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इस्लाम व इंसानियत के लिए हजरत इमाम हुसैन ने दी शहादत

हजरत इमाम हुसैन ने अपने तमाम साथियों व अपने खानदान की कुर्बानी दी थी। हक और शफाकत की राह में दसवीं मोहर्रम सन 61 हिजरी में कर्बला में खुद सबके साथ शहादत पाई थी। शहादत की घटना ने फतह व शिकश्त के न्यार को ही बदल कर रख दिया। उसी समय से मोहर्रम का चांद दिखते ही

By JagranEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 11:59 PM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2019 06:30 AM (IST)
इस्लाम व इंसानियत के लिए हजरत इमाम हुसैन ने दी शहादत
इस्लाम व इंसानियत के लिए हजरत इमाम हुसैन ने दी शहादत

संतकबीर नगर: हजरत इमाम हुसैन ने अपने तमाम साथियों व अपने खानदान की कुर्बानी दी थी। हक और शफाकत की राह में दसवीं मोहर्रम सन 61 हिजरी में कर्बला में खुद सबके साथ शहादत पाई थी। शहादत की घटना ने फतह व शिकश्त के न्यार को ही बदल कर रख दिया। उसी समय से मोहर्रम का चांद दिखते ही गम-ए-इजहार किया जा रहा है। ..या हुसैन..या हुसैन की सदाएं गूंजती हैं। दस दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में समुदाय के लोग रोज अलग-अलग जगह पर मजलिस में जुटे हैं। आठवीं के बाद तैयारियां तेज हो गई है। इसकी रंगत व रौनक देखते ही बन रही है।

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यह आपसी सौहार्द का प्रतीक है

मोहर्रम मुसलमानों का त्योहार है। इसके बाद भी जनपद में अनेक स्थान पर हिदू और मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के लोग मिल-जुल कर इस पर्व को मनाते हैं। मेंहदावल में कई हिदू परिवार के लोग अपनी मन्नत को लेकर व्रत रखते है। ताजियों को मोर पंख से हवा देते हैं। ताजिया दफन होने के बाद व्रत तोड़ते हैं। यहां का मोहर्रम न केवल अनूठी परंपरा का एक मिसाल बन गया है अपितु यह आपसी एकता का भी परिचायक है। यह समाज को आइना दिखाने का कार्य कर रही है।

अकीदत से करें दीदार

हजरत की याद में एहतराम से जुलूस निकाला जाता है। इसमें हिदु-मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग शरीक होते है। मोहर्रम-उल-हराम गम का महीना है। इस महीने की दसवीं तारीख को इमामे मकाम का दिन है। इस दिन ताजिया जुलूस में अकीदत से पेश आना चाहिए। ताजिया का दीदार एहतराम से किया जाना चाहिए।

-मौलाना कारी महबूब

मरसतुल कुरान खलीलाबाद अदब से दिखे आइना

मोहर्रम में भारी संख्या में लोग हिस्सा लेते है। हुसैन के याद में मातम होता है। मुस्लमानों के साथ कई हिदू परिवार अपनी मन्नत को लेकर ताजियों को मोर पंख से हवा देते हैं। संयमित जुलूस निकाला जाना चाहिए। मोहर्रम में अदब का ख्याल रखा जाता है। यह पर्व समाज को आइना दिखाता है।

मौलाना आजम-खलीलाबाद हर वर्ग का सहयोग अपेक्षित

मोहर्रम में हर वर्ग का सहयोग अपेक्षित है। मार्ग पर जुलूस निकलते समय प्रशासन द्वारा इंतजाम किए जाते हैं। हम सभी बच्चों को भी त्योहार की महत्ता से वाकिफ कराते हैं। बड़ों को भी निगरानी करने की जरूरत है। व्यवस्था को और सु²ढ करने के लिए हर वर्ग का सहयोग अपेक्षित है।

मौलाना हासिम-खलीलाबाद ताजिया का महत्व

ताजिया का महत्व है। कई पीढि़यों से ताजिया बैठाई जा रही है, जुलूस निकाला जाता है। इसमें सभी का सहयोग मिलता है। इस बार हम लोग तेज साउंड वाले ध्वनि प्रसारण यंत्रों का प्रयोग नहीं करेंगे। शांतिपूर्ण व सादगी से जुलूस निकालेंगे और इसके लिए औरों को भी प्रेरित करेंगे।

कासिम-खलीलाबाद आशूरे की अहमियत

मोहर्रम की दस तारीख की अहमियत जगह-जगह बयान की गई है। इस तारीख में इस्लामी इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण घटनाएं हुई। इसी दिन पैंगम्बर नूसा ने फिरऔन से निजात पाई थी। ईश दूत आदम अलेहिस्लाम की तौबा कबूल हुई। नूह अलैहिस्लम की किश्ती में भयंकर तुफान से घिरने के बाद जूदी पहाड़ पर ठहरी। यौमे आशूरा के मूसा अलैहिस्लाम को फिरऔन के जुल्म से निजात मिली। इसी दिन युसूफ मछली के पेट से बाहर आएं थे। इस दिन ऐसी घटना हुई जिसका विश्व इतिहास में दर्ज है।

डा. दानिश-खलीलाबाद जान न्यौछावर करने की मिशाल

इराक स्थिति कर्बला में सत्य के लिए जान न्यौछावर कर देने की जिदा मिशाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मद के नवासे नाती हजरत हुसैन वजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए थे। जुलूस में हर वर्ग के लोग सहभागी बनते हैं।

- मोहम्मद राशिद कर्बला में आज दफन होगी ताजियां

मोहर्रम की दसवी पर मंगलवार को एहतराम पूर्वक जुलूस निकाला जाएगा। ताजियों का ऐतिहासिक महत्व है। जिले में 755 ताजियां स्थापित की गई हैं जो कर्बला में तफन होंगी। इसका दीदार कर भारी संख्या में लोग सहभागी बनते हैं। यहां दूर दराज से जियारत करने लोग पहुंचते है और मन्नतें पूरी करने के लिए दुआएं मांगते हैं। धनघटा के सुरैना में जंजीरी मातम होगा। शहर में पठान टोला, विधियानी, बंजरिया पश्चिमी, अंसार टोला, बंजरिया, विधियानी, बरदहियां आदि मोहल्लों से निकला मोहर्रम जुलूस को लेकर तैयारियां चल रही है। नगरपालिका खलीलाबाद द्वारा व्यवस्था बनाई जा रहीं है। प्रशासन ने शांति कमेटी की बैठक करके थानावार व्यवस्था बनाई है।


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