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कैराना में भगवा कुनबे का बिखराव, रणनीति कारगर साबित नहीं हुई

भाजपा के मिशन-2019 पर कैराना उपचुनाव का परिणाम बड़ा बैरियर है। इसे लांघना भाजपा के लिए आसान नहीं है। कैराना की हार की प्राथमिक समीक्षा में भाजपाई अब कुनबे की रार पर मुखर हैं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 01 Jun 2018 12:16 PM (IST)Updated: Fri, 01 Jun 2018 01:49 PM (IST)
कैराना में भगवा कुनबे का बिखराव, रणनीति कारगर साबित नहीं हुई
कैराना में भगवा कुनबे का बिखराव, रणनीति कारगर साबित नहीं हुई

शामली [लोकेश पंडित]। लोकसभा चुनाव 2014 व प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2017 की बंपर जीत के बाद भाजपा उपचुनावों में लगातार हार से बुरी तरह फंस गई है। इसके चलते भाजपा के मिशन-2019 पर कैराना उपचुनाव का परिणाम बड़ा बैरियर है। इसे लांघना भाजपा के लिए आसान नहीं है। कैराना की हार की प्राथमिक समीक्षा में भाजपाई अब कुनबे की रार पर मुखर हैं। कैडर वोट व स्थानीय नेताओं को तवज्जो न देकर जिस तरह बाहरी नेताओं पर विश्वास जताया, उससे भी जीत की रणनीति कारगर साबित नहीं हुई।

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सियासी दुनियादारों का यह भी मानना है कि भाजपा का फोकस जाट मतों पर ज्यादा रहा, जबकि वो चुनाव के बहाव का अंदाजा नहीं लगा पाए। परिणाम साफ बताते हैं कि मुस्लिम, दलित व जाटों की एकजुटता ने जीत में अहम भूमिका निभाई है। कैराना उपचुनाव में भाजपा ने अपने परम्परागत वोट, गुर्जर व पिछड़ों पर दांव लगाया था। इस समीकरण में भाजपा को जाट वोट असहज कर रहे थे। 2014 के चुनाव में जाट, दलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, गुर्जर और परम्परागत वोट से हुकुम सिंह ने साढ़े पांच लाख वोट का आंकड़ा पार किया था। उपचुनाव में भाजपा अनुसूचित जाति के वोट बैंक का नुकसान मानकर चल रही थी। हालांकि उम्मीद थी जाट, पिछड़ा व अतिपिछड़ा उसे मोदी-योगी के नाम पर मिल जाएगा।

जाट वोटों को अंत तक भाजपा अपना मानती रही। पार्टी ने जाटों को साधने की तमाम कोशिश की। भाजपा का यह प्रयास उसके लिए आत्मघाती हो गया। अत्यधिक तवज्जो देने से पार्टी में ही अंतर्कलह पैदा हो गई। पार्टी के नेता पुरानी राजनीतिक अदावत पर एक-दूसरे को हराने में ही लग गए। वोट से ज्यादा कद की लड़ाई पूरे चुनाव में लड़ी गई। कोशिश किसी का कुर्ता ऊंचा करने और अपना उजला करने की रही। इस जंग में बाहरी बनाम स्थानीय ने आक्रोश को जन्म दिया। मतदान के दौरान सन्नाटा इसी का परिणाम है। गन्ना भुगतान को लेकर किसानों की नाराजगी ने इस आग में घी का काम किया।

विपक्ष का साइलेंट प्रचार

उपचुनाव के परिणाम बताते हैं, महागठबंधन ने साइलेंट चुनाव लड़ा। इसके तहत मोदी-योगी का जवाब किसी बड़े नेता की सभा से नहीं दिया। महागठबंधन के बड़े नेताओं ने बयानबाजी तक नहीं की। बहनजी चुप रहीं, राहुल गांधी-अखिलेश भी शांत रहे। सभाओं से ज्यादा डोर-टू-डोर संपर्क को तवज्जो दी। गठबंधन रणनीतिक रूप से सपा मुस्लिम, बसपा दलित, अति पिछड़ों व पिछड़ों तक सीमित रही। चौधरी अजित सिंह-जयंत चौधरी केवल जाट तक सीमित रहे। उनकी कोशिश भावनात्मक रूप से बिरादरी को अस्तित्व बचाने और चौ. चरण सिंह का नाम बचाने के लिए तैयार करने की रही। इसमें वह सौ फीसद सफल रहे।

कुंद हुई ध्रुवीकरण की धार

कैराना व नूरपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियां कराई गईं। कैराना में मुख्यमंत्री ने माहौल को ध्रुवीकरण की ओर मोडऩे के लिए बयान दिए, लेकिन बात नहीं बनी। बल्कि उनका दांव उलट ही पड़ा। मुस्लिमों का तो ध्रुवीकरण हो गया, लेकिन हिंदू मतदाता पूरी तरह बिखरता नजर आया।

दिग्गजों का रहा जमावड़ा

भाजपा की ओर से कैराना में राष्ट्रीय महामंत्री रामलाल, सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल, उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य एवं प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडे ने पूरी मेहनत की। माना भी जा रहा है कि प्रत्याशी मृगांका सिंह पूरी तरह पार्टी के भरोसे रह गईं। इसके चलते वह वोटरों से कनेक्ट नहीं हो पाईं।

एसी कमरों में बनती रही रणनीति

चर्चा है कि भाजपाई वातानुकूलित कमरों में बैठकर रणनीति बनाते रहे। इससे इतर बाहरी एवं बड़े नेताओं पर हाईकमान ने ज्यादा भरोसा जताया गया, जबकि स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई।

मंत्रियों के गढ़ में हारी भाजपा

कैराना लोकसभा क्षेत्र में दो राज्यमंत्री सुरेश राणा व धर्मसिंह सैनी हैं। गौरतलब यह भी है राज्यमंत्री धर्मसिंह के गढ़ में भी भाजपा बुरी तरह हार गई। नकुड़ विस में गुर्जर, मुस्लिम, अनुसूचित व सैनी वोटों की तादात ज्यादा है, जहां भाजपा घिर गई। राज्यमंत्री सुरेश राणा के गढ़ थानाभवन में भाजपा की बुरी गत हुई।

संजीव बालियान व सत्यपाल सिंह भी फिसले

मुजफ्फरनगर दंगों के बाद डा. संजीव बालियान जाट समाज में आइकॉन बनकर उभरे। भाजपा हाईकमान ने भी उन्हें पूरी तरजीह दी। पार्टी ने उपचुनाव में जाट मतों को साधने के लिए बालियान और सत्यपाल पर भरोसा दिलाया, लेकिन ये दोनों चौधरी अजित का तिलिस्म नहीं तोड़ पाए। 


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