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चुरेब रेल हादसा याद आते ही खड़े हो जाते हैं रोंगटे

26 मई 2014 को गोरखधाम सुपरफास्ट ट्रेन चुरेब स्टेशन के सिग्नल आउटर पर हादसे का शिकार हो गई थी। इस हादसे में एक माह की बच्ची सहित कुल 32 लोगों की जान गई थी। चालक दल के दो लोगों की भी मौत हुई थी। हादसे में कुल 158 लोग घायल भी हुए थे।

By JagranEdited By: Published: Thu, 27 May 2021 12:46 AM (IST)Updated: Thu, 27 May 2021 12:46 AM (IST)
चुरेब रेल हादसा याद आते ही खड़े हो जाते हैं रोंगटे
चुरेब रेल हादसा याद आते ही खड़े हो जाते हैं रोंगटे

विकास उपाध्याय, संतकबीर नगर : कहते हैं कि वक्त बीतने के साथ जख्मों का दर्द कम हो जाता है, लेकिन चुरेब रेल हादसे के प्रत्यक्षदर्शियों को वह दिन आज भी याद आता है। दुर्घटना की याद आते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सात वर्ष बीतने के बाद भी जब उस हादसे की याद आती है तो सब कुछ वैसा ही मानस पटल चलचित्र की तरफ घूमने लगता है।

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26 मई 2014 को गोरखधाम सुपरफास्ट ट्रेन चुरेब स्टेशन के सिग्नल आउटर पर हादसे का शिकार हो गई थी। इस हादसे में एक माह की बच्ची सहित कुल 32 लोगों की जान गई थी। चालक दल के दो लोगों की भी मौत हुई थी। हादसे में कुल 158 लोग घायल भी हुए थे। गोरखधाम सुपरफास्ट ट्रेन दुर्घटना की बरसी पर जागरण संवाददाता से बात करते हुए मददगारों और दुर्घटना के शिकार लोगों ने सुनाई डर, खौफ और दर्दभरी दास्तान। उस ट्रेन में परिवार के साथ थे सवार

कौवाटार गांव के रहने वाले सुनील चतुर्वेदी ने बताया कि वह उसी ट्रेन में सवार थे। उनकी पत्नी राधा और उनके तीन बच्चों के साथ बहन सुनैना जिसकी गोद में छह महीने की बेटी भी थी। सभी उसी ट्रेन की बोगी संख्या केबी दो में सवार थे। बात करने के दौरान उन्होंने एक लंबी सांस लेते हुए कहा कि भगवान की असीम अनुकंपा है जो हम सभी बच गए थे। हमारे सामने ही मर गया एक व्यक्ति

चुरेब के राहुल गुप्ता बताते हैं कि दुर्घटना के समय वह घर में सफाई का काम कर रहे थे। बहुत तेज आवाज हुई। बाहर निकला तो पता चला कि ट्रेन लड़ गई है। मौके पर पहुंचा तो हर तरफ चीख पुकार मची थी। हम लोगों ने बोगी में फंसे एक व्यक्ति जो खून से लथपथ था, को निकालना चाहा तो पता चला कि उसका एक हाथ कट चुका है। थोड़ी ही देर में हम लोगों के सामने ही उसकी मौत हो गई।

चुरेब चौराहे पर मिठाई की दुकान चलाने वाले कृष्ण गोपाल बताते हैं कि जब यह हादसा हुआ तो वह अपने दुकान पर मिठाई बना रहे थे। दर्जनों की संख्या में हम लोग तत्काल मौके पर पहुंचे। लोग इतने डरे थे कि हाथ जोड़कर मदद की गुहार लगा रहे थे। हम लोगों ने करीब 15 लोगों को क्षतिग्रस्त बोगी से निकालकर इलाज के लिए अस्पताल भेजा। चुरेब के ही आकाश त्रिपाठी कहते हैं कि जब ट्रेन दुर्घटना हुई तो वह करीब 15 वर्ष के थे। चौराहे से दर्जनों की संख्या में लोग मदद के लिए जा रहे थे। लोगों के साथ वह भी मदद करने के लिए दुर्घटना स्थल पर पहुंचा। वहां की स्थिति देखकर पहले तो है डर गया, लेकिन लोगों की चीख पुकार सुनकर वह मदद में जुट गया। ईश्वर ऐसा मंजर कभी न दिखाएं

खिरीडीहा गांव के राम नारायण कहते हैं कि हादसे के कुछ ही मिनट बाद ही वह मौके पर पहुंच गए थे। वहां का भयावह मंजर आज भी कभी-कभी सपने में दिखाई देता है। घायल लोगों की चीख पुकार आज भी कानों में महसूस होती है। भगवान से यही प्रार्थना है कि ऐसा कभी भी और कहीं भी ना हो। एक ही परिवार के नौ लोगों की हुई थी मौत

नेपाल के लुंबिनी का एक परिवार बहराइच मेले से वापस घर जा रहा था। गोंडा स्टेशन से परिवार के 17 लोग ट्रेन के जनरल बोगी में बैठ गए। हादसे के बाद मात्र आठ लोगों की ही जान बची। नौ लोगों की इस दुर्घटना में मौत हो गई। जिसमें एक तीन माह की बच्ची भी थी। हादसे के बाद बचे हुए लोग अपनों की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। रोते रहे, चिल्लाते रहे और अपनों को खोजते रहे। उग्र ग्रामीणों ने स्टेशन में लगा दी थी आग

दुर्घटना के तत्काल बाद आसपास के गांव से सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण राहत बचाव कार्य में जुट गए थे। ग्रामीणों ने स्टेशन पर पहुंच कर राहत बचाव कार्य में बाधा डाल रही पहले से खड़ी मालगाड़ी को हटाने के लिए स्टेशन मास्टर से कहा, लेकिन मालगाड़ी के ड्राइवर के फरार होने की वजह से मालगाड़ी को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। जिस बात से उग्र होकर ग्रामीणों ने पथराव शुरू कर दिया। पथराव होते ही स्टेशन के सभी कर्मचारी स्टेशन छोड़कर भाग गए। जिसके बाद उग्र ग्रामीणों ने स्टेशन में तोड़फोड़ करके आग लगा दी थी।


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