कभी जड़ी बुटियों के लिए प्रसिद्ध था कबीर विज्ञान केंद्र..!
धनघटा तहसील मुख्यालय से लगभग 12 किमी पश्चिम पचरा गांव में स्थित कबीर विज्ञान केंद्र। यहां न केवल कबीर के अनुयायी संत समागम करते थे अपितु गैर जनपदों से लोग यहां आते थे।
संतकबीर नगर: धनघटा तहसील मुख्यालय से लगभग 12 किमी पश्चिम पचरा गांव में स्थित कबीर विज्ञान केंद्र। यहां न केवल कबीर के अनुयायी संत समागम करते थे अपितु गैर जनपदों से लोग यहां आते थे। असाध्य रोगों के उपचार के लिए दुर्लभ मानी जाने वाली जड़ी बुटियां यहां मिलती थी। इसका सेवन करके लोग स्वस्थ होते थे। इसलिए यह विज्ञान केंद्र काफी प्रसिद्ध माना जाता था। कुछ वर्षाे से शासन-प्रशासन की उदासीनता के कारण यह विज्ञान केंद्र बदहाल हो गया है। सुमिरन साहब ने रखी थी इसकी नींव
सैंकड़ों वर्ष पूर्व कबीर विज्ञान केंद्र की नींव धनघटा तहसील क्षेत्र के पचरा गांव के निवासी स्वर्गीय सुमिरन साहब ने रखी थी। इनके सहयोग में भूदला देवी व ज्ञान साहब भी रहा करते थे। इन लोगो के सहयोग से यहां चर्मरोग,दमा अस्थमा,गठिया,बुखार के अलावा असाध्य रोगों का उपचार जड़ी बुटियों से किया जाता था। सस्ती के दौर में जड़ी-बुटियों के देखरेख के लिए आसानी से मजदूर कम मजदूरी पर मिल जाया करते थे। इसलिए कम पैसे में लोगों का उपचार भी हो जाता था। जैसे-जैसे महंगाई का दौर आता गया वैसे-वैसे मजदूर व उपचार की लागत भी बढ़ती गई।
उपेक्षा का शिकार हुआ यह केंद्र
शासन-प्रशासन स्तर से सहयोग मिलने के बजाय इसकी उपेक्षा की गई। इसका परिणाम यह रहा कि दिन-ब-दिन जड़ी-बुटियां समाप्त होती गई। कुछ दिनों तक कुआनों का रूख भी इस विज्ञान केंद्र पर उग्र हो गया था। कटान के चलते लगभग दो बीघा जमीन नदी में समा गई थी। इससे इस केंद्र का क्षेत्रफल पहले की तुलना में कम हो गया। शासन व प्रशासनिक उदासीनता से यह केंद्र बदहाल हो गया।
क्या कहते हैं केंद्र के महंत
कबीर विज्ञान केंद्र के महंथ आजमगढ़ निवासी 50 वर्षीय सुकृत साहब का कहना है कि इस केंद्र पर महंगाई से जड़ी बुटियां समाप्त हो गई। हर तीसरे वर्ष यहां संत समागम व भंडारे का आयोजन किया जाता है। इसमें गैर जनपद व प्रांत से कबीर के अनुयायी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आते हैं। शासन व प्रशासन स्तर से सहयोग न मिलने से इस केंद्र की स्थिति दयनीय है।
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