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रूह को समझने का मौका देता है रमजान मुबारक का महीना

जमीयत उलमा ए हिन्द के जिला अध्यक्ष हाफिज शाहिद ने बताया कि इस्लामिक कैलेंडर का सबसे पाकीजा महीना

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 May 2019 11:23 PM (IST)Updated: Sun, 19 May 2019 11:23 PM (IST)
रूह को समझने का मौका देता है रमजान मुबारक का महीना
रूह को समझने का मौका देता है रमजान मुबारक का महीना

सरायतरीन: जमीयत उलमा ए हिद के जिलाध्यक्ष हाफिज शाहिद ने बताया कि इस्लामिक कैलेंडर का सबसे पाकीजा महीना माह-ए-रमजान है। इस महीने में कुरआन शरीफ नाजिल हुआ। यह दुनिया की सबसे पवित्र और भलाई के रास्ते पर ले जाने वाली किताब है। यह महीना हम सबको नेकियों, आत्मसंयम और आत्मनियंत्रण का मौका देता है। समूची मानव जाति को प्रेम, करुणा और भाईचारे का संदेश सारे आलम (दुनिया) को देता है। नफरत से भरे इस दौर में रमजान का यह संदेश पहले से और ज्यादा प्रासंगिक हो चला है। उन्होंने कहा कि हजरत मुहम्मद के मुताबिक रोजा बंदों को जब्ते नफ्स (आत्म नियंत्रण) की तरबियत देता है और उनमें परहेजगारी (आत्म संयम) पैदा करता है। हम सब जिस्म और रूह दोनों के समन्वय के नतीजे हैं। आमतौर पर हमारा जीवन जिस्म की जरूरतों, भूख प्यास आदि के गिर्द घूमता रहता है। रमजान का महीना दुनियावी चीजों पर नियंत्रण रखने की साधना है। जिस रूह को हम साल भर भुलाए रहते हैं, माहे रमजान उसी को पहचानने और समझने का महीना है। कहा कि रोजे में खाना और पीना छोड़ने का मकसद यह है कि आप दुनिया के भूखे और प्यासे लोगों का दर्द समझ सकें। रोजे में परहेज, आत्म संयम और जकात का मकसद यह है कि आप अपनी जरूरतों में थोड़ी बहुत कटौती कर समाज के गरीब लोगों की जरूरतें पूरी करें। रोजा सिर्फ मुंह और पेट का ही नहीं, आंख, कान, नाक और जुबान का भी होता है। यह सादगी और पाकीजगी की शर्त है। रमजान रोजेदारों की रूह और खुद के सुधार का मौका देता है। दूसरों को नसीहत देने के बजाय अगर हम अपनी कमियों को पहचान कर उन्हें दूर कर सकें तो हमारी दुनिया ज्यादा खूबसूरत होगी।

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