आखिर..एक फिर एक संत को उठाना पड़ा जनकल्याण का बीड़ा
रामगंगा की हैदलपुर घाट के बीहड़ इलाके में संत शांतिदास की भूख हड़ताल ने व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है।
जेएनएन, शाहजहांपुर : रामगंगा की हैदलपुर घाट के बीहड़ इलाके में संत शांतिदास की भूख हड़ताल ने व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जनहित के जिस मुद्दे के लिए जनप्रतिनिधियों को आगे आना चाहिए था उसके लिए दोबारा एक संत को ही आगे आना पड़ा।
90 के दशक में जिले के सबसे बड़े कोलाघाट पुल के लिए टॉपर वाले बाबा जी ने अनशन किया था। कोलाघाट पुल बनने के बाद जिले से अलग होने के बाद कलान और मिर्जापुर जनपद का अंग बना रहा। अब हैदलपुर घाट के लिए संत शांतिदास को भूख हड़ताल शुरू करनी पड़ी।
द तो तब हुई जब अनशन के 30 घंटे घंटे बाद भी कोई अधिकारी व जनप्रतिनिधि बाबा की सुध लेने नहीं पहुंचा। उन्होंने एलान किया कि पुल निर्माण शुरू होने के बाद ही वह अन्न ग्रहण करेंगे। इस दौरान पुल निर्माण आंदोलन समिति का गठन कर नरेंद्र ¨सह को अध्यक्ष चुना गया। ग्रामीणों ने लगवाया टेंट, नल और जलाव
हैदलपुर रामगंगा घाट पर चार किमी के बीड़ड में न तो पेयजल के कोई प्रबंध हैं, और न ही सिर छुपाने को कोई जगह। संत शांतिदास के आमरण अनशन में बढ़ती भीड़ को देख क्षेत्रीय लोगों ने चंदा करके अनशन स्थल पर नल लगवा दिया। रात में खुले आसमान के नीचे ठिठुर रहे संत को राहत देने के लिए अलाव की व्यवस्था कराई। अनशन में शामिल हुए यह लोग, पुल निर्माण समिति का गठन
स्वामी शांतीदास जी महाराज की भूखहड़ताल में शनिवार को नरेंद्र ¨सह, रामवीर सिहं, पूर्व प्रधान पेहना, अवनीश कुमार, स्वामी रामसरन दासजी महाराज, स्वामी ओमदास जी महाराज, सत्यकुमार, अजय वीर ¨सह, देवेंद्र ¨सह, विपिन यादव पूर्व प्रधान हैदलपुर, सर्वेश यादव, संजीव यादव एडवोकेट, सत्यवीर यादव प्रधान मगटोला, र¨वद्र ¨सह, अवनीश कुमार ¨सह, लालाराम, अजय ¨सह चौहान, राजकुमारी, विनीता ¨सह, सुरेखा, ममता, मनोज, अनमोल ¨सह, स्वामी हरिहरदास कहार गौटिया आदि लोग बैठे।