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कांवड़ यात्रा ने बना दिया कांवड़ का कारोबारी

हुसैनपुरा के राम प्रताप .. दशक पूर्व तक खुद फर्रुखाबाद से कांवड़ ले जाकर गोला गोकर्णनाथ में भोले शंकर का जलाभिषेक करते थे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 28 Jul 2019 07:54 PM (IST)Updated: Sun, 28 Jul 2019 07:54 PM (IST)
कांवड़ यात्रा ने बना दिया कांवड़ का कारोबारी
कांवड़ यात्रा ने बना दिया कांवड़ का कारोबारी

- दशक पूर्व हुसनैपुरा में राम प्रताप व जयराम के परिवार ने शुरू किया था कांवड़ बनाने का कारोबार

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- पूरे माह में यहां करीब 125 कांवड़ तैयार कर मुनाफा कमाने के

साथ भक्ति भाव में डूब जाता परिवार

जागरण संवाददाता, शाहजहांपुर : हुसैनपुरा के राम प्रताप .. दशक पूर्व तक खुद फर्रुखाबाद से कांवड़ ले जाकर गोला गोकर्णनाथ में भोले शंकर का जलाभिषेक करते थे। भोले शंकर की ऐसी कृपा हुई कि वह कांवड़ के ख्यातिलब्ध कारोबारी हो गए। अब वह कारोबार की व्यस्तता के कारण कांवड़ तो नहीं चढ़ा पता, लेकिन शिवभक्तों के लिए कांवड़ बड़ी श्रद्धा से तैयार करते है। पूरे माह उनका परिवार कांवड़ बनाने और सजाने में लगा रहता है। आषाढ़ मास से ही कांवड़ के लिए वह बांस, कपड़ा, गोटा, टोकरी, लोहे के महीन तार समेत सामग्री जुटाते हैं। आकर्षक सज्जा, मजबूत आधार और वजन में हल्की होने के कारण हुसैनपुरा ब्रांड की कांवड़ जनपद के अलावा हरदोई और लखीमपुर खीरी के श्रद्धालुओं की भी पहली पसंद है।

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400 से 1500 में तैयार होती कांवड़

कांवड़ की सज्जा व उसमें लगाए जाने वाले सामान के अनुरूप कांवड़ के भाव भी भिन्न है। सामान्य कांवड़ 400 में मिल जाती, लेकिन आकर्षक गोटे, कपड़े वाली मंदिर के आकार वाली कांवड़ का भाव 1500 है। राम प्रताप बताते हैं कि 700 से 800 की कांवड़ को सर्वाधिक पंसद किया जाता।

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एडवांस में टेलर की बुकिग

कांवड़ को कपड़ा सिलने के लिए टेलर से पहले ही बात कर ली जाती है। प्रति कांवड़ के हिसाब से टेलर सिलाई शुल्क लेते। सुबह से देर शाम तक कांवड़ के सजाने के लिए कपड़ा सिलाई का सिलसिला चलता है। े

------------------- बरेली के बांस से तैयार होती कांवड़

फोटो 28 एसएचएन 39

कांवड़ के लिए बांस बरेली और पीलीभीत से मंगाए जाते। एक कांवड़ में बीस फुट लंबे दो बांस लगते हैं। इन बांसों के ऊपर गोटा लगाकर आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। बरेली के बांस टिकाऊ व सस्ते व हल्के होते हैं। सावन शुरू होने से दो माह पूर्व ही बांस की खेप मंगा ली जाती। इसके बाद जरूरत के अनुसार उनका कांवड़ बनाने में प्रयोग किया जाता। गोटा, कपड़ा व अन्य सजावट का सामान स्थानीय बाजार से खरीद लिया जाता।

राम प्रताप, कांवड़ कारीगर

----------------- पैसे से बढ़कर श्रद्धा की कमाई

कांवड़ में आíथक कमाई कम श्रद्धा की कमाई ज्यादा है। बात पैसे की नहीं है। सावन भर भक्त भगवान भोले को गंगा घाट से पैदल जाकर शिवालयों में जल चढ़ाते, लेकिन वह श्रद्धा से तैयार कांवड़ से जो मिल जाता, उसी में संतोष कर लेते।

डब्ल्यू कांवड़ कारीगर

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