चीनी मिलों ने पेर दिए किसानों के सपने
चन्दौसी मिल पर गन्ना डालने के लिए किसान को पर्ची नहीं मिल रही है। मजबूरी वह कोल्हू पर औ
चन्दौसी: मिल पर गन्ना डालने के लिए किसान को पर्ची नहीं मिल रही है। मजबूरी वह कोल्हू पर औने पौने दामों पर गन्ना डालने के लिए मजबूर है। जबकि किसान को गेहूं की बुवाई के लिए खेत करने की जल्दी है। मिल पर किसानों को पहले से ही करोड़ों बकाया है। इस सबके चलते अन्नदाता परेशान हैं।
गन्ना की फसल तैयार होते ही किसान के सामने कई समस्याएं सामने आ जाती हैं। सबसे बड़ी समस्या गन्ना भुगतान व गन्ना डालने की बनी रहती है। यह समस्या मिलों के स्थापित होने की शुरूआत से बनी हुई है। इस समय मिल पर किसानों का 29.70 करोड़ रुपया बकाया है। असमोली और रजपुरा शुगर मिल पर 29 करोड़ रुपया बकाया है। जबकि वीनश शुगर मिल ने अभी तक भुगतान नहीं किया है। इस समय किसान के सामने विकट समस्या यह है कि उसे मिलों पर गन्ना डालने के लिए पर्ची नहीं मिल रही है। जबकि गन्ना खेतों में कटा हुआ पड़ा है। गेहूं की बुवाई की सीजन शुरू होने वाला है। उसे गेहूं की बुवाईई के लिए खेत खाली करने की जल्दी है। अगर खेत खाली नहीं होते है तो व बुवाई के लिए लेट हो जाएगा। इसीलिए वह अब अपना गन्ना कोल्हू पर डालने को मजबूरी है। मिल को शुरू हुए करीब दो सप्ताह हो गए है, लेकिन किसान को अभी तक कोई भुगतान नहीं किया गया है। इससे वह आर्थिक तंगी से जूझ रहा है और धन के अभाव में व दीपावली जैसा त्योहार खुशी के साथ नहीं मना पाया है। कोल्हू वाले किसान का गन्ना औने पौने में खरीद रहे हैं। कोल्हू पर गन्ना 200 से 230 रुपये प्रति क्विटल खरीदा जा रहा है। गन्ना मिलों का भुगतान को लेकर यह रवैया रहता है। इसीलिए जनपद की तीनों शुगर मिल पर किसानों का 95 करोड़ रुपया बकाया चला आ रहा है। असमोली शुगर मिल भुगतान के मामले सबसे अधिक डिफाल्टर है उस पर पिछले पेराई सत्र का किसानों का करीब 41 करोड़ रुपया बकाया है। इसके बाद वीनश शुगर मिल पर 32 करोड़ तथा रजपुरा शुगर मिल पर 22 करोड रुपया गन्ना मूल्य बकाया है। किसान व किसान संगठनों का कहना है कि इन मिलों का हर वर्ष यही रवैया रहता है। पेराई सत्र समाप्त होने तक भुगतान नहीं करते हैं। इसके बाद वह भुगतान की सुध नहीं लेते है। इसीलिए किसानों को करीब 95.70 करोड़ रुपय पिछले पेराई सत्रों का बकाया चला आ रहा है। भुगतान न करने के बाद मिले फिर शुरु कर दी जाती है। जबकि मिल शुरु होने से भुगतान के लंबे चौड़ वायदे किए जाते हैं। सरकार व मिल मालिकों की मिली भगत का खामियाजा अन्नदाता को भुगतान पड़ृ रहा है।