धूप-छांव के खेल में झुलसा,खैरा की चपेट में धान की फसल
संतकबीर नगर : खरीफ के सीजन में बरसात तो अच्छी हुई लेकिन जैसा चाहिए बरसात का वैसा परिणाम फसलों पर नही
संतकबीर नगर : खरीफ के सीजन में बरसात तो अच्छी हुई लेकिन जैसा चाहिए बरसात का वैसा परिणाम फसलों पर नहीं दिखा। कारण यह रहा कि शुरुआत में धूप उसके बाद बरसात और फिर से कड़कड़ाती धूप ने फसलों को संजीवनी देने के बजाय नुकसान पहुंचाया। आलम यह रहा कि जहां धान की फसल झुलसा और खैरा रोग की चपेट में आ गई। जबकि उस पर तना छेदक कित भी हाबी हो गए हैं। वहीं पर अन्य फसलें भी पूरी तरह से विकास नहीं कर पाई।
मौसम मुफीद होने के बाद भी फसलों पर ग्रहण जैसा लगा हुआ है। हालत यह है कि खरीफ की फसलें धान से लगायत मक्का,ज्वार,बाजरा, उड़द आदि पूरी तरह से विकास नहीं कर पाई हैं।
मौसम पर किसानों की राय
शंकरपुर गांव की सरयू प्रसाद ने बताया कि इस साल नर्सरी डालने से लेकर धान को लगाने तक भीषण धूप ने किसानो को काफी परेशान किया। किसानों ने फिर भी एक दो पानी अपने खेतों को देकर धान की फसल को जीवित रखा। इसी बीच किसानों ने ज्वार, बाजरा,मक्का,उड़द की फसलें भी लगा दी।
पड़रिया निवासी किसान राम ¨सह ने बताया कि किसानों ने धान की फसल को शुरुआती दौर में एक दो पानी लगाकर जीवित रखा। इसके बाद बरसात का फसलों को अच्छा साथ मिला जिस से फसलों में रौनक आई और फसलें तेजी से विकास की ओर बढ़ने लगी। लेकिन इसी बीच अगस्त के महीने में हुई भीषण धूप ने फसलों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। जिसके परिणाम स्वरुप फसल में झुलसा और खैरा रोग प्रभावी होने लगे। अब तो तना छेदक कीट धान की फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं।
तिलकू पुर गांव के बीदुर ने बताया कि धान के खेतों में खैरा रोग कुछ इस कदर हावी हो गया है। किसानों को समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करें। आलम यह हुआ कि किसानों ने तरह-तरह की दवाइयों पर हाथ आजमाया फिर भी परिणाम सिफर रहा। जिससे फसलें विकास के बजाय नीचे की ओर चली गई। ऐसा अधिकतर किसानों के खेतों में देखा गया।
बक्शी जोत के रामसूरत ने बताया कि शुरुआती दौर में धूप उसके बाद बरसात और फिर से धूप में अन्य फसलों पर भी प्रभाव डाला। जिससे मक्का, ज्वार,बाजरा,उड़द,अरहर की फसलें पूरी तरह से विकास नहीं कर पाई। स्थिति यह बनी हुई है कि आज भी मक्के में अच्छी बालियां नहीं लग रही है। विशेषज्ञ की राय
इस संबंध में पूछे जाने पर एडीओ एजी पौली जगत नारायण ने बताया कि इस स्थिति में प्रति एकड़ 300 एम एल लैंब्डा को तकरीबन डेढ़ सौ लीटर पानी में छिड़काव करने के साथ ही एम 45 और ¨जक की खुराक दी जाए तो यह रोग जल्द ही ठीक हो जाएगा। लेंबडा की आवश्यकता इस नाते भी पड़ती है। क्योंकि फसलों में इसी समय तना छेदक भी लगते हैं।