आम के हरे पेड़ों पर धड़ल्ले से चल रहा ठेकेदारों का कुल्हाड़ा
क्षेत्र में आम के बागों पर ठेकेदारों का कुल्हाड़ा धड़ल्ले से चल रहा है। यही नहीं आरा मशीनों पर भी आम के हरे पेड़ों की यह लकड़ी बेरोकटोक बेची जा रही है। इस धंधे में वन विभाग की मिलीभगत हर किसी की जुबान पर है। वन एवं पुलिस विभाग उन प्रतिबंधित प्रजातियों जिनमें आम भी शामिल है तब पकड़ता है जब बिना उनकी जानकारी के कटान हुआ हो या बाहर से लकड़ी लाई जा रही हो।
सहारनपुर, जेएनएन। क्षेत्र में आम के बागों पर ठेकेदारों का कुल्हाड़ा धड़ल्ले से चल रहा है। यही नहीं आरा मशीनों पर भी आम के हरे पेड़ों की यह लकड़ी बेरोकटोक बेची जा रही है। इस धंधे में वन विभाग की मिलीभगत हर किसी की जुबान पर है। वन एवं पुलिस विभाग उन प्रतिबंधित प्रजातियों, जिनमें आम भी शामिल है, तब पकड़ता है जब बिना उनकी जानकारी के कटान हुआ हो या बाहर से लकड़ी लाई जा रही हो। शनिवार की रात कोतवाली पुलिस ने ऐसी ही आम के हरे पेड़ों की लकड़ी से लदी तीन ट्रैक्टर-ट्राली पकड़कर वन विभाग को सौंपी। विभाग ने मुकदमा दर्ज कर लिया है।
गौरतलब है कि यह क्षेत्र फलपट्टी के रूप में प्रदेश सरकार द्वारा अधिसूचित है। यहां सरकार भी बागवानी को बढ़ाने के लिये विभागीय योजना के तहत प्रोत्साहन देती है। लेकिन लकड़ी के ठेकेदारों का एक बड़ा रैकेट क्षेत्र की हरियाली को पलीता लगाने में लगा हुआ है। इस धंधे में पुलिस एवं वन विभाग की मिली भगत जगजाहिर है। वरना आम के हरे भरे बागों पर आरा चल ही नहीं सकता है। इन प्रतिबंधित प्रजातियों के उन्हीं पेड़ों को अनुमति लेकर काटा जा सकता है, जो सूख चुके हो और फल न लगते हो लेकिन इसी की आड़ में हरे पेड़ों पर ठेकेदारों का आरा चलता है। यही नहीं पांच पेड़ों की अनुमति लेकर 50 पेड़ काटने का धंधा भी यही रैकेट करता है। इस धंधे में क्षेत्र की आरा मशीनों का भी बड़ा रोल है, क्योंकि आम के यह हरे पेड़ कटकर सीधे आरा मशीनों पर आते हैं और कुछ ही घंटों में इस लकड़ी की शक्ल बदल दी जाती है। शनिवार की रात कोतवाली पुलिस ने मोहंड रेंज और फतेहपुर थाना क्षेत्र से आ रही आम के हरे पेड़ों की लकड़ी से लदी तीन ट्रैक्टर-ट्रालियां कलसिया के पास से पकड़ ली, जो बेहट में आरा मशीन पर लायी जा रही थी। पुलिस ने इन्हें बेहट वन रेंज कार्यालय पहुंचा दिया। वन क्षेत्राधिकारी प्रवेश कुमार ने बताया कि इस मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। उनका कहना था कि ट्रैक्टर चालकों ने जो अनुमति पत्र दिखाया है, उसमें दर्ज पेड़ों की लकड़ी के साइज पकड़ी गयी लकड़ी से मेल नहीं खाते हैं, जिससे स्पष्ट है कि यह लकड़ी इस अनुमति पत्र पर नहीं काटी गयी है।