सेट ट्रीटमेंट डिवाइस से दूर होगा गन्ने का कैंसर
गन्ने को लाल सड़न रोग (कैंसर) से बचाने के लिए भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान के वैज्ञानिकों ने सेट ट्रीटमेंट डिवाइस (एसटीडी) ईजाद की है।
नरेंद्र यादव, शाहजहांपुर : गन्ने को लाल सड़न रोग (कैंसर) से बचाने के लिए भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान के वैज्ञानिकों ने सेट ट्रीटमेंट डिवाइस (एसटीडी) ईजाद की है। उप्र. गन्ना शोध परिषद ने सीओ 0238 में कैंसर का खतरा देख किसानों को जीवाणुमुक्त गन्ना मुहैया कराने के लिए एसटीडी पर शोध भी शुरू कर दिया है। 40 मिनट में ही बुवाई के लिए रोगमुक्त गन्ना तैयार कर देने वाली यह डिवाइस कारगर साबित हो रही है।
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इसलिए पड़ी जरूरत
भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान कोयंबटूर से विकसित सीओ 0238 का यूपी में 19 लाख हेक्टेयर गन्ना रकबा है। इस प्रजाति में रेड रट के लक्षण तेजी से दिखाए देने लगे हैं। 2014 में यूपीसीएसआर शाहजहांपुर के निदेशक पद से त्यागपत्र देकर एसबीआइ डायरेक्टर पद का दायित्व संभालने के बाद डा. बख्शीराम ने गन्ना कैंसर की रोकथाम को सेट ट्रीटमेंट डिवाइस को लांच कर दिया। 64 चीनी मिल व गन्ना शोध संस्थान एसटीडी से महामारी की रोकथाम में जुटे हैं। -----------------
आधा दर्जन प्रजातियां नष्ट हो गईं अब तक : सीओ 01148, सीओ 0312, सीओजे 64, सीओएस 510, सीओएसई 92423 गन्ना प्रजाति लाल सड़न रोग की वजह से प्रतिबंधित कर दी गई।
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कैंसर रोग के यह है लक्षण
- जुलाई अगस्त में गन्ने की पत्तियों की मध्यशिरा पर लाल धब्बे (मोतियों की माला की तरह) हो जाता है।
- सितम्बर से ऊपर से तीसरी, चौथी पत्ती पीली हो जाती। अगोला सूख जाता
- गन्ने के तने को लम्बवत फाड़ने पर गन्ने का गूदा लाल रंग का तथा बीच सफेद धब्बे दिखाई देते।
- सॅूघने पर सिरके जैसी गंध आती है। रोग बढ़ने पर पूरा गन्ना जाता है।
- अभी तक रोग बचाव के लिए गन्ना बीज को 12 घंटा तक दवायुक्त पानी में भिगोकर रखना पड़ता था। -----------------------
इस तरह लाल सड़न रोग से होता बचाव
सेट ट्रीटमेंट डिवाइस में एक आंख के टुकड़ा डालकर फफूंदीनाशक (कार्बेन्डाजिम/ थायोफिनेट मेथिल 0.2 प्रतिशत) के साथ उपचारित करते हैं। वैक्यूम प्रेशर बनने 20 मिनट के अंदर फंफूदीनाशक दवा गन्ने में अवशोषित हो जाती है। इससे जीवाणुमुक्त बीजजनित गन्ना तैयार हो जाता है। यदि शीघ्र एवं मध्य देर की किस्मों का संतुलन बनाकर गन्ना खेती की जाए तो भी लाल सड़न रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
डा. ज्योत्स्नेंद्र सिंह, निदेशक, यूपीसीएसआर