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बान-सोत के बाद महावा के पुनर्जीवन की बंधी आस

गुन्नौर तहसील प्रशासन और विकास विभाग को दिए निर्देश गुन्नौर तहसील में नदी की जमीन पर है

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Jun 2019 01:02 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jun 2019 01:02 AM (IST)
बान-सोत के बाद महावा के पुनर्जीवन की बंधी आस
बान-सोत के बाद महावा के पुनर्जीवन की बंधी आस

उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड और महाराष्ट्र का लैतूर जल संकट का सबसे बड़ा उदाहरण है। जब वहां समस्याएं उठीं तो यहां खामोशी थी। अब जब जल संकट सामने आया और पानी 80 से 100 फीट की जगह 200 फीट पहुंचा तो भी नींद नहीं टूटी। सुबह के समय कोई समरसेबिल से कार धो रहा था तो कोई बाइक। जिनके पास दोनों नहीं थे उन्होंने घर धोना शुरू कर दिया। मन नहीं भरा तो सड़क भी धोने का क्रम बना लिया। जागरण ने इन सबके खिलाफ मुहिम चलाई और जागरूकता फैलाई। असर भी दिखा। जागरण ने एक तरफ इनकी पहचान कराई ताकी नासमझ इन लोगों को समझ आए और पानी की बर्बादी रुके। साथ ही अमरोहा की बान नदी के पुनर्जीवन का प्रयास शुरू किया। पहला फावड़ा जब डीएम अमरोहा ने अपने मातहत अधिकारियों संग चलाया और जागरण इसमें सहभागी बना तो पहले लोगों को लगा कि शायद यह अभियान समय के साथ दब जाएगा लेकिन, उनकी शंकाएं उस समय निर्मूल हो गई जब नदी की खोदाई का क्रम नहीं रुका। जागरण ने बान नदी के अभियान की जागरण शासन तक दी। नदी का अभियान सिर्फ अमरोहा ही नहीं चला, सम्भल तक बढ़ गया। यहां के डीएम अविनाश कृष्ण सिंह ने इसे समझा और विकास विभाग, पंचायती राज के साथ बैठक कर सोत नदी के पुनर्जीवन की रूपरेखा तय कर ली। असमोली के मातीपुर, सम्भल के फिरोजपुर और पवांसा के चंदायन में खो चुकी सोत नदी के अस्तित्व को संभालने का काम शुरू हो गया। आज यह अभियान अपने मूर्त रूप में दिखना शुरू कर दिया। कुल 41 किलोमीटर नदी के रास्ते में करीब दो किलोमीटर की खोदाई हो चुकी है। इस अभियान की सकारात्मकता को देखते हुए डीएम सम्भल ने अब महावा नदी को भी पुनर्जीवित करने के निर्देश दिए हैं। अब जरूरत है आम जन सहभागिता की।

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खोदाई कर महावा को मिलेगा पुनर्जीवन

जागरण संवाददाता, बबराला (सम्भल) : खादर क्षेत्र के लिए कभी जीवनदायिनी रही महावा नदी के दिन अब बहुरने वाले हैं। विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी इस नदी को पुनर्जीवित करने के लिए जिलाधिकारी ने तमाम किसानों और जनप्रतिनिधियों की शिकायत को संज्ञान लेते हुए तहसील के राजस्व प्रशासन को इसके जीणोद्धार के निर्देश दिए हैं। राजस्व प्रशासन इसकी जमीन पर हुए अवैध कब्जों को हटवाएगा तो ग्राम्य विकास विभाग की मनरेगा योजना और जन सहयोग से इसकी खोदाई का काम कराके इसमें जल प्रवाहित होने की उम्मीद जगाई जाएगी।

अमरोहा जनपद की पिपरिया घाट के एक मुहाव से निकलने वाली प्राचीन महानदी सम्भल जिले के गुन्नौर तहसील के दर्जनों गांवों से होती हुई बदायूं जनपद के सहसवान क्षेत्र में जाती है। कभी गंगा नदी के जल से बहने वाली महानदी गुन्नौर के खादर क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी का काम करती थी लेकिन क्षेत्र में बनने वाले बाढ़ के हालात से निपटने के लिए इस नदी के मुहाव को बंद कर दिया गया। इसके बाद इस नदी में अमरोहा जिले के गजरौला में स्थित औद्योगिक फैक्ट्रियों का दूषित पानी छोड़ दिया गया। इससे पानी काला हो गया और क्षेत्र के आसपास का भूगर्भ जल भी दूषित हो गया। महावा नदी में काले दूषित पानी पर रोक लगाने के लिए शासन में पैरवी की गई तो फैक्ट्रियों का दूषित पानी इसमें प्रवाहित करने से रोक दिया गया और उसके बाद यह नदी पूरी तरह से सूख गई। विलुप्त होती इस नदी पर भू माफियाओं की नजर भी पड़ गई। जहां-तहां असरदार लोगों ने इस पर अवैध कब्जे करके खेती करना शुरू कर दिया।

