विलुप्त हो गई एक पौराणिक नदी
जनपद के पश्चिमी सीमा पर हर्रैया तहसील की एक पौराणिक नदी नरिया अब विलुप्त हो चुकी है। इस नदी की प्राचीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वाल्मीकि रामायण में इसे मनोयोग गंगा कहा गया है। श्रृंगीनारी मंदिर के पुजारी जमुनादास कहते हैं कि जिस समय त्रेता युग में महाराज दशरथ श्रृंगी ऋषि के नेतृत्व में मखौड़ा में पुत्र कामेष्टि यज्ञ कर रहे थे उस समय 88 हजार संत यज्ञ में शामिल हुए थे।
बस्ती: जनपद के पश्चिमी सीमा पर हर्रैया तहसील की एक पौराणिक नदी नरिया अब विलुप्त हो चुकी है। इस नदी की प्राचीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वाल्मीकि रामायण में इसे मनोयोग गंगा कहा गया है। श्रृंगीनारी मंदिर के पुजारी जमुनादास कहते हैं कि जिस समय त्रेता युग में महाराज दशरथ श्रृंगी ऋषि के नेतृत्व में मखौड़ा में पुत्र कामेष्टि यज्ञ कर रहे थे उस समय 88 हजार संत यज्ञ में शामिल हुए थे। सभी संत श्रृंगीनारी में रात्रि विश्राम करते थे। पानी की आवश्यकता पूरी करने के लिए अपने योग बल से एक धारा उत्पन्न किए थे। जिसे मनोयोग गंगा कहा गया। इसे अब नरिया कहा जाता है। नदी गोंडा जिले के छपिया विकासखंड के श्रवण पाकड़ धाम से निकली है। वर्तमान समय में अस्तित्व विहीन हो चुकी है। लोग इसके बेड को समतल कर खेती कर रहे हैं। कहीं-कहीं स्थाई व अस्थाई निर्माण भी हो गए हैं।
परशुरामपुर ब्लाक के श्रृंगीनारी, खदरा, गन्नीपुर में नदी का अस्तित्व नाले के रूप में बचा है। शेष जगहों पर नदी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। बरसात के दिनों में कहीं-कहीं तालाब के रूप में पानी एकत्र हो जाता है। तकरीबन 35 किमी लंबी इस नदी का अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है। यदि मनोरमा की तरह ही इस नदी को भी मनरेगा से सुरक्षित करने का प्रयास किया जाए तो लोगों को एक अतिरिक्त जलस्त्रोत उपलब्ध हो जाएगा। पुजारी जमुनादास कहते हैं कि इसके लिए जरूरत है कि मजबूत पहल की। यदि प्रयास हो तो एक पौराणिक नदी अपने पुराने स्वरूप में लौट सकती है।