शिक्षा से नेत्रहीनों के जीवन में उजियारा फैला रहे आयुष
वे आंखों से देख नहीं सकते है लेकिन जीवन में कुछ हासिल करने की चाहत रखते हैं। ऐसे जीवट व उत्साही दिव्यांगों का सहारा बने हैं। अल्हागंज के बगिया मुहल्ला निवासी आयुष प्रताप सिंह। जो गूगल मीट के माध्यम से नेत्रहीन बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा फैलाने में जुटे हैं
जेएनएन, शाहजहांपुर :
वे आंखों से देख नहीं सकते है, लेकिन जीवन में कुछ हासिल करने की चाहत रखते हैं। ऐसे जीवट व उत्साही दिव्यांगों का सहारा बने हैं। अल्हागंज के बगिया मुहल्ला निवासी आयुष प्रताप सिंह। जो गूगल मीट के माध्यम से नेत्रहीन बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा फैलाने में जुटे हैं। उनकी इस निश्शुल्क पाठशाला में उप्र ही नहीं बल्कि मप्र, बिहार, गुजरात समेत कई प्रदेशों के नेत्रहीन छात्र-छात्राएं जुड़े हैं। हाईस्कूल तक करीब 20 छात्र-छात्राओं को नियमित विज्ञान की निश्शुल्क पढ़ाई कराते हैं। ताकि नेत्रहीनों का भविष्य भी संवारा जा सके। इस तरह देते हैं जानकारी
ब्रेल लिपि पढ़ाई ने नेत्रहीनों को शिक्षा की राह दिखाई है। किताबों पर उभरे अक्षरों को न सिर्फ यह छात्र-छात्राएं आसानी से समझ लेते हैं बल्कि उसे लिख भी लेते हैं। गूगल मीट से जुड़े बच्चों को यदि कुछ समझने में कठिनाई होती है तो वह अपने स्वजन को भी आयुष प्रताप की पाठशाला से जोड़ लेते हैं ताकि वह खुद समझने के बाद विस्तार से इन बच्चों को बता सके। संक्रमण काल से हुई शुरुवात
जीएफ कालेज से एमए कर रहे आयुष ने दो साल पहले कोरोना संक्रमण में निश्शुल्क पढ़ाना शुरू किया था। तब से हर दिन शाम को करीब छह बजे से वह नेत्रहीन बच्चों के साथ जुड़कर उनके जीवन से अंधेरा निकालने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे मिली प्रेरणा
क्षेत्र के ही हलु नगला गांव निवासी करन सिंह छत्तीसगढ़ में यूनीसेफ में कार्यरत हैं। करन सिंह ने दो साल पहले आयुष को बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाते देखा था। तब उन्होंने नेत्रहीन बच्चों को भी गूगल मीट के जरिये पढ़ाने के लिए कहा। करन ने कुछ बच्चों के नंबर उन्हें बताए जिसके बाद यह सिलसिला बढ़ता चला गया। मुहल्ले में भी लगती है पाठशाला
कोरोना संक्रमण की वजह से बेसिक स्कूल के बच्चों की पढ़ाई पर सबसे ज्यादा असर पड़ा था। ऐसे में आयुष ने निश्शुल्क पाठशाला खोली थी। जिसमे पढ़कर बच्चे अपना भविष्य संवारने लगे।