Move to Jagran APP

रोजगार छिन जाने व कारोबार बंद होने का दर्द बरकरार

लॉकडाउन में रोजगार छिन जाने व कारोबार बंद होने से परेशान जिले के भी बड़ी संख्या में लोगों को काफी दुश्वारियां झेलनी पड़ी। कोरोना संकटकाल में कई निजी प्रतिष्ठान के मालिकों ठेकेदारों ने सहयोग करने के बजाय दूरियां बना ली। मकान मालिक भी दया दिखाने के बजाय किराया मांगने लगे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 07:00 AM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 07:00 AM (IST)
रोजगार छिन जाने व कारोबार बंद होने का दर्द बरकरार
रोजगार छिन जाने व कारोबार बंद होने का दर्द बरकरार

संत कबीरनगर: लॉकडाउन में रोजगार छिन जाने व कारोबार बंद होने से परेशान जिले के भी बड़ी संख्या में लोगों को काफी दुश्वारियां झेलनी पड़ी। कोरोना संकटकाल में कई निजी प्रतिष्ठान के मालिकों, ठेकेदारों ने सहयोग करने के बजाय दूरियां बना ली। मकान मालिक भी दया दिखाने के बजाय किराया मांगने लगे। कई बार गिड़गिड़ाने पर कुछ मालिक इन्हें भोजन कराने लगे। घर लौटने पर दो वक्त की रोटी की समस्या दूर हुई। कई मजदूर होम क्वारंटाइन हैं,तो अन्य को अब काम की चिंता सता रही है। इन सबके बीच परदेस में लॉकडाउन के शुरूआती दिनों को ये भुला नहीं पा रहे।

loksabha election banner

ठेकेदार ने दिए सिर्फ एक हजार

सेमरियावां ब्लाक के थवईपार गांव के 26 वर्षीय अनुज ने कहा कि वे आठ माह पहले तमिलनाडु गए थे। ठेकेदार के निर्देशन में रंगाई-पुताई का काम करते थे। उनकी कमाई से ही घर का खर्च चल रहा था। लॉकडाउन में काम मिलना बंद हो गया। कई बार कहने पर ठेकेदार ने बड़ी मुश्किल से उन्हें एक हजार रुपये दिए थे। यह पैसा करीब दस दिन में दो वक्त की रोटी के इंतजाम में खर्च हो गया। इसके बाद उनकी खराब स्थिति को देखकर पड़ोसी उन्हें भोजन कराते रहे। इसी बीच मकान मालिक भी किराए का पैसा मांगने लगे। काफी गिड़गिड़ाने और दोबारा यहां आने पर किराए का पैसा देने की बात कहने पर मकान मालिक मान गया। एक सप्ताह पहले ये ट्रेन से खलीलाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरे और किसी तरह गांव में पहुंचे।

मकान मालिक की दया पर मिलता था भोजन

सेमरियावां के 40 वर्षीय संजय ने कहा कि वे करीब चार माह पूर्व चेन्नई गए थे। यहां पर मार्बल की घिसाई का काम करते थे। जो मजदूरी मिली थी, उस पैसे को बच्चों की परवरिश के लिए घर भेज दिया था। लॉकडाउन प्रभावी होते ही काम मिलना बंद हो गया। भूखों मरने की नौबत आ गई। पैसे की तंगी व भोजन की चिता की बात जब मालिक से कई बार कहा तो उन्हें बाद में दया आई और भोजन देने लगे। ट्रेन के जरिए एक सप्ताह पहले वे गांव पहुंचे।

चेहरे पर आज भी गुजरे दिनों का दर्द

धनघटा तहसील क्षेत्र के मुठहीकलां गांव के बृजभान ने कहा कि वह मुंबई में रंगाई-पुताई का काम करते थे। लॉकडाउन में ठेकेदार ने खर्चा देने से इंकार कर दिए। जब तक पैसा था, काम चला लेकिन पैसा समाप्त होने पर बहुत दर्द झेला हूं। इसी गांव के जितेंद्र कुमार ने कहा कि वे हरियाणा में आलमारी बनाने का काम करते थे। लॉकडाउन लगने पर खोजने पर भी कंपनी के मालिक नहीं मिले। किसी प्रकार वे घर पहुंचे। इसी गांव के लालचंद्र ने कहा कि वे हरियाणा में मजदूरी थे। काम बंद होने से रोटी के लाले पड़ गए। मजबूर होकर उन्हें घर आना पड़ा। इसी गांव के धीरज कुमार ने कहा कि वे मुंबई में एसी बनाने का काम करते थे। लॉकडाउन लगने पर कंपनी के मालिक ने काम से निकाल दिया। किसी प्रकार वे गांव में पहुंचे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.