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3500 में ड्राइविग लाइसेंस, 2200 में वाहन ट्रांसफर

निगरानी के लिए हजारों रुपये खर्च कर सिस्टम आनलाइन हो गया। छापे मारे गए अधिकारी निलंबित हुए लेकिन परिवहन विभाग में दलालों की घुसपैठ बंद नहीं हो सकी। यहां अब भी कोई काम तब तक नहीं होता जब तक दलाल नहीं चाहते

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Nov 2021 01:21 AM (IST)Updated: Fri, 26 Nov 2021 01:21 AM (IST)
3500 में ड्राइविग लाइसेंस, 2200 में वाहन ट्रांसफर
3500 में ड्राइविग लाइसेंस, 2200 में वाहन ट्रांसफर

जेएनएन, शाहजहांपुर : निगरानी के लिए हजारों रुपये खर्च कर सिस्टम आनलाइन हो गया। छापे मारे गए, अधिकारी निलंबित हुए, लेकिन परिवहन विभाग में दलालों की घुसपैठ बंद नहीं हो सकी। यहां अब भी कोई काम तब तक नहीं होता जब तक दलाल नहीं चाहते। अगर कोई नियम-कायदे से काम कराना भी चाहे तो उसे चक्कर पर चक्कर काटने होते हैं। समस्या पुरानी है, पर इसका इलाज अब तक नहीं हो सका और जिस तरह के हालात हैं उसमें सुधार की गुंजाइश दिखती भी नहीं। काम तो इस कार्यालय में होता है, लेकिन उसके दाम बाहर दुकानों पर तय होते हैं। विभाग ने भले ही फीस निर्धारित कर रखी हो, लेकिन जेब ज्यादा ढीली किए बिना काम होना मुश्किल है।

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समय गुरुवार दोपहर करीब 12 बजे। नियामतपुर गांव स्थित परिवहन विभाग कार्यालय। यहां गेट पर एक व्यक्ति चार पांच लोगों से घिरा हुआ था। बगल में कई आवेदन दबे हुए थे। जागरण टीम के सदस्य वह लाइसेंस आवेदक बनकर पहुंचे। संबंधित कार्यालय के बारे में जानकारी चाही तो बोला कि लाइसेंस यहीं बन जाएगा। लर्निंग व पक्के लाइसेंस के 3500 रुपये पड़ेंगे। अधिक रुपये देने से मना किया तो कहने लगा, सरकारी फीस तो 1350 रुपये ही है मगर, लाइसेंस बनने की गारंटी नहीं है। टेस्ट में फेल हो सकते हो। अगर पास हो भी गए तो चक्कर लगाते रहोगे। मेरा कहा मानो, 3500 रुपये दो। सिर्फ तीन बार आना होगा, बाकी जिम्मेदारी हमारी। लाइसेंस आवेदन के दिन ही मिल जाएगा।

इस बीच पास में खड़े निगोही के ढकिया गांव निवासी युवक ने पुवायां कस्बे के आए युवक से लाइसेंस के 3500 रुपये तय कर लिए। आरआइ ने फार्म में कमियां बताकर उसे वापस भेज दिया था। पांच मिनट बाद वही युवक कान में फोन लगाकर उनके पास पहुंचा और एक नेता से बात कराई तो फार्म तत्काल पास हो गया।

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11 माह बाद बढ़ी फाइल

वहां से हटकर अन्य आवेदकों के हाल जानने का प्रयास किया। ददरौल के घुसगवां गांव निवासी सुखपाल सिंह ने बताया कि उन्होंने बाइक ट्रांसफर कराने के लिए 11 माह पहले आवेदन किया। एआरटीओ प्रशासन ने साइन भी कर दिए थे, लेकिन पटल संख्या छह पर तैनात बाबू के पास से फाइल आगे नहीं बढ़ी। गुरुवार को अपने भाई प्रेमपाल सिंह सिंह के साथ पहुंचे सुरजीत को बताया गया कि फाइल नहीं मिल रही है। जब प्रेमपाल ने कुछ अलग में बात की तो कुछ ही देर में फाइल ढूंढकर उसे दूसरे पटल पर बढ़ा दिया गया।

दुकान पर तय होते रेट

गेट के सामने एक दुकान पर मौजूद व्यक्ति से वाहन ट्रांसफर के बारे में पूछा तो बताया दो पहिया वाहन की ट्रांसफर की फीस वैसे तो 150 रुपये है, लेकिन उसमें काफी समय लगेगा। काम बिना झंझट जल्दी चाहिए तो 1500 रुपये देने पड़ेंगे। इसी तरह चार पहिया के लिए 2200 रुपये बताए। जबकि इसकी सरकारी फीस 300 रुपये है।

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ठेलों पर भी होती है बुकिग

परिवहन विभाग कार्यालय के बाहर चाट, पकौड़ी आदि के ठेले लगे हैं। वहां भी लाइसेंस बनवाने से लेकर अन्य काम कराने की बुकिग होती हैं। जलेबी बेच रहे एक ठेले वाले से जब बात को तो बोला भैया चक्कर में न पड़ो हम एक व्यक्ति से मिलवा देते है उसके साथ चले जाओ काम तुरंत हो जाएगा।

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यह है लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया

लाइसेंस बनवाने के लिए परिवहन विभाग की वेबसाइट श्चड्डह्मद्ब1ड्डद्धड्डठ्ठ.द्दश्र1.द्बठ्ठ पर आनलाइन प्रक्रिया पूरी करते हैं। फीस 350 रुपये जमा होने के बाद सुविधानुसार तिथि निर्धारित कर कार्यालय संबंधित कार्य बायोमैट्रिक आदि को करा सकते हैं। प्रक्रिया पूरी होने पर उसी दिन शाम तक मोबाइल पर लर्निंग लाइसेंस बनने का मैसेज आ जाएगा। इसी तरह स्थाई लाइसेंस की प्रक्रिया भी एक दिन में ही पूरी हो जाती हैं। कार्रवाई के बाद भी नहीं सुधार

10 सितंबर 2020 को सर्तकता अधिष्ठन (विजिलेंस) की टीम ने परिवहन कार्यालय में छापा मारा था। तब आरआइ व मुख्य लिपिक के अलावा यहां 21 बाहरी लोगों को पकड़ा था। चार लाख से अधिक का ओवरकैश भी बरामद हुआ था। आरआइ व लिपिक निलंबित हुए थे। कार्यालय में मिले लोगों को जेल भेजा गया था। कार्यालय में बाहरी व्यक्ति न आएं इसके लिए एसपी को चार बार पुलिसकर्मियों की तैनाती के लिए पत्र लिख चुके हैं। एक होमगार्ड व सिपाही को भेजा भी गया, लेकिन वह गेट पर कम कार्यालय में ज्यादा घूमते हैं। प्रयास रहता है कि आनलाइन व्यवस्था के तहत ही काम हों। जागरूकता के अभाव में आवेदक बाहरी लोगों के चक्कर में फंस जाते हैं। गेट के बाहर लगी दुकानों को बंद कराने के लिए भी पत्र लिखे जा चुके हैं।

महेंद्र प्रताप सिंह, उप संभागीय अधिकारी प्रशासन


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