यूं ही रही बेरोजगारी तो कैसे चुकाएंगे उधारी
मजबूरी में घर छोड़ा था। परदेस में काम मिला तो अरमानों को पंख लगे पर सब कुछ अचानक रुक जाएगा ऐसा सोचा भी नहीं था।
सुरेंद्र सिघल, तिलहर : मजबूरी में घर छोड़ा था। परदेस में काम मिला तो अरमानों को पंख लगे, पर सब कुछ अचानक रुक जाएगा ऐसा सोचा भी नहीं था। तीज त्योहार में अब तक घर आते तो यहां कुछ और दिन रुकने का मन होता, पर इस बार एक-एक दिन भारी पड़ रहा है। अब मन है कि जल्द चले जाएं। कारण, रुपये पास में नहीं हैं। कर्ज अलग से सिर पर चढ़ा है। वहां भले ही मुश्किल से खर्च चल रहा था, पर अब तो जीवन की गाड़ी मुश्किल में फंस गई है। मेहनत मजदूरी कर खर्च तो चला लेंगे, पर उधारी कैसे चुकाएंगे। यह कहना है लखोहा गांव निवासी फिदा हुसैन का। घर के बाहर भाइयों के साथ बैठे फिदा हुसैन हरियाणा के सोनीपत के ग्राम कुंडली की एक गारमेंट फैक्ट्री में सिलाई का काम करते थे। भाई अहमद, आबिद, पप्पू, अशफाक तथा जाबिर भी काम करके 15-15 हजार रुपये पाते थे। लॉकडाउन लगा तो मार्च में ही परिवार के सभी 32 लोग 32 हजार रुपये में डीसीएम से बरेली तक आ गए। वहां पुलिस ने ट्रक में बैठा दिया। यहां खैरपुर चौराहे पर ट्रक भी रोका तो पैदल घर पहुंचे। फिदा हुसैन ने बताया कि वहां सभी के पास तीन-तीन हजार रुपये पर कमरे था। अच्छा खासा बकाया हो गया है। मालिक सिर्फ एक महीने का किराया छोड़ने की बात कह रहे हैं। उधारी बढ़ती ही जा रही है। मनरेगा में जॉब कार्ड क्यों नहीं बनवाते। फिदा हुसैन कहते हैं कि जीवन बीत गया सिलाई मशीन चलाते हुए। फावड़ा कभी चलाया नहीं। शरीर साथ नहीं देगा, इसलिए वापस ही जाना होगा। उनकी तरह गांव में अन्य प्रदेशों से लगभग 38 परिवारों के करीब पौने दो सौ लोग वापसी कर चुके हैं। रात में आंधी से गिरा छप्पर सही कर रहे रफीक अहमद भी इनमें से एक हैं। जयपुर में ईदगाह के पास सिलाई का काम करने वाले रफीक अपनी पत्नी व चार बच्चों के साथ पहले दिल्ली के गांधीनगर में सिलाई करते थे। नोटबंदी हुई तो काफी रुपया उधार में डूब गया। गांव आकर भाई बशीर के साथ मजदूरी की, पर गुजारा नहीं हुआ। पिछले साल जयपुर में काम शुरू किया। लाकडाउन में जमापूंजी खत्म हुई तो परिवार पैदल ही घर के लिए चल दिया। 15-20 किमी. चलने के बाद पुलिस ने एक डीसीएम के से एटा तक भिजवाया। वहां से बस मिली तो 16 मई को तिलहर पहुंचे। क्वारंटाइन अवधि पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। प्रशासन ने किट व प्रधान ने राशन दिया था, पर जिदगी जीने के लिए काम मिलना जरूरी है। घर के बाहर बैठे हनीफ भी जयपुर में कढ़ाई का काम करते हैं। 14 हजार रुपये मिल जाते थे। दो महीने तक तो लॉकडाउन खुलने के इंतजार में वहीं रहे। जब रुपये पास नहीं बचे तो घर वापसी की, पर यहां भी ज्यादा दिन नहीं रुक सकते। बोले जरूरतें बढ़ चुकी हैं। मनरेगा में दो सौ रुपये पर काम मिल भी गया तो गुजर न हो सकेगी। छंगे अली, पवन, ऋषि पाल, अशफाक, जावेद, दीपक, लोकेश, ब्रजराज की भी कुछ यही कहानी है।
इनकी भी सुनें
प्रवासियों के जॉब कार्ड बनवाने के लिए सेक्रेटरी को लिस्ट दी है। उन्हें मनरेगा में काम दिया जाएगा। पूर्ति विभाग में साइट बंद है, इसलिए राशन कार्ड नहीं बन पा रहे हैं।
गोमती देवी, ग्राम प्रधान प्रवासियों को मनरेगा कार्ड तथा राशन कार्ड उपलब्ध करवाने के लिए निर्देश दिए जा चुके हैं। अगर किसी को समस्या आ रही है तो सीधे मुझसे बात कर सकता है। - वेद सिंह चौहान, एसडीएम