खत्म हुई जमापूंजी, कैसे ब्याहेंगे 17 दिन बाद बेटी
किसी ने दो वक्त की रोटी के लिए घर छोड़ा तो कोई बेहतर भविष्य के लिए गांव से गया था। कुछ के सपने पूरे हुए तो कई कोशिश में थे पर लॉकडाउन ने सारा गणित बिगाड़ दिया।
संवाद सहयोगी, रोजा : किसी ने दो वक्त की रोटी के लिए घर छोड़ा तो कोई बेहतर भविष्य के लिए गांव से गया था। कुछ के सपने पूरे हुए तो कई कोशिश में थे, पर लॉकडाउन ने सारा गणित बिगाड़ दिया। जो कुछ कमाया था वह भी पास न रहा। हालात ज्यादा खराब होने पर गांव तो आ गए, पर दिक्कतें जस की तस हैं। भावलखेड़ा ब्लॉक के गांव चौढ़ेरा में करीब 38 परिवारों के 140 लोग लॉकडाउन के बाद वापस आए हैं। इन्हीं में एक हैं सुरेश। गांव में खोखे के पास भाई श्यामबाबू के साथ खड़े सुरेश दिल्ली के रजपुरा की गुड़ मंडी में चौकीदार थे। पत्नी रामबेटी घरों में और बेटी नीलम व प्रेमवती एक फैक्ट्री में काम करती थीं। मार्च में होली पर आए तो बड़ी बेटी नीलम का विवाह सेहरामऊ दक्षिणी के एक परिवार में तय कर गए थे। 15 जून को बरात आनी थी। लेकिन 25 मार्च को लॉकडाउन के साथ ही फैक्ट्री में ताला पड़ गया। बेटियों को घर बैठना पड़ा। पत्नी को भी काम पर आने से मना कर दिया। गुड़ मंडी की चौकीदारी कर रहे सुरेश का भी 30 अप्रैल को हिसाब कर दिया गया। बेटी की शादी के लिए जो रुपये जोड़े थे दिल्ली में लॉकडाउन के दौरान वह खर्च होने लगे। रजिस्टर में रोज नाम चढ़ता पर राशन नहीं मिलता। पास के स्कूल में खाना बंटता था। भाई रिक्शा चालक राजू व रामबक्श तो लाइन में लग जाते थे, लेकिन वे पत्नी व बेटियों को वहां भेज नहीं सकते थे। इसलिए उनके लिए राशन खरीदना पड़ता था। 15 दिन तक सिलसिला चला। उम्मीद के साथ रुपये भी कम पड़ने लगे थे। इसलिए 30 हजार रुपये में डीसीएम किराए पर लेकर 16 मई को गांव आ गए।
कर्ज भी मिलेगा तो कैसे
सुरेश बताते हैं कि गांव आ तो गए, पर उन लोगों के पास कोई और हुनर नहीं है। जॉब कार्ड बन जाए तो मजदूरी कर लेंगे, पर इस समय सबसे बड़ी चिता बेटी नीलम के ब्याह की है। जमापूंजी खर्च हो चुकी है। दिन कम बचे हैं। फरीदाबाद की फैक्ट्री में काम करने वाले भाई मदनलाल व महेश वहीं फंसे हैं। गांव में रहने वाले श्यामबाबू ज्यादा मदद की स्थिति में नहीं हैं। खेती भी नहीं है। कर्ज लेने के सिवाय कोई विकल्प नहीं, पर इस समय कर्ज देगा कौन।
परिवार का कैसे चलेगा खर्च सता रही चिता
घर के बाहर गोद में बच्चे को चुप कराने का प्रयास कर रहे रवि के पिता डोरीलाल राजमिस्त्री थे। पूरा परिवार नौ साल पहले दिल्ली चला गया था। एक दिन काम पर जाते समय ट्रक ने टक्कर मार दी। रवि घायल हो गया। पिता डोरीलाल व भाई प्रियांशु की मौत हो गई। मां महादेवी, पत्नी राखी, बहन वंदना, साधना, पूजा की जिम्मेदारी रवि पर है। भाई शोले छोटा है, लेकिन काम में मदद करता है। लॉकडाउन में कभी पैदल चलकर तो कभी ट्रक में लिफ्ट लेकर परिवार गांव आ गया। अपना मकान होने के कारण किराए की दिक्कत तो नहीं है, लेकिन परिवार का खर्च कैसे चलेगा यह चिता खाए जा रही है।
समझ नहीं आ रहा क्या करें
महेश पाल भी इसी उधेड़बुन में हैं। झज्जर में एक फैक्ट्री में वेल्डिग का काम करते थे। पत्नी राजवती जूता कारखाना में मजदूरी करती थीं। लॉकडाउन में नौकरी गई तो चार बच्चों के साथ वापस आ गए। बताते हैं कि चार बीघा खेत से गुजारा नहीं होता था इसलिए गांव छोड़कर गए थे, 40 दिन हो गए हैं वापस आए हुए। कोई काम नहीं मिल रहा।
वर्जन :
जो भी प्रवासी आए हैं उनको राशन कार्ड उपलब्ध कराए जा रहे हैं। आठ प्रवासियों के फार्म भरवाकर पूर्ति विभाग कार्यालय में जमा कर दिए हैं। मनरेगा में काम करने के इच्छुक महिला व पुरुष का जॉब कार्ड बनवाया जा रहा है।
विमला मिश्रा, ग्राम प्रधान, चौढ़ेरा जो प्रवासी मजदूर घर आ रहे हैं उनका ग्राम पंचायत व श्रम विभाग से रजिस्ट्रेशन कराया जा रहा है। दक्षता के अनुसार सभी को काम दिया जाएगा। चौढ़ेरा के प्रवासियों के बारे में जानकारी ली जाएगी।
सुरेंद्र सिंह, एसडीएम सदर