बात यहीं नहीं खत्म होती कि राजस्व विभाग की ओर से भी महावा नदी की जमीन पर कृषि पट्टे आवंटित कर दिए गए। जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी खारिज नहीं किया जा सका है। करीब 150 किलोमीटर की लंबाई वाली यह नदी जिले के गुन्नौर तहसील में गवां क्षेत्र से प्रवेश करती है और बदायूं जनपद की सहसवान क्षेत्र में जाकर निकलती है। ढाई दशक पूर्व तक यह नदी निर्मल जल से परिपूर्ण थी आसपास के किसान इस के जल से फसलों की सिचाई करते थे। नगर क्षेत्र के लोग भी गर्मियों के मौसम में इसमें ही स्नान का लुत्फ उठाया करते थे। तरबूज खरबूज ककड़ी आदि की बेले लहराया करती थीं लेकिन 90 के दशक की शुरुआत के साथ ही इस नदी के दुर दिन भी शुरू हो गए। गंगा की तराई वाले इलाके अर्थात खादर क्षेत्र में लगातार घटते जलस्तर को देखते हुए यहां के किसानों ने नदी को पुनर्जीवित करने की मांग क्षेत्रीय विधायक अजीत कुमार उर्फ राजू यादव के सामने रखी तो उन्होंने नदी के जीर्णोद्धार के लिए यह आवाज मुख्यमंत्री के सामने उठाई। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी महानदी को पुनर्जीवित करने के लिए कार्य योजना बनाने का आश्वासन दिया था। अब जिलाधिकारी अविनाश कृष्ण सिंह ने गुन्नौर तहसील प्रशासन से नदी का सीमांकन कर अवैध कब्जों को हटाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही संबंधित खंड विकास अधिकारियों को मनरेगा के अंतर्गत इसकी खोदाई का कार्य भी कराने का निर्देश दिया है।

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नाले के रूप में सिमट कर रह गई है महावा नदी

इस समय यह नदी मात्र एक नाले का रूप लेकर रह गई। जगह-जगह गड्ढों में भरे गंदे और बदबूदार पानी से इंसान तो क्या जानवर भी परहेज करने लगे हैं। नदी के किनारों वाली जमीन पर भी भू-माफिया और दबंगों ने कब्जा कर खेती करनी शुरू कर दी।

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इन गांवों में नदी की जमीन पर है कब्जे

रजपुरा विकास खंड के गांव मोलनपुर, केसरपुर, सिघोली, कन्हुआ, पानीवाड़ा, सेंडोरा, जयतोरा, मकसुदनपुर, पहलवाड़ा, जियानगला, हरफरी, गुन्नौर ब्लॉक के गढ़ा, उदरनपुर अजमतनगर, पीपलवाड़ा, डुंडाबाग, जुनावई के लोहमई, पतरिया आदि।

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यूकेलिप्टस लगा सुखा दी महावा, अस्तित्व पर खड़ा हुआ संकट

जागरण संवाददाता, सम्भल :

कभी 150 किलोमीटर का सफर तय कर कलकल बहती महावा नदी आज विलुप्त हो चुकी है। इससे नवजीवन पाने वाले ही इसके दुश्मन बन गए। पहले तो अमरोहा की फैक्ट्रियों के गंदे पानी में इनका आंचल मैला किया तो फिर जिन जिन गांवों से यह गुजरीं वहां के लोगों ने लालच में यहां यूकेलिप्टस का पेड़ लगा दिया। यह पेड़ पानी के लिए काल है। यानी नदी जो बची खुची थी वह भी सूख गई। किवंदति के अनुसार यह नदी रामायण कालीन रही और इसका महत्व भी रहा है। महावा नदी आने वाले समय में केवल यादों के रूप में ही लोगों के मन मस्तिष्क पर रहेगी।

महावा नदी पुनर्जीवन की आस में अंतिम सांस भी गिन चुकी है। हर समय कल-कल कर बहने वाली नदी अब शांत पड़ी है। कुछ जगहों पर गड्ढों में गंदा बदबूदार पानी और जंगली घास नदी की पहचान को जिन्दा रखे है। नदी किनारे पालेज उगाने वाले किसानों को भी पंपसेट से सिचाई करनी पड़ती है। दो दशक पहले तक महावा नदी के किनारे तरबूज, खरबूज, ककड़ी, काशीफल, लौकी, टमाटर की फसलों की सिचाई किसान नदी के जल से करते थे। इसके जल में स्नान करते थे। इसके दुर्दिन 90 के दशक से शुरू हुए। अंधाधुंध दोहन से घटते भूगर्भीय जल स्तर और नदी किनारे स्थित कारखानों से छोड़े गए विषाक्त कचरे ने सदानीरा को मौत के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया। अमरोहा जिले के कस्बा हसनपुर के पास से निकली यह नदी 150 किमी का सफर तय कर बदायूं के पस कछला में गंगा में जाती थी जिसके लिए अब केवल नदी के निशान ही शेष रह गए हैं।

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