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असली रावण जिदा हैं, हर हाल बचाए जाते हैं..

विजय दशमी पर्व के उपलक्ष्य में माटी की सुगंध वाट्सएप समूह के तत्वावधान में आयोजित आनलाइन कवि-सम्मेलन में कवियों ने सामाजिक बुराइयों पर तीखे प्रहार किए। शामली के ओजस्वी कवि प्रीतम सिंह प्रीतम ने वाणी-वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत की।

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 11:03 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 05:08 AM (IST)
असली रावण जिदा हैं, हर हाल बचाए जाते हैं..
असली रावण जिदा हैं, हर हाल बचाए जाते हैं..

सहारनपुर जेएनएन। विजय दशमी पर्व के उपलक्ष्य में माटी की सुगंध वाट्सएप समूह के तत्वावधान में आयोजित आनलाइन कवि-सम्मेलन में कवियों ने सामाजिक बुराइयों पर तीखे प्रहार किए। शामली के ओजस्वी कवि प्रीतम सिंह प्रीतम ने वाणी-वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत की। अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रीय गीतकार डा. जय सिंह आर्य ने अहंकार के दुष्परिणाम पर प्रकाश डालते हुए कहा- ताकत पर लंकेश मे किया था अति गुरुर, राम-लखन ने कर दिया, उसको चकनाचूर। मुख्य अतिथि के रूप में गीतकार विनोद भृंग ने बुराई से बचने की सीख देते हुए यह दोहा पढ़ा, जिसे भरपूर सराहना मिली, बुरे काम का हो नहीं, सकता शुभ परिणाम। दशकंधर के अंत पर, यह बोले श्रीराम। पानीपत के कवि केसर शर्मा कमल ने रावण के अंतस की पीड़ा से समाज को आइना दिखाते हुए कहा-मेरे गम को तो यूं ही बदनाम करते हैं, यूं तो हर पाप सरेआम करते हैं। कार्यक्रम संयोजक असंध, करनाल के भारत भूषण वर्मा ने राम को जगत-नियंता बताते हुए कहा-श्रीहरि विष्णु के राम अवतारी हैं. राम ही की कृपा से सृष्टि सारी है।

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संचालन कर रहे अलीगढ़ के प्रसिद्ध ओजस्वी कवि संजू सूर्यम ठाकुर ने राम के प्रति आस्था को भी देशभक्ति से जोड़ते हुए कहा-कभी भी शान अपने देश की घटने नहीं देंगे, सिपाही देश के कदम हटने नहीं देंगे/सजाया भाल पर तिरंगा कफन यारों, कसम श्रीराम की हिदुस्तान को बंटने नहीं देंगे।

पटना (बिहार) से कवयित्री डा. पंकजवासिनी की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही-सीता मुक्ति का था यह युद्ध, सात्विक राम थे अति क्रुद्ध. देख रावण का मन हुआ सशंक, दुर्गा लिए रावण को अंक।

दिल्ली से प्रसिद्ध कवि श्रीकृष्ण निर्मल ने रावण-दहन को लेकर समाज पर तंज कसते हुए कहा-रावण के पुतले भारत में हर साल जलाये जाते हैं, जो असली रावण जिदा हैं, हर हाल बचाए जाते हैं।

गुवाहाटी (असम) से कवयित्री दीपिका सुतोदिया ने कुछ यूं कहा- हंसाती हैं आंखें, रुलाती हैं आंखें, श्रीराम का दर्श कराती हैं आंखें। इनके अतिरिक्त हरिनाथ शुक्ला हरि, हरगोबिद झाम्ब, संतोष त्रिपाठी, ऊषा तिवारी कैलाशनाथ शुक्ला, सतीश अकेला,तेजवीर सिंह त्यागी, रमेश तिवारी आदि रचनाकारों की सक्रिय भागीदारी रही।


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