उपचुनाव : कैराना संसदीय सीट पर प्रतिशोध की सियासत और पलायन की पीड़ा
सपा बसपा में आपसी बैर खत्म करने के प्रयास हैं तो दंगे में बिखरे जाट मुस्लिम समीकरण को फिर से साधने की कोशिश भी है।
कैराना [अवनीश त्यागी]। हिंदुओं के पलायन पर सुर्खियां बटोरने वाला कैराना फिर चर्चा में है। 28 मई को यहां के मतदाता अपना नया सांसद ही नहीं चुनेंगे वरन प्रदेश की सियासी दिशा भी तय करेंगे। गत चार दशक से दो घरानों (हुकुम सिंह और हसन) के इर्दगिर्द ही स्थानीय राजनीति सिमटी रही है परंतु यह उपचुनाव वर्चस्व की जंग से आगे बढ़ गया है और जीतने से ज्यादा हराने की ललक में रिश्तों के समीकरण बदल रहे हैं। सपा बसपा में आपसी बैर खत्म करने के प्रयास हैं तो दंगे में बिखरे जाट मुस्लिम समीकरण को फिर से साधने की कोशिश भी है।
कैराना संसदीय सीट का उपचुनाव गोरखपुर व फूलपुर से अलग है। करीब पांच लाख मुस्लिम मतदाताओं वाले कैराना में वर्ष 2013 के दंगे के बाद से हालात बदले तो 2014 में इसका लाभ उठाने में भाजपा सफल रही थी। भाजपा के हुकुम सिंह 5,65,909 लाख मत प्राप्त करने में कामयाब रहे थे जबकि समाजवादी पार्टी के नाहिद हसन को 3,29,081, बहुजन समाज पार्टी के कंवर हसन को 1,60,414 व चौथे स्थान पर रहे रालोद के करतार भड़ाना 42,706 वोट ही पा सके थे हालांकि उन्हें कांग्रेस का समर्थन भी प्राप्त था। जबकि, हसन परिवार में रालोद प्रत्याशी तबस्सुम के देवर कंवर हसन की नाराजगी भी जग जाहिर है। कंवर हसन ने भी लोकदल से पर्चा भर दिया है। इससे तबस्सुम की परेशानी बढ़ गई है। गत लोकसभा चुनाव में कंवर हसन इसी सीट से बसपा प्रत्याशी थे।
आसान नही दिलों का मिलना
कैराना में भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष के गठजोड़ के पीछे केवल प्रतिशोध की भावना देख रहे एडवोकेट तनवीर का कहना है कि मौकापरस्ती के चलते बड़े नेताओं का एक मंच पर आना भले ही कागजों में मजबूत दिखे परंतु स्थानीय मसलों की अनदेखी नहीं की जा सकती। दंगों का दंश भरा नहीं है। चेहरे बदलकर सियासी मंसूबे पूरा करने की चाहत में गणित उलट भी जाती है। तनवीर से मिलती जुलती राय गांव हाथीकरोदा के रविंद्र मलिक की भी है। उनका कहना है कि खाप चौधरियों पर दर्ज मुकदमों की वापसी का विरोध करने वालों को सिराहने कैसे बैठाया जा सकता है।
ध्रुवीकरण की कोशिशें तेज
विपक्ष धुव्रीकरण पर जीत की आस लगाए है। कैराना में पांच लाख मुस्लिम और दो लाख से अधिक दलितों को अपने पाले में मान रहे रालोद प्रवक्ता सुनील रोहटा बताते है कि जाट मतदाताओं का मिजाज बदला है। दूसरी ओर विभिन्न दलों का असंतोष भी अहम भूमिका अदा करेगा। खासतौर से विपक्ष के स्थानीय नेताओं में अपने वर्चस्व को बचाने की फिक्र अधिक है। कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि शीर्ष नेतृत्व ने बिना मांगे सपा को समर्थन दिया है जबकि गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस क्षेत्र की तीन सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। रालोद में भी बाहरी प्रत्याशी उतराने से नाराजगी है। वरिष्ठ कार्यकर्ता राजेंद्र राठी का कहना है कि कैराना में गैर मुस्लिम को टिकट दिया गया होता अथवा जयंत चौधरी स्वयं चुनाव लड़ते तो नतीजे बेहतर होते।
मुस्लिम सियासत में आगे कौन
कैराना की मुस्लिम राजनीति में मसूद और हसन परिवार की आपसी तनातनी किसी से छिपी नहीं। सपा व रालोद से तबस्सुम मुनव्वर को उम्मीदवार बनाए जाने से मुस्लिमों में सिरमौर बनने का सवाल खड़ा होने का जिक्र करते हुए डा. इकबाल का कहना है कि उपचुनाव की जीत हार से मुस्लिम सियासत की दिशा तय होगी। कद्दावर नेता इमरान मसूद के समर्थकों में बेचैनी है।
अन्य पिछड़ी जतियों पर दारोमदार
कैराना संसदीय क्षेत्र में शामली जिले की थानाभवन, कैराना व शामली विधानसभा सीटों के अलावा निकटवर्ती सहारनपुर जिले सेगंगोह और नकुड़ विधानसभा सीटें आती हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में कैराना को छोड़ कर बाकी पर भाजपा के विधायक हैं। भाजपा द्वारा जीती सीटों पर पिछड़ी जातियों की एकजुटता ने अहम रोल अदा किया था। गंगोह के व्यापारी सुरेश कश्यप का कहना है कि एक वर्ग विशेष की दबंगई के चलते ही कारोबार चौपट हुए जिसका सर्वाधिक नुकसान पिछड़े व कमजोर तबके के लोगों को उठाना पड़ा।
पलायन का दंश दंगों से अधिक है। आम लोगों की मुश्किलें जस की तस है। औद्योगिक विकास योजनाएं कारगर नहीं हो सकी। यमुना के खादर में धान, गन्ना व सब्जी की खेती जरूर होती है परंतु छोटी मोटी नौकरियों के लिए भी यमुना नदी पार हरियाणा जाना पड़ता है। कश्यप सैनी व अन्य पिछड़ी जातियों का रुझान निर्णायक होगा।
वोट प्रतिशत बढ़ाने पर जोर
रालोद के डा. राजकुमार सांगवान का कहना है कि वोटरों को उत्साहित करने के लिए बूथ स्तर पर कमेटियों बनायी जा रही है और सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व देने के साथ गैर भाजपाई दलों को भी जोड़ा जाएगा। उधर भाजपा के पश्चिमी उप्र प्रभारी व महासचिव विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि कैराना में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए कोई कसर न छोड़ी जाएगी।