक जिम्मेदारियां और नैतिक मूल्यों का उत्थान, उत्तम नागरिक बनने की ओर प्रयास इन सबका क्या? हमें इन सबके लिए भी समय निकालना होगा। उनके साथ खेलने, शिक्षा में सहायता करना, अच्छे-बुरे की तमीज सिखाना, उदार भावनाओें का संचालन करना व बच्चों के ह्रदय में प्रेम की भावना उत्पन्न करना भी सिखाना होगा, ताकि एक मजबूत समाज बनाया जा सके ओर घटते जीवन मूल्य को उभारा जा सके। आज के प्रतियोगी परिवेश में माता पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा सफलता के शिखर पर पहुंचे। और बच्चे शिखर को बिना किसी मेहनत के छू लेना चाहते हैं। जिससे उनमें सहनशीलता का पतन हो रहा है छोटी-छोटी ख्वाहिशों के पूरा न होने पर बच्चे अपना धैर्य खो बैठते हैं और मां बाप भी उनकी उम्मीदों व अपनी अपेक्षाओें को पूरा करने के लिए प्रलोभन पर प्रलोभन दिए जाते हैं। कई बार तो समझ इतनी पंगु हो जाती है कि समझ में नहीं आता कि क्या ठीक है क्या नहीं? विश्व पटल पर भारत की एक विशेष पहचान थी आज पश्चिमी सभ्यता की नकल करते-करते हमारे देश के आधुनिक शहरों से लेकर गांवों तक का भी स्वरूप बदल रहा है। 1991 से लेकर आज तक देश में हो रहे परिवर्तन का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है। आर्थिक उन्नति ने देश के युवाओें को जहां नये-नये मौके दिये हैं वहीं परिवार में हो रहे विघटनों ने विषम परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता में ह्रास को भी साफ तौर से देखा जा सकता है। संयुक्त परिवारों में पले-बढ़े बच्चों को प्रंबधन की शिक्षा मिल जाती थी। कम आय होने के बाद भी समाज में एक सामंजस्य व सद्भाव दिखता था। आज पूरे देश में हर एक घंटे में एक बच्चा आत्महत्या कर रहा है और जरूरी नहीं है कि ये वे बच्चे हैं जो फेल हो गए हों परंतु इनमें ज्यादातर बच्चे ऐसे है। जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए हैं परंतु इनकी आंतरिक शक्ति इतनी कमजोर होती है कि ये बच्चे अपने आप को किसी एक तरह की चीज के लिए तैयार कर रहें होते हैं और यदि ऐसा न हो तो फिर इस तरह के कदम उठाने में संकोच नहीं करते। आज देश मे हर क्षेत्र में क्रांति हो रही है। हरित क्रांति से लेकर संचार क्रांति ने जहां देश को विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित किया है वही संस्कारों में हो रहे ह्रास के कारण समाज में हो रही घुटन को महसूस किया जा सकता है। बढ़ती जरूरतों के कारण परिवारों का पलायन और पलायन के कारण उपजे आर्थिक संकट से निपटने के लिए परिवार के सभी व्यक्तियों को ऐसा कुछ करना पड़ता है। इसके कारण किसी के भी पास अपने आने वाली पीढ़ी के लिए समय नहीं है। संस्कार जो किसी सभ्यता का मूल है। उसमें हो रही कमी एक बेहद ¨चता का विषय है और किसी भी सभ्य समाज की परिकल्पना करनी हो तो वह केवल भौतिक शिक्षा से संभव नहीं है। व्यक्ति के संपूर्ण व समग्र विकास के लिए हमें तीनों तरह की शिक्षा-यानि भौतिक शिक्षा जिससे व्यक्ति अपना जीवन चलाने के लिए कोई काम करने के लिए कुशलता हासिल कर ले। संस्कार रहित शिक्षा किसी काम की नहीं। अत: हमें शिक्षा प्रदान करते समय ध्यान रखना होगा कि हम आने वाली पीढि़यों को यदि मानव मूल्यों से जोड़कर रखना चाहते हो, तो उन्हें संस्कारों की शिक्षा दें और संस्कारों की पहली व अंतिम पाठशाला हमारा घर है।
- आशु त्यागी, प्रधानाचार्य
स्कॉटिश इंटरनेशल स्कूल, शामली