75 साल में खोया अपनापन और सुकून
शाहजहांपुर : दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है। मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है..। यह
शाहजहांपुर : दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है। मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है..। यह पंक्तियां अपने आप में बहुत कुछ बयां करती हैं। जब हम ¨चतन करते हैं कि आगे बढ़ने में हम सबने क्या खोया और क्या पाया है? यह सच है, इन 75 वर्षों में हमने भौतिक धरातल पर काफी प्रगति की है। टूटी-फूटी कंक्रीट की सड़कों को चार व छह लेन में बदला है, पर इसके साथ ही सड़क दुर्घटनाओं में भी काफी वृद्धि हुई है। यह स्थिति सिर्फ इसी मामले में नहीं है। लगभग हर क्षेत्र में हमने बदलाव व प्रगति के नाम पर हासिल करने के साथ ही नुकसान भी काफी उठाए हैं। यानी अपनापन खोया है।
सस्ती हुई जिंदगी
रोज खबर आती है, हादसे में जान गंवाई या फिर घायल हो गए। मन दुखी होता है। सात दशक पहले न तो ज्यादा पढ़े लिखे थे और न ही जागरूक। उस समय वाहनों की संख्या कम थी, यातायात के साधन भी सीमित थे। ऐसे में दुर्घटनाएं भी न के बराबर होती थीं। अब जबकि तमाम संसाधन हैं, जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। बावजूद लोगों की जान जा रही है।
घट गए मानवीय मूल्य
एक बात और। हमने अपनापन और सुकून भी खो दिया। संयुक्त परिवार बीते जमाने की बात हो गए। पहले जरा सी परेशानी होने पर पूरा परिवार, मित्र, रिश्तेदार एकजुट हो जाते थे। अब मौत पर भी लोग श्मशान में औपचारिकता निभाने जाते हैं। हमारे मानवीय मूल्य व संस्कारों में तेजी से गिरावट आई है।
बिगड़ रहा बच्चों का मिजाज
पहले हम राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में कबड्डी खेला करते थे। अब मैदान व खेल खत्म हो गए। बच्चे मोबाइल व टीवी तक सिमट गए। उनका मानसिक विकास थम गया। बड़ों की इज्जत न करना आम बात हो गई है। पहले मुहल्ले के कोई बच्चा गलत काम करता था तो पड़ोसी टोकते थे। अब तो बच्चों में बड़ों का लिहाज खत्म हो गया।
जागरण दिखा रहा राह
इस सबके बीच दैनिक जागरण की पत्रकारिता में कोई बदलाव नहीं आया। कलेवर व अंदाज बदला, लेकिन सामाजिक सरोकारों की पत्रकारिता हमेशा हुई। जागरण भौतिक उपलब्धियों के साथ मानवीय संवेदनाओं को भी जगाने का काम करता है।
- डॉ. अवधेश मणि त्रिपाठी, समाजसेवी