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एक दूसरे की आवाज से उठती हैं आरती और अजान

रामराज की कल्पना के साथ अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का शुभारंभ हो चुका है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2020 11:22 PM (IST)Updated: Thu, 06 Aug 2020 11:22 PM (IST)
एक दूसरे की आवाज से उठती हैं आरती और अजान
एक दूसरे की आवाज से उठती हैं आरती और अजान

सहारनपुर, जेएनएन। रामराज की कल्पना के साथ अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का शुभारंभ हो चुका है। इसे लेकर तमाम लोगों के दिल में भी खींचतान रही और अदालत में भी लेकिन गंगोह के पीठ बाजार में तो साथ-साथ खड़े मंदिर-मस्जिद सदियों से भाईचारा और सौहार्द की मिसाल बने हैं। यहां न आरती वालों को अजान से द्वेष है और न अजान वालों को आरती से नफरत। भाईचारे की यह भावना देख ऐसा महसूस होता है मानो अजान की आवाज से आरती उठती है और आरती की आवाज से अजान। यह सद्भाव का पैगाम है.. विरासत की तवज्जो है और मजहब के आंगन में भेदभाव की दीवार खड़ी करने वालों के लिए एक बड़ा सबक भी।

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वक्फ बोर्ड की मस्जिद का निर्माण सदियों पहले हुआ बताया जाता है। जबकि पं. कालीचरण शर्मा के नाम से विख्यात काली मंदिर का निर्माण 1962 के आसपास किया गया। इससे पहले यहां स्थित एक चबूतरे पर छड़ी को स्थापित कर इसकी पूजा की जाती थी। देश में हालात कैसे भी रहे हों, यहां के आपसी भाईचारा और सौहार्द को आज तक कोई नहीं तोड़ पाया।

यहां के लोग राम जन्मभूमि आंदोलन में भी शामिल हुए लेकिन आपसी भाईचारा उस वक्त भी कायम रहा। हालांकि कई मौके ऐसे भी आए जब शरारती तत्वों ने फिजा में जहर घोलने की कोशिश की लेकिन दोनों संप्रदाय के अमन पसंद लोगों ने सूझबूझ से हालात खराब होने से बचा लिए। परंपरा के अनुसार आज भी आमने-सामने स्थित मस्जिद और मंदिर में तय समय पर अजान व आरती होती है। अन्य कार्यक्रम भी चलते रहते हैं लेकिन एक-दूसरे से कभी किसी को दिक्कत या आपत्ति नहीं हुई।

पूर्व चेयरमैन नोमान मसूद का कहना है कि गंगोह सूफी संतों की नगरी है। यहां सभी धर्म के लोग मोहब्बत से रहते और एक दूसरे के धार्मिक कार्यक्रमों में पूरा सहयोग करते हैं।

----------------- आपसी सौहार्द बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। भगवान से प्रार्थना है कि यह भाईचारा और सौहार्द हमेशा बना रहे।

-पं. सूर्यकांत शर्मा, मंदिर के मुख्य पुजारी सभी को एक दूसरे की भावनाओं और आस्था का सम्मान करना चाहिए। सबकी इबादत के अपने तौर-तरीके हैं। इसे लेकर आपत्ति या एक-दूसरे पर टिप्पणी करना अनुचित है।

-मुफ्ती मो. उस्मान, मस्जिद के इमाम


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