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समय के साथ बदलते चले गए किताबों के कद्रदान

शहर के नगर पालिका मैदान में आशिक लाइब्रेरी नगर पालिका के पुराने भवन में चलती थी। देखरेख के अभाव में किताबें धूल फांकती थी। साहित्यकार डॉ. शहादत अली ने काफी संघर्ष के बाद नगर पालिका में एक भवन लेकर लाइब्रेरी को नया रूप दिया। वर्तमान में पुस्तकालय में साहित्यिक एवं इतर विषयों की हजारों पुस्तकें उपलब्ध हैं लेकिन यहां पहुंचने वाले पाठकों की संख्या काफी कम हो गई है। हाल यह है कि पुस्तकें यहां आलमारियों में पड़ी धूल फांक रही हैं। लोगों की आवक कम होने के कारण इस पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या में इजाफा नहीं हुआ। यहां आने वाले पाठकों की संख्या में काफी कमी आ गई है। फिलहाल रोजाना दस से बारह लोग ही आ पाते हैं। लाइब्रेरी में आने वालों की कम होती संख्या को देखते हुए पुस्तकों की संख्या में वृद्धि नहीं हो पा रही है

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 12:17 AM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 12:17 AM (IST)
समय के साथ बदलते चले गए किताबों के कद्रदान
समय के साथ बदलते चले गए किताबों के कद्रदान

सम्भल: समय के बदलाव के साथ पुस्तकों की न तो पहले की तरह कद्र रही और न अब उसके वैसे कद्रदान ही दिख रहे। समय की कमी और बढ़ती व्यस्तता ने भी लोगों को पुस्तकों के प्रति उदासीन बना दिया है। काफी हद तक इसके लिए पुस्तकों का डिजिटलाइजेशन व किताबों के बढ़ते दाम भी जिम्मेदार है। लोग घरों में बैठे ही अपनी पसंद के लेखकों के लेखन को ऑनलाइन खोल कर पढ़ ले रहे हैं।

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शहर के नगर पालिका मैदान में आशिक लाइब्रेरी नगर पालिका के पुराने भवन में चलती थी। देखरेख के अभाव में किताबें धूल फांकती थी। साहित्यकार डॉ. शहादत अली ने काफी संघर्ष के बाद नगर पालिका में एक भवन लेकर लाइब्रेरी को नया रूप दिया। वर्तमान में पुस्तकालय में साहित्यिक एवं इतर विषयों की हजारों पुस्तकें उपलब्ध हैं लेकिन यहां पहुंचने वाले पाठकों की संख्या काफी कम हो गई है। हाल यह है कि पुस्तकें यहां आलमारियों में पड़ी धूल फांक रही हैं। लोगों की आवक कम होने के कारण इस पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या में इजाफा नहीं हुआ। यहां आने वाले पाठकों की संख्या में काफी कमी आ गई है। फिलहाल रोजाना दस से बारह लोग ही आ पाते हैं। लाइब्रेरी में आने वालों की कम होती संख्या को देखते हुए पुस्तकों की संख्या में वृद्धि नहीं हो पा रही है। वहीं साहित्यकार डॉ डीएन शर्मा ने बताया कि किताबों को इंटरनेट पर पढ़ने वालों की तादात बढ़ती जा रही है। इंटरनेट पर देश-विदेश के लेखकों की किताबें आसानी से मिल जाती हैं। बताया कि किताबों के अध्ययन के प्रति लोग वास्तविक रूचि नहीं ले रहे है। बड़ी से बड़ी उपलब्धि को देखकर उस पर लिखना तो दूर केवल उसे लाइक कर देते है। किताबों की बढ़ती महंगाई की वजह से भी लोग अब किताबों से दूरी बना रहे है। कहा कि संस्थाएं, सरकारें सस्ते दामों में किताबों को उपलब्ध कराए तो लोग रूचि ले सकते है। साथ ही मेधावियों व सम्मानित होने वाले लोगों को शील्ड के साथ ही किताबें को सम्मान के रूप में दिया जाए।


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