भाईचारे की मिसाल है श्री मंकेश्वर महादेव मंदिर
ऐतिहासिक नगरी देवबंद क्षेत्र स्थित श्री मंकेश्वर महादेव मंदिर मानकी व श्री सिद्धपीठ भगवान नागेश्वर मंदिर घ्याना क्षेत्र ही नहीं दूर दराज के लाखों लोगों की आस्था का प्राचीन केंद्र हैं
सहारनपुर, जेएनएन: ऐतिहासिक नगरी देवबंद क्षेत्र स्थित श्री मंकेश्वर महादेव मंदिर मानकी व श्री सिद्धपीठ भगवान नागेश्वर मंदिर घ्याना क्षेत्र ही नहीं दूर-दराज के लाखों लोगों की आस्था का प्राचीन केंद्र हैं। यहां लोग अपनी-अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए खींचे चले आते हैं।
गांव मानकी स्थित श्री मंकेश्वर महादेव मंदिर का यूं तो कोई प्रामाणिक इतिहास किसी ग्रंथ या शास्त्र में उपलब्ध नहीं है, परंतु चली आ रही परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर शिव भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है, वहीं सामाजिक सदभाव की मिसाल है। बताते हैं कि मानकी गांव के एक मुसलमान गाड़ा परिवार ने खेत में हल चलाते समय एक काले पत्थर को ऊपर आते देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गया, और उस पर मिट्टी ढांककर घर चला आया। उसके आश्चर्य का उस समय कोई ठिकाना नहीं रहा, जब उसने प्रात: काल खेत में आकर देखा कि जिस काले पत्थर को वह मिट्टी में दबाकर गया था वह फिर से स्वत: ही ऊपर आ गया है। बात फैलती गई और किसी चमत्कार अथवा अनहोनी घटना के भय से उस किसान ने वह खेत शिव मंदिर के लिए दान करने की पेशकश की। कहते हैं कि उसी रात देवबंद के एक शिव भक्त व्यापारी को स्वप्न में स्वयं भगवान शिव ने अपने प्रकट होने की बात कहकर वहां मंदिर बनवाने की प्रेरणा दी और इसी आधार पर वहां हिदू-मुसलमानों ने आपसी सहमति जताकर मंदिर का निर्माण कराया। मण्केश्वर महादेव के इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करके यूं तो प्रतिदिन ही भक्त अपनी भक्ति भावना को तृप्त करते हैं, कितु फागुन की शिवरात्रि को इस शिवलिग के पूजन का विशेष महत्व है।
ध्याना गांव का श्री सिद्धपीठ भगवान नागेश्वर मंदिर भी है अस्था का केंद्र
गांव ध्याना स्थित लाखों लोगों की आस्था के केंद्र श्री सिद्धपीठ भगवान नागेश्वर मंदिर का निर्माण यूं तो करीब दो दशक पूर्व गांव के पूर्व प्रधान एवं ग्रामीणों के सहयोग से किया गया था, लेकिन इसके अंदर स्थित शिवलिग के बारे में मान्यता है कि वह सैकड़ों वर्षों से यहां एक बरगद के पेड़ में स्थित था, जिसकी गांव वाले पूजा करते चले आ रहे हैं। गांव के वृद्ध लोग बताते हैं कि बात प्रचलित है कि पुराने समय में यहां ऊंचाई पर एक बस्ती थी जो किसी कारण पलट कर तबाह हो गई थी, ऐसा क्यों हुआ यह तो कोई नहीं जानता लेकिन उसके बाद यहां निचले भाग में गांव बसा दिया गया जिसका नाम ध्याना रखा गया और उसी समय से गांव में स्थित बरगद के पेड़ के अंदर रखे शिवलिग की गांव के लोग पूजा करते चले आ रहे हैं।
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