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जुबानों की सियासत को शीबा-सुशीला की नसीहत

बनारस हिदू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म विद्या संकाय में प्रो. फिरोज खान की नियुक्ति पर विरोध के स्वर बुलंद करने वालों के लिए तालीम के शहर देवबंद की बेटियां शीबा और सुशीला एक नजीर हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 10:24 PM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 10:24 PM (IST)
जुबानों की सियासत को शीबा-सुशीला की नसीहत
जुबानों की सियासत को शीबा-सुशीला की नसीहत

सहारनपुर, जेएनएन। बनारस हिदू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म विद्या संकाय में प्रो. फिरोज खान की नियुक्ति पर विरोध के स्वर बुलंद करने वालों के लिए तालीम के शहर देवबंद की बेटियां शीबा और सुशीला एक नजीर हैं। शीबा विद्यार्थियों को संस्कृत के श्लोक कंठस्थ करा रही हैं, तो सुशीला बच्चों को उर्दू का कायदा सिखा रही हैं। जुबानों की सियासत करने वालों को शीबा और सुशीला की नसीहत है कि भाषाओं को धर्म के आधार पर न बांटा जाए।

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गंगा-जमुनी तहजीब अपने भीतर संजोए धार्मिक नगरी देवबंद की सरजमीं में सभी जुबानें आपस में गलबहियां करती हैं। यहां पावन शक्तिपीठ श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी मंदिर की बगल में श्रावणी उपाकर्म और कर्मकांड सिखाने वाला संस्कृत महाविद्यालय है तो इस्लामी तालीम में दक्षता प्रदान करने वाला विश्वविख्यात केंद्र दारुल उलूम देवबंद भी है। जुबानों का मेल देवबंद की पहचान रहा है। इल्म-ओ-अदब की इस नगरी में संस्कृत जुबान की ज्ञाता शीबा और उर्दू भाषा की माहिर सुशीला बच्चों को अपने-अपने विषय में शिक्षित करने का काम कर रही है।

डा. शीबा परवीन रणखंडी गांव के ठा. कृपाल सिंह डिग्री कालेज में पिछले करीब 10 सालों से संस्कृत की प्राध्यापक हैं। मूल रूप से सहारनपुर की रहने वाली शीबा का बचपन से ही संस्कृत भाषा के प्रति लगाव रहा। अपनी लगन और दृढ़निश्चय के बूते शीबा ने संस्कृत से पीएचडी की। इस विषय में दक्षता हासिल कराने में शीबा के घरवालों ने भी साथ दिया। शीबा का मानना है कि जुबानें आपसी कटुता को समाप्त कर दिलों को जोड़ती हैं इसलिए इनका विरोध किसी मायने सही नहीं है।

वहीं, ब्राह्मंण परिवार से ताल्लुक रखने वाली सुशीला शर्मा बच्चों को उर्दू भाषा का ज्ञान करा रही हैं। पूर्व माध्यमिक विद्यालय नंबर एक में अध्यापक के रूप में सेवाएं दे रहीं सुशीला पिछले 24 सालों से उर्दू की खिदमत कर रही हैं। सुशीला बताती हैं कि उर्दू टीचर के रूप में उनकी नियुक्ति वर्ष 1994 में हुई थी और उर्दू बीटीसी एंट्रेंस में उन्होंने जिला टॉप किया था। बचपन से ही उन्हें उर्दू जुबान से एक अजीब सी मोहब्बत रही। सुशीला का कहना है कि जुबान किसी मजहब की मोहताज नहीं होती। जुबानों की मुखालफत करना अफसोसनाक है। धर्म और जातपात से ऊपर उठकर योग्यता को वरीयता दी जानी चाहिए।


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