खड़ा होने की जद्दोजहद में 400 साल पुराना वुडकार्विंग उद्योग
कोरोना वायरस के चलते चार सौ साल पुराने वुडकार्विंग उद्योग को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। लॉकडाउन के कारण 95 प्रतिशत निर्यात आर्डर निरस्त हो गए थे। इससे निर्यातकों को बड़ा नुकसान हुआ वहीं इस उद्योग से जुड़े कारीगरों व अन्य श्रमिकों की भी कमर टूट गई।
सहारनपुर जेएनएन। कोरोना वायरस के चलते चार सौ साल पुराने वुडकार्विंग उद्योग को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। लॉकडाउन के कारण 95 प्रतिशत निर्यात आर्डर निरस्त हो गए थे। इससे निर्यातकों को बड़ा नुकसान हुआ, वहीं इस उद्योग से जुड़े कारीगरों व अन्य श्रमिकों की भी कमर टूट गई।
सहारनपुर का वुडकार्विंग उद्योग 400 वर्ष पुराना है। डेढ़ से 2 लाख व्यक्ति इस कार्य से जुडे हुए हैं। लॉक डाउन से पहले तक सहारनपुर से वुडकार्विंग का प्रतिवर्ष 800-1000 करोड़ रुपये का निर्यात होता था। ज्यादातर निर्यात अमेरिका व यूरोप के देशों में होता है। शासन के आदेश के बाद उद्योगों का पहिया तो धीरे-धीरे घूमने लगा है, परंतु सहारनपुर के विश्व प्रसिद्ध वुडकार्विंग उद्योग पर अभी भी कोरोना के लॉक डाउन का ग्रहण लगा है। वुडकार्विंग उद्योग से जुडे उद्यमी व निर्यातकों की माने तो लॉक डाउन के कारण 95 प्रतिशत निर्यातकों के आर्डर निरस्त हो चुके हैं। इसे लेकर इस उद्योग से जुड़े सभी उद्यमी, कारीगर व निर्यातक बहुत चितित हैं कि इस उद्योग का भविष्य क्या होगा। उनका मानना है कि इसे सामान्य होने में लगभग एक वर्ष तक का समय लग सकता है। ऐसे में चिता यह सता रही है कि इस स्थिति में बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ेगी तो उसके कारण कानून व्यवस्था की स्थिति भी बिगड़ सकती है।
सहारनपुर वुडकार्विंग मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शेख फैजान अहमद का कहना है कि हमारे उत्पादों का ज्यादातर अमेरिका और यूरोप में निर्यात होता है। उन्होंने हमारे 95 प्रतिशत आर्डर निरस्त कर दिए हैं। बताया कि उन्होंने निर्यात संवर्धन परिषद और भारत सरकार के माध्यम से यह अनुरोध किया था कि उनके निर्यात आर्डर निरस्त न कर होल्ड कर दिये जाएं, परंतु उन्होंने 95 प्रतिशत आर्डर निरस्त कर दिये हैं। सिर्फ 50 प्रतिशत को होल्ड किया है। सहारनपुर के कई निर्यातकों का कहना है कि जब तक कोरोनो वायरस का संकट खत्म नहीं हो जाता है, तब तक उनका कारोबार प्रभावित रहेगा।
निर्यातक रामजी सुनेजा का कहना है कि आज वुडकार्विंग उद्योग जिस स्थिति में पहुंच गया है, उसे खड़ा होने में एक साल से अधिक का समय लग सकता है। शहर में वुडकार्विंग के 50-60 बड़े कारखाने हैं, तथा 300-400 छोटे कारखाने हैं। यदि यह बंद हुए तो श्रमिक हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। ऐसे में सरकार को चाहिए कि निर्यातकों, कारीगरों व श्रमिकों के हितों को ध्यान में रख वह इस उद्योग को विशेष पैकेज दे। ताकि इस उद्योग से जुड़े श्रमिकों को रोजगार के लिए भटकना न पड़े।
वुडकार्विंग के निर्यातक एवं आइआइए के चैप्टर चेयरमेन रविद्र मिगलानी का कहना है कि लॉक डाउन के बाद वुडकार्विंग इंडस्ट्री अभी पूरी तरह नहीं खुल पाई है। निर्यातक उद्यमियों के करीब सौ करोड़ रुपये के आर्डर निरस्त हो चुके हैं। ऐसे में यदि सरकार मुगलकालीन इस उद्योग के अस्तित्व को जिदा रखना चाहती है तो सरकार को आगे बढ़कर लगभग 500 करोड़ रुपये तक का एक स्पेशल पैकेज देना चाहिए।