आसमान में छाया स्मॉग, घुटन के साथ उखड़ी सांस
दीपावली के बाद प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो चुका है। आसमान में स्मॉग की परत छाई हुई है। जिससे परेशानी निरंतर बढ़ रही है। इसी कारण जहां आंखों में जलन की समस्या है वहीं बच्चों और बुजुर्गों के साथ ही खासकर हृदय रोगियों को दिक्कत हो रही है। घुटन के साथ ही सांस के मरीजों की सांसें उखड़ रही है।
शामली, जेएनएन। दीपावली के बाद प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो चुका है। आसमान में स्मॉग की परत छाई हुई है। जिससे परेशानी निरंतर बढ़ रही है। इसी कारण जहां आंखों में जलन की समस्या है, वहीं बच्चों और बुजुर्गों के साथ ही खासकर हृदय रोगियों को दिक्कत हो रही है। घुटन के साथ ही सांस के मरीजों की सांसें उखड़ रही है।
दीपावली का पर्व शहर तथा आसपास क्षेत्रों में बडे़ ही धूमधाम के साथ मनाया गया। हर गली, मोहल्ले और सड़कों पर धुआं फैला रहा। आतिशबाजी के बाद से वायु प्रदूषण में एकाएक बड़े स्तर पर इजाफा हो गया है।
हवा जहरीली होने से दमा से पीड़ित लोगों की जान पर बन आई है। बुधवार को सुबह सवेरे से स्मॉग आसमान मे छाया रहा। 11 बजे के बाद हल्की धूप जरूर निकली, लेकिन यह अधिक देर नहीं रह सकी। इसके कारण आंखों में जलन महसूस होने के साथ दम घुटता रहा। लोगों का कहना था कि दीवाली पर्व के बाद वातावरण प्रदूषित हो गया है, इसका असर मौसम व दमा मरीजों पर पडे़गा। अनुमान लगाया जा रहा है कि एक दो दिन में इससे निजात मिल सकती है।
प्रदूषण के ये हैं कारण
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संजय भटनागर का कहना है कि प्रदूषण के मुख्य रूप से तीन कारण नजर आ रहे हैं। दीपावली पर पटाखें खूब जलाए गए और हरियाणा-पंजाब में पराली जलाने से भी प्रदूषण बढ़ा है। साथ ही इस वक्त हवा में नमी काफी अधिक है। ऐसे में प्रदूषित धुआं है, वह ऊपर नहीं जा पा रहा है।
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सांस रोगियों की बढ़ी परेशानी
सीएचसी शामली के चिकित्सा अधिकारी डॉ. दीपक कुमार का कहना है कि वातावरण में धुंध की नजर आने वाला जहरीला धुआं है। इससे सांस रोगियों को काफी दिक्कत हो सकती है। साथ ही लापरवाही बरतने पर अन्य लोगों को भी सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। अस्थमा और टीबी के रोगी हो सके तो घर से निकलने में परहेज करें। अगर जरूरी काम है तो मास्क लगाना कतई न भूलें। हृदय को भी ये प्रदूषण नुकसान पहुंचाने वाला है। दरअसल, जब फेफड़ों में प्रदूषित हवा जाएगी तो हृदय भी प्रभावित होगा। प्रयास करें कि तरल पदार्थ अधिक मात्रा में लें। हर एक घंटे बाद पानी पीते रहें और मसालेदार भोजन का कम ही सेवन करें। घर के भीतर योग और व्यायाम भी करना अच्छा रहेगा। बाहर दौड़ने, टहलने से अभी परहेज ही करें। उन्होंने बताया कि सीएचसी की ओपीडी में सांस लेने में दिक्कत होने के काफी मरीज आए। इनका यही कहना था कि दो दिन से ही परेशानी बढ़ी है। इनमें अधिकांश बुजुर्ग थे।
बच्चों का विशेष ध्यान रखें
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. वेदभानु मलिक ने बताया कि बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और फेफड़े भी कमजोर होते हैं। इस वक्त स्मॉग बहुत ज्यादा बढ़ गया है। ऐसे में छोटे बच्चों को घर के अंदर ही रखें। इस प्रदूषण से आंखों और त्वचा भी नुकसान होता है। बाहर जाते वक्त आंखों पर चश्मा लगाना न भूलें और चेहरे को मास्क और हाथों को किसी कपड़े से ढककर रखें। स्मॉग के कारण आंखों में जलन और त्वचा में एलर्जी हो सकती है।
एक-दो दिन में मिल सकती है राहत
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुजफ्फरनगर के सहायक वैज्ञानिक अधिकारी डीसी पांडे का कहना है कि प्रदूषण काफी अधिक है और हवा बहुत कम है। मौसम विभाग के अनुसार एक-दो दिन में हवा बढ़ सकती है और इसके बाद एकदम से राहत मिल जाएगी।
पटाखों का धुआं व पराली जलना बड़ी वजह: ईश्वरपाल
पर्यावरणविद ईश्वरपाल सिंह फौजी कहते है कि दीपावली के बाद जहां पटाखों का धुआं आसमान में फैला है, वहीं पराली जलाने के कारण उठा धुआं भी इसका बड़ा कारण है। स्मॉग की परत आसमान में छाई है। तेज हवा चलती है तो इससे राहत मिलेगी। अभी कुछ दिन और इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने अपील की है कि अब भी लोगों को समझदारी बरतते हुए पर्यावरण को बचाने के लिए काम करना चाहिए, वरना आने वाले समय में स्थिति भयावह होने वाली है। इसका खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ेगा। आने वाली पीढि़यां भी हमें माफ नहीं करेगी।
नहीं बदला स्कूलों का वक्त
प्रदूषण का सबसे अधिक असर सुबह और शाम के वक्त होता है। ऐसे में स्कूली बच्चों को प्रदूषण से बचाना जरूरी है, लेकिन अभी तक स्कूलों के समय में बदलाव की कोई गाइडलाइन नहीं आई है। अभिभावक स्कूलों का वक्त बदलने की मांग कर रहे हैं। अभिभावक अर्चना चौधरी, प्रमोद कुमार, शिवानी शर्मा का कहना है कि वायु प्रदूषण से बच्चे बीमार हो सकते हैं। ऐसे में शिक्षा विभाग और प्रशासन को प्रभावी कदम उठाने चाहिएं। वहीं, बेसिक शिक्षा विभाग के जिला समन्वयक सुधीर कुमार ने बताया कि अभी तक स्कूलों के समय में बदलाव की कोई गाइडलाइन शासन या प्रशासन स्तर से नहीं प्राप्त हुई है।