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दिव्यांगता को दी हौसले से मात

दिव्यांगता कमजोरी हो सकती है लेकिन अभिशाप नहीं। संघर्ष और आत्मबल के दम पर सफलता की इबारत भी लिखी जा सकती है। इस कथन को सच साबित कर रहे है जिले के विकासखंड तिलहर के मुहल्ला उमरपुर निवासी दोनों पैर से दिव्यांग आसिम खान।

By JagranEdited By: Published: Thu, 03 Dec 2020 12:41 AM (IST)Updated: Thu, 03 Dec 2020 12:46 AM (IST)
दिव्यांगता को दी हौसले से मात
दिव्यांगता को दी हौसले से मात

अजयवीर सिंह, शाहजहांपुर : दिव्यांगता कमजोरी हो सकती है, लेकिन अभिशाप नहीं। संघर्ष और आत्मबल के दम पर सफलता की इबारत भी लिखी जा सकती है। इस कथन को सच साबित कर रहे है जिले के विकासखंड तिलहर के मुहल्ला उमरपुर निवासी दोनों पैर से दिव्यांग आसिम खान। जिनकी जिंदगी में महज सात साल की उम्र में ही सड़क हादसे से अंधेरा छा गया था। बड़ी बहन का साथ मिला तो खुद शिक्षित बनकर गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देना शुरू कर दिया।

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तीन अप्रैल 2002 यह वह तिथि व वर्ष है जब आसिम हंसते खेलते लखनऊ-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित अपने खेत पर पिता के साथ गन्ना खाने जा रहे थे। इसी दौरान तेज रफ्तार ट्रक जोरदार टक्कर मारते हुए आसिम के पैरों के ऊपर से निकल गया। डॉक्टर ने घुटने से नीचे तक के दोनों पैर काटकर जान बचाई थी। करीब एक साल तक हंसता खेलता यह शख्स मकान में कैद होकर रह गया। ऐसे में पिता जमील खां ने धीरे-धीरे बेटे को सहारा देना शुरू किया। कुछ दिनों बाद आसिम ने फिर से पढ़ाई की इच्छा जताई तो पिता ने हामी भर दी, लेकिन काम की व्यवस्ता की वजह से नियमित बेटे को विद्यालय तक ले जाना मुश्किल था। ऐसे में बड़ी बहन निशा ने व्हीलचेयर के सहारे विद्यालय पहुंचाना और वहां से लेकर आने की जिम्मेदारी उठाई। बहन का साथ मिलने के बाद कक्षा आठ तक की पढ़ाई पूरी कर ली। इसके बाद दोस्तों की बदौलत स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद बरेली से एमसीए की पढ़ाई कर रहे है।

माहौल देख देने लगे निश्शुल्क शिक्षा

आसिम ने बताया कि आस-पास का माहौल देख गरीब बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देने की कई साल पहले ठान ली थी। अब 20 से अधिक बच्चे कक्षा एक से आठ तक के नियमित उनके पास पढ़ने पहुंच रहे हैं।

योग्यता से मिला रोजगार

आसिम की योग्यता से प्रभावित होकर उनके पड़ोसी वसीम ने अपने फर्नीचर व इलेक्ट्रानिक के कारोबार में पार्टनर बना लिया। आर्थिक तंगी की वजह से उन्होंने बैंक से लोन लेने के लिए भागदौड़ शुरू की, लेकिन कामयाबी न मिलने पर अपने कई साथियों से उधार रुपये लेकर यह कारोबार शुरू कर दिया। जिससे पिता को भी सहारा मिल गया।

झटके पुरस्कार

2018 में कैंट स्थित मैदान में ट्राई साइकिल की रेस में पहला स्थान हासिल किया। विद्यालयों में भी कई प्रतियोगिताओं में पहला स्थान हासिल कर मिशाल पेश कर चुके है।

ये भी बने आत्मनिर्भर

सत्यम प्रेम गौतम, आदेश सिंह, अनित, मुकेश कुमार, प्रमोद कुमार, शिवम सिंह, मिश्री लाल, गूंगा, जौहरी लाल, रफीक, शोएब अहमद, राम भरोसे, उत्तम कुमार, आफताब खान, प्रमोद कुमार प्रजापति, शब्बन, पुनीत सिंह जैसे तमाम नाम जिले में ऐसे है। जो दिव्यांग होने के बाद भी किसी न किसी काम की बदौलत कामयाबी हासिल कर चुके हैं। जिला प्रशासन इन दिव्यांगों को काबिलियत देखकर मोटराइज्ड ट्राईसाइकिल देकर सम्मानित कर चुका है।


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