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अस्पताल में दवा नहीं, मेडिकल स्टोर से खरीदना मजबूरी

न व्हील चेयर मिले और न स्ट्रेचर। पुलिस में कड़ी कार्यवाही का झांसा देकर मेडिकल के नाम पर अवैध वसूली करना कर्मचारियों का खेल। एक्सरे और अल्ट्रासांउड कराने के लिए सिफारिशों का सिलसिला। यह हाल है सम्भल के जिला अस्पताल का। जी हां यहां उपचार नहीं मिलता। सिर्फ और सिर्फ पीड़ितों का भटकना यहां का रो

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 12:10 AM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 12:10 AM (IST)
अस्पताल में दवा नहीं, मेडिकल स्टोर से खरीदना मजबूरी
अस्पताल में दवा नहीं, मेडिकल स्टोर से खरीदना मजबूरी

सम्भल: दर्द से कराहते मरीज। स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल। न व्हील चेयर मिले और न स्ट्रेचर। पुलिस में कड़ी कार्यवाही का झांसा देकर मेडिकल के नाम पर अवैध वसूली करना कर्मचारियों का खेल। एक्सरे और अल्ट्रासांउड कराने के लिए सिफारिशों का सिलसिला। यह हाल है सम्भल के जिला अस्पताल का। जी हां यहां उपचार नहीं मिलता। सिर्फ और सिर्फ पीड़ितों का भटकना यहां का रोज का ढर्रा बन चुका है। यह परेशानी चुनावी मुद्दा नहीं बनती। जनप्रतिनिधियों की उदासनीता के चलते मरीजों को अपने उपचार के लिए आंसू बहाने पड़ते हैं।

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यह सेवाएं जमीनी हकीकत पर सच साबित नहीं हो रही है। सम्भल की आबादी लाखों में है। जिनमें ज्यादातर लोग मुफ्त उपचार के लिए जिला अस्पताल का रूख करते हैं। जिला अस्पताल का निर्माण सपा सरकार में प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने कराया था। अस्पताल का निर्माण होने के बाद लोगों को उम्मीद जगी कि मुफ्त में उपचार मिलेगा और दिक्कत नहीं उठानी पड़ेगी। हालांकि जिला अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। यहां इमरजेंसी में घायलों को आते ही मुरादाबाद रेफर कर दिया जाता है। खानापूर्ति के नाम पर घायलों की चोट पर मामूली मरहम लगाकर टरका दिया जाता है। टरकाया भी क्यों न जाए क्योंकि जिला अस्पताल में डाक्टर व कर्मचारियों के 23 पद स्वीकृत हैं। जिनमें 16 पद रिक्त चल रहे हैं और सात डाक्टर हैं। इतना ही नहीं बुजुर्ग मरीजों के लिए लिफ्ट की भी मदद नहीं मिलती। लिफ्ट का प्रयोग केवल सीएमएस और डाक्टर के अलावा फार्मेसिस्ट करते हैं। वहीं मरीजों को समय पर यहां न स्ट्रेचर मिलती है और नाहीं व्हील चेयर। ऐसे में तीमारदारों को खुद ही कंधे पर रखकर मरीजों को तीसरी मंजिल पर पहुंचाना पड़ता है। इतना ही नहीं यहां मरीजों से इंजेक्शन लगाने के नाम पर 20 से 30 रुपये की वसूली होती है। वहीं मारपीट में घायल लोगों ने पुलिस में कड़ी कार्यवाही कराने का झांसा देकर मेडिकल बनाने के नाम पर पांच हजार से लेकर 30 हजार रुपये तक की वसूली की जाती है। मामला सीएमओ तक भी पहुंचते हैं लेकिन कठोर कार्यवाही नहीं होती। इन परेशानियों से जूझते लोग भी इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाते।

बिना सिफारिश के अल्टांसाउंड कराना संभव नहीं

सम्भल: जिला अस्पताल में मरीजों की सहूलियत के लिए अल्ट्रासाउंड मशीन लगाई गई। जिससे मरीजों के अल्ट्रांसांउड हो सके। हालांकि बिना सिफारिश के यहां अल्ट्रासांउड व एक्सरा होना संभव नहीं है। डाक्टरों को रूपये का लालच देकर मरीज एक्सरे करा पाते है। वरना उन्हें अगले दिन करने की बात कहकर टकरा दिया जाता है। ऐसे में मरीजों को परेशान होकर वापस लौटना पड़ता है। पुरुष ईकाई हेतु चिकित्सा संवर्ग के नियमित

पद

पदनाम स्वीकृत कार्यरत रिक्त

मुख्य चिकित्सा अधीक्षक 1 1 0

फिजीशियन 0 0 0

चेस्ट फिजीशियन 1 0 1

बाल रोग विशेषज्ञ 1 0 1

रेडियोलॉजिस्ट 1 1 0

पैथालोजिस्ट 1 0 1

स्किन/एसटीडी 1 0 1

कार्डियोलॉजिस्ट 1 0 1

एनेथेटिस्ट/ निश्चेतक 1 0 1

जर्नरल सर्जन 1 0 1

आर्थाेपेथिक सर्जन 2 0 2

इएनटी 1 0 1

नेत्र सर्जन 1 1 0

इएमओ 3 0 3

कुल 16 06 10 महिला इकाई हेतु चिकित्सा संवर्ग के नियमित

पदपदनाम स्वीकृत कार्यरत रिक्त

मुख्य चिकित्सा अधीक्षिका 1 0 1

अधीक्षिका एवं प्रभारी भण्डार 1 0 1

स्त्रीरोग विशेषज्ञ 1 0 0

एनेस्थेटिस्ट 1 0 1

रेडियोलाजिस्ट 1 0 1

पैथालोजिस्ट 1 0 1

ईएमओ 1 0 1

कुल 07 01 06


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