जंगली जानवरों के खतरे के साये में शिक्षा का मंदिर
हरिओम शर्मा, बेहट विषम प्राकृतिक परिस्थितियों की गोद में जन्मे घाड़ में विकास की आस लग
हरिओम शर्मा, बेहट
विषम प्राकृतिक परिस्थितियों की गोद में जन्मे घाड़ में विकास की आस लगाना ऐसे तो बेमायने ही है। आबादी से दूर निर्जन स्थान व जंगली जानवरों के खतरे के साये में करोड़ों की लागत से बना पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय इंटर कालेज का उदाहरण इसके लिये पर्याप्त है। यहां कमरों में न खिड़की है और ब्लैक बोर्ड के स्थान पर काली पॉलीथिन दीवार से चिपकी है। भवन की दीवारों से सीमेंट झड़ रहा है।
घाड़ क्षेत्र में ब्लाक साढ़ौली कदीम की ग्राम पंचायत हसनपुर नौगांवा क्षेत्र में इसी शिक्षा सत्र से शुरू होने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय इंटर कालेज की दुर्दशा शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े करती है। अनियमितता की बू इस कालेज की स्थापना के लिये स्थान के चयन की प्रक्रिया से ही आती है। शिवालिक वन प्रभाग की तलहटी के गांव रामपुर बड़कला और हसनपुर नौगांवा के बीच निर्जन स्थान पर यह 33 कमरों का भवन करोड़ों की लागत से बनाया गया है। निर्माण में मानकों की अनदेखी की साक्षी इस कालेज भवन की दीवारें ही हैं, जिनसे सीमेंट उखड़ रहा है। निर्माण करने वाली कार्यदायी संस्था ने भवन को शिक्षा विभाग को हैंडओवर तो कर दिया था, लेकिन आज तक भी कमरों में कहीं खिड़की नहीं लगी है। जिसके चलते जंगल की खुली हवा में ही विद्यार्थी बैठने को मजबूर है। कमरों में ब्लैक बोर्ड तक नहीं बनाये गये है। अध्यापकों ने अपने स्तर से दीवारों पर काली पॉलीथिन चिपका रखी है। शौचालय व पेयजल की सुविधा से भी महरूम
सरकार घर-घर शौचालय बनवाने के लिये अभियान चला रही है। लेकिन इस कालेज में पढ़ने वाले बच्चे में खुले में शौच को मजबूर है। क्योंकि यहां बने शौचालय क्षतिग्रस्त अवस्था में है। पेयजल के लिये हर दिन तीन किमी दूर से बच्चे व अध्यापक पानी ढोकर अपनी प्यास बुझाते हैं। ओवर हैड टैंक 7 लगाए गए थे, जिनमें से कई चोरी हो चुके हैं। यही नहीं परिसर में कोई हैंडपंप नहीं है। ट्यूबवेल लगा था, लेकिन उसमें आज तक सबमर्सिबल मोटर नहीं डाली गई। हर समय बना रहता है जंगली जानवरों का भय
घने जंगल से कुछ ही दूरी पर होने व कमरों की खिड़की न होने के कारण विद्यार्थियों व अध्यापकों को जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है। क्योंकि जंगलों से निकल कर गुलदार आदि तक कई किमी दूर तक घुस आते हैं। पिछले दिनों तो तहसील मुख्यालय तक भी गुलदार ने कई दिनों तक भय बनाये रखा था। संपर्क मार्ग न होने के कारण छात्र छोड़ गये कालेज
इस राजकीय इंटर कालेज को ऐसे जंगल में बनाया गया, जहां तक कोई संपर्क मार्ग नहीं जाता है। विद्यार्थियों को जंगलों के रास्ते ही जान पर खेल कर कालेज तक पहुंचना पड़ता है। शिक्षा सत्र शुरू होते ही यहां 150 विद्यार्थियों का पंजीकरण हुआ था। लेकिन जंगली जानवरों के भय व सुविधाओं के अभाव के चलते अभिभावकों ने अपने बच्चों को कालेज भेजना बंद कर दिया है। प्रधानाचार्य सतीश शर्मा ने बताया कि अब 53 छात्र कभी कभी कालेज आते है। विज्ञान वर्ग की मान्यता पर नहीं है अध्यापक नियुक्त
कालेज को विज्ञान वर्ग की मान्यता मिली हुई है। लेकिन रसायन, भौतिक व गणित विषयों में से किसी के भी अध्यापक की नियुक्ति नहीं है। जिसके चलते इस वर्ग में दाखिला लेने वाले छात्रों को शिक्षा की सुविधा नहीं मिलती। कालेज में इन सब असुविधाओं और खतरे के बारे में वह जिला विद्यालय निरीक्षक को कई बार लिखित और मौखिक तौर पर बता चुके हैं, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। इन हालात के चलते शुरू में पंजीकरण कराने वाले छात्रों की संख्या मात्र 53 रह गई है।
सतीश शर्मा, प्रधानाचार्य।