भूख रोक रही थी कदम, खौफ दे रहा था दम
दो दिन तक भरपेट भोजन नहीं मिला था। सैकड़ों किमी पैदल सफर में कदम भी थक चुके थे। सिर पर गृहस्थी का बोझ से पैर लड़खड़ा रहे थे।
जेएनएन, शाहजहांपुर : दो दिन तक भरपेट भोजन नहीं मिला था। सैकड़ों किमी पैदल सफर में कदम भी थक चुके थे। सिर पर गृहस्थी का बोझ से पैर लड़खड़ा रहे थे। भूख कदम रोके जा रही थी। लेकिन लॉकडाउन में फंसने पर भूख से ही मौत का खौफ भी सता रहा था। इसलिए कदम सूज तो गए लेकिन रुके नहीं..। यह कहना था हरदोई के गांव रहीमपुर निवासी सिद्धपाल व उनकी पत्नी पिकी का। दिल्ली में रिक्शा चलाकर जीवन यापन करने वाले सिद्धपाल दो बच्चों के साथ दिल्ली गए थे। 150 किमी पैदल व शेष वाहनों से सफर तय करके शाहजहांपुर पहुंचे। बसों से घर भिजवानें की उम्मीद में उनके चेहरे पर संतोष के भाव थे। लेकिन पिकी व सिद्धपाल की तरह ही हाइवे गुजर रहे हजारों श्रमिकों की यही दास्तां थी। बिहार के श्रमिक जोगेंद्र गाजियाबाद में पीओपी का काम करते थे। साथ में पांच साथी और थे। काम बंद हुआ तो पास का सारा पैसा खत्म हो गया। पैदल ही चल पड़े। पांच दिन में शाहजहांपुर पहुंचे।
ऐसी बेबसी कभी नहीं देखी
पैरों में हवाई चप्पल, आसमां से बरस रही धूप, सिर पर गृहस्थी का वजन व गोद में बच्चा..। महिला व पुरुष में कोई भी भेद नहीं। सभी समान जिम्मेदारी से कदम बढ़ाए जा रहे थे। बरेली मोड़ पर कुछ लोग भोजन वितरण को पहुंचे। हाथ बढ़ाकर भोजन लिया। भूख शांत की। पानी पिया फिर चले पड़े।
बरेली मोड़ के आगे साईं समिति के लोग भोजन बांट रहे है। यहां टैंकर रूका। करीब 60 लोग बाहर निकले। सभी को स्वयंसेवियों ने भोजन कराया। पानी की बोतल दी। दुआएं देते हुए श्रमिक आगे बढ़ गए। तमाम ग्रामीण भी फल वितरित करते नजर आए। कटरा से लेकर बरेली मोड़ तक बेबसी लाचारी सरीखा नजारा रहा।