टैक्स की दरों को तर्कसंगत बनाएं, हमें नहीं टैक्स देने से परहेज
जागरण संवाददाता सहारनपुर व्यापार और उद्यम देश के विकास की तस्वीर होते है। संपूर्ण आर्थिक विकास इन्हीं पर निर्भर होता है। अक्सर व्यापार जगत सरकारी विभागों की लाल फीताशाही से परेशान रहता है। कारण साफ है कि विभागों की कार्यप्रणाली में कहीं न कहीं झोल रहते है जिस कारण व्यापारियों और उद्यमियों को परेशानी उठानी पड़ती है। लोकसभा चुनाव में ये सभी मुद्दे प्रमुखता से दलों के प्राथमिकता में शामिल हो सकें
सहारनपुर :व्यापार और उद्यम देश के विकास की तस्वीर होते हैं। संपूर्ण आर्थिक विकास इन्हीं पर निर्भर होता है। अक्सर व्यापार जगत सरकारी विभागों की लाल फीताशाही से परेशान रहता है। कारण साफ है कि विभागों की कार्यप्रणाली में कहीं न कहीं झोल रहते हैं, जिससे व्यापारियों और उद्यमियों को परेशानी उठानी पड़ती है। लोकसभा चुनाव में ये सभी मुद्दे दलों की प्राथमिकता में शामिल हो सकें, इसके लिए लिए दैनिक जागरण ने विचार मंच का आयोजन कर व्यापारियों और उद्यमियों की राय जानी। उनका कहना था कि जीएसटी लगने के बाद से कारोबार अभी तक उबर नहीं सका है। इतनी अधिक जटिलताएं है कि उन्हें पूरा करने में व्यापारी का ज्यादातर समय खराब हो जाता है। यदि जीएसटी प्रावधानों को सरल किया जाए तो कारोबार दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की करेगा। व्यापारी को टैक्स देने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन यदि कारोबार ही ठीक से नहीं होगा व टैक्स को भरने की औपचारिकताएं ज्यादा होंगी तो व्यापारी अपने कारोबार में कम और कार्यालयों के चक्कर लगाने में अपना कीमती समय खो देगा। सोमवार को रेलवे रोड स्थित उत्तर प्रदेश व्यापार मंडल के कार्यालय पर विचार मंच आयोजित किया गया। व्यापारी वर्ग सरकार की टैक्स नीति से परेशान है। व्यापारी सरकार से जीएसटी में सुधार की उम्मीद रखता है ताकि वह अपना कारोबार ठीक ढंग से कर सके। टैक्स देने में कोई परेशानी नहीं है।
सुभाष चंद धमीजा, व्यापारी। जीएसटी की दरें सभी वस्तुओं पर एक समान होनी चाहिए। यह दर 10 फीसदी से अधिक न हो। दूसरे राज्यों से माल की आवाजाही में होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए नई सरकार द्वारा कदम उठाए जाने चाहिए।
विनीत कर्णवाल, व्यापारी। व्यापारी सरकार से संतुष्ट है। जीएसटी लागू करने का निर्णय अच्छा है, लेकिन सरकार को चाहिए कि वस्तु के उत्पादन पर एक बार ही जीएसटी लगना चाहिए। यह अलग-अलग न लगे।
संजय तिवारी, व्यापारी। व्यापारी सरकार से कोई दुर्भावना नहीं रखता है। व्यापार पहले की अपेक्षा सरल हुआ है। भ्रष्टचार कम हुआ। जीएसटी में कोई दिक्कत भी नहीं है।
दीपक जैन, व्यापारी। सरकार की व्यापारी संबंधी नीति अच्छी है। टैक्स के दरों को तर्कसंगत बनाकर उन्हें थोड़ा सरल किया जाना चाहिए। टैक्स के पैसे का उपयोग सरकार को विकास कार्यों में ही करना चाहिए।
विरेंद्र बहल, व्यापारी। सरकार की नीतियों से व्यापारी वर्ग संतुष्ट है। सुरक्षा का माहौल भी पहले से काफी अच्छा है, लेकिन इसे अभी और मजबूत करने की आवश्यकता है।
अजय खुराना, व्यापारी। निर्माता के स्तर पर यदि उपभोक्ता मूल्य/एमआरपी पर जीएसटी वसूल कर लिया जाए तो व्यापारी समाज जीएसटी से मुक्ति पा जायेगा। अपना व्यापार बढ़ाने की ओर ध्यान देगा।
राधेश्याम नारंग, व्यापारी। आयुष्मान योजना की तर्ज पर व्यापारियों के लिए एक विशेष चिकित्सा एवं वृद्ध अवस्था बीमा योजना लागू की जानी चाहिए ताकि व्यापारी वर्ग भी स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकें।
ओमप्रकाश, व्यापारी। व्यापारी हमेशा से ही देश के विकास में अपना योगदान करते रहे हैं। सामाजिक स्तर पर भी कभी उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नही मोड़ा, इसके बावजूद को समुचित सम्मान नही मिला है।
बॉबी अरोड़ा, व्यापारी। आयकर प्रावधानों में संशोधन लाना चाहिए जिसे छोटे खुदरा और थोक व्यापारियों जिनकी वार्षिक बिक्री 10 करोड़ तक है, को स्त्रोत पर टैक्स कटौती से मुक्त किया जाए।
जगदीश पपनेजा, व्यापारी। व्यापारी उसी सरकार के साथ है जो जीएसटी में सरलीकरण करे और व्यापारियों का साथ दें, क्योंकि व्यापारी किसी भी सरकार की रीढ़ की हड्डी के समान हैं।
मुकेश सेठी, व्यापारी। उद्योगों के लिए जिले को विशेष आर्थिक जोन घोषित किया जाना चाहिए। उत्तराखंड बनने के बाद यहां से उद्योगों का पलायन हुआ है। नए उद्योग लगाने के लिए सरकार की ओर से उद्यमियों को प्रोत्साहन दिया जना चाहिए।
आरके धवन, उद्यमी।