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जीवन में अनुशासन एवं आदर्श ही हमें दिलाएंगें पहचान

बिना पतवार के नाविक के जिस प्रकार एक नौका का भटकना निश्चित है और लक्ष्य प्राप्ति असंभव। ठीक उसी प्रकार मनुष्य का जीवन व्यक्तिगत हो या पारिवारिक अथवा सामाजिक हो या राष्ट्रीय।

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Sep 2021 10:50 PM (IST)Updated: Wed, 15 Sep 2021 10:50 PM (IST)
जीवन में अनुशासन एवं आदर्श ही हमें दिलाएंगें पहचान
जीवन में अनुशासन एवं आदर्श ही हमें दिलाएंगें पहचान

सहारनपुर, जेएनएन। बिना पतवार के नाविक के जिस प्रकार एक नौका का भटकना निश्चित है और लक्ष्य प्राप्ति असंभव। ठीक उसी प्रकार मनुष्य का जीवन व्यक्तिगत हो या पारिवारिक अथवा सामाजिक हो या राष्ट्रीय। यदि आदर्शहीन है और अनुशासित नहीं है तो वह समस्त परिपेक्ष में एक अवरोधक बनकर रह जाता है। संत कबीर दास जी ने कहा है कि

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हित-अनहित पशु पक्षी है जाना।

मानुष तन गुण ज्ञान निधाना।।

स्पष्ट है कि ज्ञान ही मनुष्य को सार्थक बनाता है।

नियम संयम धैर्य के माध्यम से उसे आदर्श और अनुशासन में रहना सिखाता है। बुद्धि से ऊपर उठकर विवेक जागृत करने के कार्य में परिवार और स्कूल कालेज की भूमिका होती है। महान दार्शनिक अरस्तू ने तो परिवार को प्रथम पाठशाला कहा है। माता-पिता और शिक्षक ही वह आधार बिदु है जो किताबी ज्ञान के साथ-साथ बचपन को संस्कारों से पल्लवित व पोषित करते है। संस्कारों में ही आदर्श और अनुशासित जीवन संभव एवं सुरक्षित है।

जिस प्रकार कलम कापी से और स्याही कलम से संबंधित है, उसी प्रकार एक विद्यार्थी अनुशासन से संबंधित है। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है, यदि एक विद्यार्थी पढ़ने में कितना ही अच्छा हो चाहे खेलकूद में नंबर वन हो लेकिन अपने आप में अनुशासन नहीं रखता है तो उसका विद्यार्थी जीवन लगभग अधूरा है। हमें अपने विद्यार्थी जीवन में अनुशासन के साथ रहना चाहिए जिसके अनेक फायदे है। अनुशासन किसी व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग है। इसके बिना कोई भी विद्यार्थी पूर्ण नहीं है। एक विद्यार्थी को अपने शिक्षकों का हमेशा सम्मान करना चाहिए, उनके द्वारा बताई जाने वाली बातों को ध्यान से सुनना चाहिए। उन पर अमल करना चाहिए। कोई भी शिक्षक किसी विद्यार्थी के लिए कभी बुरा नहीं सोचता है। एक विद्यार्थी को हमेशा उनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना चाहिए। विद्यालय में लड़ाई झगड़ों से दूर हटकर हमें सबके साथ मिल जुलकर रहना चाहिए। हमेशा एक दूसरे की सहायता के लिए तैयार रहना चाहिए। विद्यालय में कोई परेशानी होने पर अपने शिक्षकों के साथ उस पर चर्चा करनी चाहिए और साथ मिलकर उसे सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। स्कूल में कई बार छोटे बड़े बच्चों के साथ झगड़े होते रहते है, इसलिए हमें उनसे बचना चाहिए और दूसरों को भी इनके प्रति रोकना चाहिए। यदि अपनी कक्षा में कोई विद्यार्थी पढ़ने में अच्छा नहीं होता है अथवा पढ़ाई में कमजोर रहता है तो हमें उसकी मदद करनी चाहिए। आदर्श एवं अनुशासन सही मायनों में जीवन की आधारशिला है जो विद्यार्थी को उसके अधिकारों के साथ-साथ एवं उसके परिवार के समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का बोध कराती है यदि किसी देश का नायक या सेनापति अनुशासित नहीं है तो जनता के सामने कोई आदर्श प्रस्तुत करने में कभी सफल नहीं हो सकता। भारतीय इतिहास ऐसे नायकों तथा वीरों से भरा पड़ा है जिन्होंने बिना आदर्श छोड़े अनुशासित रहकर ऐसे करिश्मे दिखाएं जिससे दुनिया हतप्रभ रह गई। हमारे देश के वैज्ञानिकों ने पोखरण परमाणु परीक्षण के द्वारा विश्व के शक्तिशाली देशों को दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर कर दिया था, यदि अतीत की ओर देखें तो राजा हरिश्चंद्र का जीवन एक शक्तिशाली राजा होते हुए भी संयम और नियमों से वचनबद्ध एक आदर्श व अनुशासित राजा का जीवन था। नियति के वशीभूत राजा और रंक बनने पर भी उन्होंने शमशान घाट में अपने सिद्धांतों में नियमों का पारिवारिक संबंधों के लिए बलिदान नहीं किया। यह एक अविस्मरणीय में प्रेरणादायक उदाहरण है ऐसे आदर्श और अनुशासित नायकों से भारतीय इतिहास भरा पड़ा है हमें आज उनके जीवन से अनुशासन तथा आदर्श जीवन की प्रेरणा लेने की परम आवश्यकता है।

डा.दिव्य जैन

प्रधानाचार्य, आशा माडर्न स्कूल चंद्रनगर सहारनपुर।


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