शाहजहांपुर के दिव्यांग दयाराम हुनर से मिट्टी में भर देते हैं प्राण
दयाराम प्रजापति किसी पहचान के मोहताज नहीं। मेहनत इमानदारी और कुशल कारीगरी के चलते उनकी शहर में पहचान है। दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने कभी मदद के लिए न तो समाज के सामने हाथ फैलाया और न ही सरकार से कोई अपेक्षा की। पेंशन के अलावा उन्हें किसी योजना का लाभ भी नहीं मिला
जेएनएन, शाहजहांपुर : दयाराम प्रजापति किसी पहचान के मोहताज नहीं। मेहनत, इमानदारी और कुशल कारीगरी के चलते उनकी शहर में पहचान है। दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने कभी मदद के लिए न तो समाज के सामने हाथ फैलाया और न ही सरकार से कोई अपेक्षा की। पेंशन के अलावा उन्हें किसी योजना का लाभ भी नहीं मिला। पैतृक चाक पर ही उन्होंने माटी में कला से खुशहाली के सपने गढ़े। पर्यावरण संरक्षण में सहायक बनने के साथ दूसरों के घरों को प्रकाशित करने को जीवन समर्पित कर दिया।
लाल इमली चौराहा, सुभाष नगर रोड निवासी 70 वर्षीय दयाराम प्रजापति की चार बेटियां व तीन बेटे है। बचपन से ही उन्होंने माटी कला को सीख उसे जीविकोपार्जन का आधार बना लिया। बाजार की जरूरत के अनुसार उन्होंने मिट्टी के दीये के अलावा मूर्ति, कलश, करवा, कुल्हड़ तैयार किए। उतार चढ़ाव के बीच भी उन्होंने माटी कला को न छोड़ा। पांच दशक से ज्यादा का समय हो चुका काम करते। लेकिन 70 साल की अवस्था में भी लोग दयाराम के हाथ के बने दीये समेत माटी के बर्तन लेना पसंद करते है। इलेक्ट्रिक चाक न मिलने पर पत्नी नाराज, दयाराम बोले पैतृक चाक बेहतर
हाथ से दिव्यांग दयाराम को लकड़ी से चाक चलाने में परेशानी होती है। इसके बावजूद उन्हें इलेक्ट्रिक चाक नहीं मिला। इस पर उनकी पत्नी सत्तादेवी नाराज है। लेकिन दयाराम पैतृक चाक पुरखों की धरोहर मान उसे इलेक्ट्रिक चाक से बेहतर बताकर सभी को चुप करा देते है। माटी कला का प्रशिक्षण चाह रहे पुत्र
दयाराम के बेटे रामसेवक, विजय श्रमिक है। अजय भी प्राइवेट दुकान पर काम करते है। सभी का एक ही कहना है कि प्रशिक्षण के साथ यदि आधुनिक तरीके से काम करने में मदद मिले तो पैतृक काम को जरूर करना चाहेंगे।
आंकड़े
- 400 परिवार करते है माटी कला का कार्य
- 25 लोगों को इलेक्ट्रिक चाक मिला 2018-19 में
- 36 परिवार को 2019-20 में दिया गया इलेक्ट्रिक चाक
- 30 परिवार 2020-21 में किए गए आधुनिक चाक से संतृप्त
- 30 परिवारों को 27 अक्टूबर को मिलेगा इलेक्ट्रिक चाक