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सेंट मैरी चर्च से हुई थी जिले में क्रांति की शुरूआत

31 मई 1857..। दिन रविवार..। स्थान जीएफ डिग्री कालेज के सामने स्थित सेंट मेर

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 10:46 PM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 10:46 PM (IST)
सेंट मैरी चर्च से हुई थी जिले में क्रांति की शुरूआत
सेंट मैरी चर्च से हुई थी जिले में क्रांति की शुरूआत

शाहजहांपुर : 31 मई 1857..। दिन रविवार..। स्थान जीएफ डिग्री कालेज के सामने स्थित सेंट मेरी चर्च। सुबह के करीब साढ़े सात बज रहे थे। चर्च में मौजूद अंग्रेज अफसरों की प्रार्थना के स्वर अभी धीमे ही हुए थे कि अचानक वहां करीब 20 से 22 विद्रोही सैनिकों ने हमला बोल दिया। चर्च में उनके प्रवेश करते ही वहां पर भगदड़ मच गई। शोरगुल व चीख पुकार के बीच अंग्रेज अफसरों की पत्नियों ने बच्चों के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर लिया। लाठी व तलवार लिये विद्रोही सैनिक दरवाजा तोड़ने में असफल रहे। इसके बाद वे लोग वहां से चले गए। सबकुछ शांत हो गया। चर्च का चैपलन (पादरी)जैसे ही बाहर निकला घात लगाकर बैठे सैनिक ने उस पर तलवार से प्रहार कर किया। पहले ही वार में चैपलन का हाथ कट गया। इसके बाद वहां फिर से शोर मच गया। नगराधीश एम रिकेट जैसे ही बाहर आए विद्रोही सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे जवाहर राय ने अपनी तलवार से प्रहार कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद सैनिकों ने एक-एक कर वहां मौजूद कमां¨डग आफीसर कैप्टन जेम्स, जे मैकल्म, लेम्स्टर, स्मिथ, सर्जन एचएच बाउ¨लग आदि को मार गिराया।

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हिल गई थी ब्रिटिश हुकूमत

अंग्रेज अफसरों को मारने बाद विद्रोही सैनिक वहां से चले गए। इसके बाद वहां पहुंचे अन्य अधिकारियों व पुलिस ने महिलाओं व बच्चों को बाहर निकाला। उस समय पूरे देश में चर्चा बनी इस घटना ब्रिटिश हुकूमत हिल गई थी। दोबारा शुरू हुई प्रार्थना

सन् 1837 में बरेली से चैपलेन (पादरी) के व्यक्तिगत प्रयासों से कैंटोमेंट क्षेत्र में इस चर्च का निर्माण हुआ था। इस घटना के बाद चर्च में प्रार्थना बंद हो गई। 1860 में बिशप काटन के प्रयासों से यह चर्च दोबारा उपासना गृह बन गया। स्वतंत्रता से पूर्व इसकी व्यवस्था इंग्लैंड से होती थी। बताया जाता है कि फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल ने अपनी फिल्म जुनून में इस घटना को ही केंद्र रखा था। जिले में यह पहली क्रांतिकारी घटना थी। इसके बाद यहां जो कुछ हुआ वह स्वर्णिम इतिहास बन गया। मौलवी अहमद उल्ला शाह हों या काकोरी कांड की घटना। देश को आजादी दिलाने तक यहां के रणबांकुरों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।

डॉ. एनसी मेहरोत्रा, वरिष्ठ इतिहासकार


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