उम्मीदों की दहलीज पर सिसकती 'पीतल नगरी'
संतकबीर नगर कभी पीतल की नगरी कहा जाने वाला बखिरा अपने पुराने वैभव को पाने की ललक लिए उम्मीदों की दहलीज पर सिसक रही है। एक जिला उत्पाद में शामिल करने के बाद भी पीतल की चमक नहीं बिखर सकी।
संतकबीर नगर: कभी पीतल की नगरी कहा जाने वाला बखिरा अपने पुराने वैभव को पाने की ललक लिए उम्मीदों की दहलीज पर सिसक रही है। एक जिला उत्पाद में शामिल करने के बाद भी पीतल की चमक नहीं बिखर सकी। हुनरमंद हाथ रोजगार से नहीं सज सके। उद्योग लगाने को बैंक में पहुंची फाइलें बस धूल फांक रही हैं।
शासन ने फरवरी-2018 में एक जिला-एक उत्पाद योजना में बखिरा के पीतल बर्तन को शामिल किया गया। इसके जरिये कारीगरों को प्रशिक्षण के साथ ही सस्ता कर्ज देने के वादे किए गए थे। जनपद मुख्यालय से उत्तर करीब 16 किमी दूरी पर स्थित बखिरा कस्बा में लगभग 150 साल पहले कुछ कारीगर हाथ से पीतल के बर्तन बनाने का काम शुरू किए थे। इनकी देखा-देखी बूंदीपार, परतिया, जसवल भरवलिया, मेड़रापार, हरदी, तिघरा, झुंगिया सहित अन्य गांवों के कुछ और कारीगर भी यही काम करने लगे। हाथ से बने पीतल का थारा, पराता, लोटा, करछूल, बटुली, हंडा, थाली, कटोरा सहित अन्य बर्तनों की खरीदारी में काफी रुचि दिखाते रहे। गोरखपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर सहित अन्य जनपदों से लोग बर्तन खरीदने आते थे। लगभग एक दर्जन गांवों के करीब दो हजार कारीगरों की रोजी-रोटी इससे चलती रही। 1995 से कच्चा माल के अभाव में यह उद्योग मंदी की तरफ चल पड़ा। दूसरी ओर हाथ से बने पीतल के बर्तन वजनी होते हैं, इससे इसकी कीमत भी अधिक होती है। मशीन से बने बर्तन हल्के होते हैं, कीमत भी कम होती है। इसलिए बाजार में वजनी बर्तनों की जगह मशीन से बने हल्के बर्तनों की मांग बढ़ गई। कारीगर जिला उद्योग विभाग के जरिये प्रशिक्षण प्राप्त करने और बैंक से सस्ता कर्ज पाने का प्रयास किए। कस्बे के 34 कारोबारी बैंक से कर्ज के लिए फाइल लगाए हैं, लेकिन अभी तक उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई। यहां से पलायन कर विदेश में काम रहे कारीगर
बखिरा कस्बा निवासी शनि सिंह कसेरा, राजेंद्र कुमार, श्याम कुमार पीतल का बर्तन बनाने की जगह दस साल से दमन में एक प्लास्टिक की फैक्ट्री में काम कर रहे हैं। बताया कि जब तक विभाग और बैंक की तरफ से सकारात्मक पहल नहीं की जाएगी, तब तक इस पेशे में छाई मंदी दूर नहीं हो सकती है।
उपायुक्त उद्योग रवि शर्मा ने बताया कि सांसद के अलावा डीएम की कई बार चेतावनी के बाद भी बैंक शाखाओं में कर्ज के आवेदन, स्वीकृति के अभाव में लंबित चल रहे हैं। कुछ बैंकों द्वारा इसमें रुचि नहीं दिखाई जा रही है।