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अपेक्षाएं थोपने पर बच्चों पर पड़ता मानसिक दवाब

चन्दौसी : मानव जीवन सर्वश्रेष्ठ है। मानव जीवन में हर किसी को अपने करीबी से अपेक्षाएं रहती हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Oct 2018 12:27 AM (IST)Updated: Thu, 04 Oct 2018 12:27 AM (IST)
अपेक्षाएं थोपने पर बच्चों पर पड़ता मानसिक दवाब
अपेक्षाएं थोपने पर बच्चों पर पड़ता मानसिक दवाब

चन्दौसी : मानव जीवन सर्वश्रेष्ठ है। मानव जीवन में हर किसी को अपने करीबी से अपेक्षाएं रहती हैं। ये लाजिमी भी है। क्योंकि अपेक्षाओं से ही संसार चलता है। अपेक्षाएं नहीं रहेंगी तो संस्कार का क्रम ही बदल जाएगा। इसी प्रकार प्रत्येक अभिभावक अपने बच्चों से भी अपेक्षाएं रखते हैं। हर अभिभावक का सपना होता है कि जो वह नहीं कर सके। उनका लाडला या लाडली करके दिखाए। लेकिन बच्चों पर जबरन अपेक्षाएं थोपना गलत होगा। क्योंकि बच्चे मानसिक दवाब में आ जाते हैं। ये बात नगर के बीएमजी इंटर कालेज में जागरण की ओर से आयोजित संस्कारशाला में शिक्षिका रजनी चौधरी ने कही।

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संस्कारशाला में उन्होंने छात्राओं का मार्ग दर्शन करते हुए कहा कि अपेक्षाएं पूरी न होने पर रिश्तों में खटास आ जाती है। अति अपेक्षा प्राय: दुख का कारण बनती है जहां एक ओर अभिभावकों को बच्चों से अपेक्षाएं पूरी न होने पर मानसिक दवाब नहीं बनाना चाहिए। वहीं बच्चों के लिए अच्छा ये है कि वह अभिभावकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करें और अपना मानदण्ड स्वयं तय करें। मानसिक तनाव कतई न लें। यदि कुछ तनाव है तो उसे परिवार में शेयर करें। परिवार वालों से मदद लें क्योंकि तनाव में कभी अपेक्षाएं पूरी नहीं होती हैं। बच्चों को करियर की ¨चता रखनी चाहिए। लेकिन किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहिए। जो लोग समाज और परिवार में रहते हैं उन्हें एक-दूसरे की सहायता की आवश्यकता रहती है। परिवार में जो सदस्य होते हैं वह एक दूसरे के दुख दर्द में साथ होते हैं। इसलिए किसी भी तनाव में खुद को अकेला न समझें। न ही परिवार में कोई बात छिपाएं। यदि परिवार के सदस्यों को बच्चों से कोई शिकायत है तो अभिभावकों को बच्चों को शांति से बिठा कर प्यार और दुलार से पूछना चाहिए। वहीं बच्चे भी अभिभावकों को अपनी बात खुल कर बताएं। कोट:

कंप्टीशन का युग चल रहा है, बच्चों को अपना करियर बनाने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है, शुरुआत से ही बच्चों को कैरियर के बारे में सोचना चाहिए, तब ही मंजिल तक पहुंचा जा सकता है, मैं विद्यालय में जीके कंप्टीशन कराती हूं और कमजोर बच्चों के लिए अलग से क्लास भी लगवाती हूं। लेकिन बच्चों पर मानसिक दवाब नहीं पड़ने देती, साथ ही छात्राओं को सुरक्षा के बारे में भी समय-समय पर जानकारी देती रहती हूं।

रमा रस्तोगी, प्रधानाचार्य


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