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पशु आश्रय केंद्रों पर उधार के मजदूर

एक प्रचलित कहावत है कि खरी मजूरी चोखा काम। अर्थात मजदूरी नकद मिले तो काम अछा होता है। मजदूर का पसीना सूखने से पहले मजदूरी हाथ में होनी चाहिए कितु सरकार द्वारा कांटे क्षेत्र में संचालित गोआश्रय केंद्रों पर गोवंश की देखभाल कर रहे श्रमिकों को तीन माह काम करने के बाद भी मजदूरी नहीं मिली है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 11 Nov 2019 11:47 PM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 06:25 AM (IST)
पशु आश्रय केंद्रों पर उधार के मजदूर
पशु आश्रय केंद्रों पर उधार के मजदूर

संतकबीर नगर: एक प्रचलित कहावत है कि खरी मजूरी, चोखा काम। अर्थात मजदूरी नकद मिले तो काम अच्छा होता है। मजदूर का पसीना सूखने से पहले मजदूरी हाथ में होनी चाहिए, कितु सरकार द्वारा कांटे क्षेत्र में संचालित गोआश्रय केंद्रों पर गोवंश की देखभाल कर रहे श्रमिकों को तीन माह काम करने के बाद भी मजदूरी नहीं मिली है। गोशालाओं का संचालन अगस्त माह में हुआ, किन्तु मजदूरों के लिए बजट का इंतजाम आज तक नहीं हो सका। इन केंद्रों पर उधार पर काम कर रहे मजदूरों का मन काम में नहीं लग रहा है। ऐसे ही कुछ दिन और चलता रहा तो वह काम छोड़ देंगे।

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जिगिना, पिपरा कला, रायपुर छपिया उर्फ ठोका, जगदीशपुर उर्फ लहुरादेवा, गरथवलिया और कुसमैनी में गोशालाओं का निर्माण हुआ है। कुसमैनी की गोशाला अभी संचालित नहीं है। अन्य पांच केंद्रों में लगभग 250 बेसहारा पशु हैं। उनकी देखभाल के लिए डेढ़ दर्जन मजदूर दो पालियों में काम कर रहे हैं। गोआश्रय केद्र जिगिना में आठ, रायपुर छपिया में दो, गरथविला में तीन, लहुरादेवा में तीन और पिपरा कला में दो मजदूरों को गोवंश की देखभाल के लिए रखा गया है।

जिगिना केंद्र पर तैनात मजदूर रामचरण, सुभाष, तुलसीराम, रामलखन, इद्रीष, चंद्रिका प्रसाद आदि ने बताया कि केंद्र के संचालन होने के दिन से ही वे लोग गोवंश की सेवा में लगे हैं, कितु अब तक मजदूरी नहीं मिली है। पिपरा केंद्र पर कार्यरत मनीराम और चंद्रिका ने बताया कि निरीक्षण में आए अधिकारियों से मजदूरी जल्द दिलाए जाने की मांग की थी, अधिकारियों ने आश्वासन भी दिया था कि दीपावली के पहले ही उनकी मजदूरी का भुगतान करा दिया जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ।


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