रेफर होते हैं मरीज, कइयों ने तोड़ा रास्ते में दम
संतकबीर नगर : जले हुए मरीजों की हालत बेहद गंभीर वैसे ही होती है। हर पल मौत के मुंह में समाते इन मर
संतकबीर नगर :
जले हुए मरीजों की हालत बेहद गंभीर वैसे ही होती है। हर पल मौत के मुंह में समाते इन मरीजों के लिए जिस बेहतर इलाज की तत्काल जरुरत होती है लेकिन वह संयुक्त जिलाचिकित्सालय में नहीं दिखती। इलाज के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है। अमूमन भर्ती मरीजों को
प्राथमिक उपचार ही नसीब हो पाता है। करीब 90 फीसद मरीज गोरखपुर मेडिकल कालेज के लिए रेफर होने को मजबूर होते हैं। अस्पताल में संसाधन न रहने से कई मरीजों की जाने भी जा चुकी है।
जिला अस्पताल में हर माह भर्ती होने वाले जले हुए मरीजों की संख्या अमूमन दो से पांच रहती है। कई बार हाई वोल्टेज करंट और आग की घटनाओं के चलते एक साथ कई लोग यहां आते हैं। मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद अक्सर रेफर कर दिया जाता है। जिला अस्पताल मे
जले हुए मरीजों के लिए बकायदा बर्न यूनिट होनी चाहिए लेकिन हकीकत इससे जुदा है। दूसरी मंजिल पर बने सामान्य वार्ड के एक केबिन में बर्न मरीजों के भर्ती करने की व्यवस्था की गई है। जिस केबिन में यह मरीज भर्ती होते हैं, उसके न तो एसी लागू है और न ही कोई खास साफ-सफाई ही रहती है।
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क्या है मानक :
नियमानुसार बर्न यूनिट में एसी लगा होना चाहिए। डिस¨फगरमेंट को दुरुस्त करने के लिए साइकोथिरेपी और
रिहैविलिटेशन की सुविधा मरीजों को मिले। डा. एस रहामन ने बताया कि उपलब्ध संसाधन और दवाओं के तहत उपचार किया जाता है। ज्यादा गंभीर मरीज के परिजन आमतौर पर खुद बाहर इलाज कराने की पहल करते हैं। सरकार के द्वाराउपलब्ध कराए गए संसाधनों मे ही सभ्ज्ञी कार्य करने होते है ।
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संक्रमण का खतरा
आग से जले मरीज जब अस्पताल में आते हैं तो उन्हें प्राथमिक उपचार के लिए भर्ती तो कर लिया जाता है, लेकिन इलाज के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां नहीं पूरी हो पाता। इससे पीड़ित मरीजों को इन्फेक्शन का खतरा रहता है। तीमारदार ही मच्छरदानी तथा मक्खी-मच्छर से बचाव को कॉयल की व्यवस्था करता है।
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इनकी हो चुकी है मौत
- धनघटा थाना क्षेत्र के किठियुरी गांव निवासिनी मंजू पत्नी सम्पूर्णा
- धर्मसिहवां थाना क्षेत्र के अतरीनानकार गांव निवासिनी मंशा देवी पत्नी नितेश उपाध्याय
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इलाज के बाद सर्जरी बर्न यूनिट में जले मरीजों के लिए कई आधुनिक चिकित्सकीय उपचार होते हैं। खासकर ऐसे मरीज के जले अंग कुरूप हो जाते हैं। बड़े अस्पतालों में इन मरीजों के लिए रिहैविलिटेशन थिरेपी के तहत उन अंगों की सर्जरी की आवश्यकता होती है। कई बार इन अंगों का संचालन दुरुस्त करने के लिए इंस्टूमेंट का सहार लेना पड़ता है। ये व्यवस्थाएं यहां उपलब्ध नहीं हैं। जिला अस्पताल में बर्न यूनिट नहीं है। वार्ड में ही एक केबिन में प्राथमिक उपचार की व्यवस्था की गई है। जालीनुमा नेट लगाया गया है। मक्खी-मच्छर से बचाव को कॉयल जलाया जाता है। जले हुए मरीज को सर्जन द्वारा उपचार दिलाया जाता है।
प्रभारी सीएमएस
डा. वाइपी ¨सह
-- जनपद के जनसंख्या को देखते हुए वर्न यूनिट होना बहुत ही आवश्यक है।आए दिनों ऐसे मरीजो को संसाधनों
की कमी के कारण गोरखपुर मेडिकल कालेज के लिए रेफर किया जाता है। इससे कि उनके जान को जोखिम भी रहता है। यूनिट की स्थापना के लिए शासन को पत्र लिख रहा हूं।
डा. अभय चंद्र श्रीवास्तव सीएमओ संतकबीर नगर