Move to Jagran APP

भूख से अच्छी परदेस की घुटन भरी जिदगी

साहब परदेस की घुटन में जी लेंगे लेकिन यहां भूखों नही मर पाएंगे..। मदद करना तो दूर यहां कोई हाल पूछने तक नहीं आता।

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Jun 2020 12:07 AM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2020 06:11 AM (IST)
भूख से अच्छी परदेस की घुटन भरी जिदगी
भूख से अच्छी परदेस की घुटन भरी जिदगी

संवाद सहयोगी, सिधौली : साहब, परदेस की घुटन में जी लेंगे, लेकिन यहां भूखों नही मर पाएंगे..। मदद करना तो दूर यहां कोई हाल पूछने तक नहीं आता। जीवन तो वहां भी अच्छा नहीं था, लेकिन यहां तो हालात और ज्यादा खराब हैं। यह निराशा और पीड़ा है सिधौली ब्लाक के गंधरपुर गांव निवासी वीरेंद्र की। वीरेंद्र जो पत्नी सावित्री तथा चार बच्चों के साथ ग्रेटर नोएडा के देवला इलाके में किराये की खोली में रहते थे। वहां एक गत्ता फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। कोई और चारा था नहीं इसलिए हालातों से समझौता कर लिया। किसी तरह बस गुजर बसर हो रही थी। लॉकडाउन के बाद ठेकेदार ने काम पर आने से मना कर दिया। समझ नहीं आया क्या करे। पास में कुछ रुपये जोड़कर रखे थे, जिनसे कुछ दिन खर्च चलाया। उसके बाद तमाम दुश्वारियों के बीच पत्नी व बच्चों को लेकर गांव आ गया। यहां मकान के नाम पर एक छोटी सी कोठरी में किसी तरह सिर तो छिपाने की जगह तो है, पर करने को काम नहीं। वीरेंद्र ने बताया कि राशन कार्ड और जॉब कार्ड भी नहीं बना है। सोचता है कि वापस चला जाए। हालांकि वहां भी सुकून नहीं हैं, पर अभी वापस न गया तो वहां भी काम मिलना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए बच्चों व पत्नी के साथ जाना उसकी मजबूरी है।

loksabha election banner

राशन किट तक नहीं मिली लॉकडाउन में गांव वापस आए अन्य प्रवासियों का भी कुछ यही हाल है। अधिकारियों की निगाह अब तक इन पर नहीं पहुंची। वापस आने पर सभी की जांच हुई। होम क्वारंटाइन भी रहे, लेकिन मदद की बात करें तो राशन किट तक नहीं मिली। रुद्रपुर उत्तराखंड से लौटे दुर्गेश पर पत्नी रोम और वृद्ध पिता रामलाल के भरण पोषण की जिम्मेदारी है, उसने सब्जी की फेरी का कारोबार शुरू किया और वापस जाने से इनकार किया। नोएडा से ही लौटे ललित पर बीमार पिता छोटेलाल तथा माता मैना देवी की जिम्मेदारी है। थर्माकोल फैक्ट्री में काम करके माहवार दस हजार रुपये कमा लेता था, पर अब मजदूरी भी नहीं मिल रही। गांव में पाकड़ के नीचे बैठे मेवाराम, राजू, गुड्डू, पवन, ओमकार भी वापसी का मौका ढूंढ रहे हैं। हाल पूछने पर रुंधे गले से बताया कि डर उन लोगों को भी लगता है। वे जानते हैं कि कोरोना का प्रकोप अभी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन क्या करें। जमा पूंजी खत्म हो रही है। ऐसे में वापसी करना उनकी मजबूरी है। आशीष, पटन्ने ने बताया कि जिन कमरों में किराए पर रहते थे वहां के मालिक ने सारा सामान रोक लिया है। किराया नहीं चुकाएंगे तो उन लोगों का सामान बेच देगा।

वर्जन:

करीब 120 मजदूर वापस आए हैं। जब त क राशन कार्ड नहीं बन जाते तब तक कोटे से खाद्यान्न दिलाने में दिक्कत है। हमारे पास सीधा बजट नहीं है, फिर भी जो संभव है मदद करा रहे हैं।

- रामनाथ शर्मा, ग्राम प्रधान

जो भी प्रवासी मजदूर शेल्टर होम के माध्यम से गांव जाते हैं उनको सबको राशन किट उपलब्ध करायी जाती है। ये लोग शायद सीधे गांव पहुंचे होंगे। इनका चिन्हीकरण कराकर इनको लाभ प्रदान किया जाएगा। पूर्ति विभाग से राशन कार्ड व सेक्रेटरी के माध्यम से जॉब कार्ड बनवाए जाएंगे।

- दशरथ कुमार, एसडीएम पुवायां


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.