याद है आजाद भारत की वह सुबह जब लहरा रहा था तिरंगा
स्वतंत्रता दिवस का सूर्योदय कई वयोवृद्धों को प्रथम स्वतंत्रता दिवस की वह स्मृतियां ताजा करा देता है। आजादी की पहली किरण अब तक उनके जेहन में जवान है। जिले के कई बुजुर्गों की ऐसी ही कहानियां हैं।
सहारनपुर जेएनएन। 'चलो फिर आज वह नजारा याद कर लें, शहीदों के दिल में थी वो ज्वाला याद कर लें।
जिसमें बहकर आजादी पहुंची थी किनारे पे, देशभक्तों के खून की वो धारा याद कर लें।'
स्वतंत्रता दिवस का सूर्योदय कई वयोवृद्धों को प्रथम स्वतंत्रता दिवस की वह स्मृतियां ताजा करा देता है। आजादी की पहली किरण अब तक उनके जेहन में जवान है। जिले के कई बुजुर्गों की ऐसी ही कहानियां हैं। दैनिक जागरण ने इन सौभाग्यशाली वयोवृद्धों से वार्ता कर जाना कि आखिर कैसी थी आजाद भारत की पहली सुबह।
नानौता: नगर निवासी 84 वर्ष हरिकिशन ने बताया कि 15 अगस्त 1947 की सुबह ही आजादी का समाचार मिला। हमने एक नई सुबह आजादी की सांस ली, लेकिन साथ में गुलामी के जख्मों का अहसास भी था। यह समझ नहीं आ रहा था कि जिस आजादी को पाने के लिए हिदू और मुसलमान दोनों ने मिलकर संघर्ष किया है, आज वह कैसे अलग अलग हो गए। हमारा ननौता नगर तब पाकिस्तान बंटवारे में हुए दंगों से बहुत दूर था, यहां हंसी खुशी का माहौल था। हरि किशन सहित, मोहम्मद हुसैन बुंदू व शाहिदा बेगम पत्नी स्व. रफीक अहमद का कहना है कि हिदुस्तान में सभी की आस्था थी। हमें अच्छी तरह याद है कि हम सभी ने बतासे और गुड एक दूसरे को खिलाकर आजादी का जश्न मनाया। हिदू मुस्लिम सभी ने एक दूसरे को आजादी बधाई दी गई।
बड़गांव: आजादी के लिए हाथों में कभी झंडे तो कभी डंडे लेकर छिपते-छिपाते बैठक करते थे चतरसिंह रूहेला। अब 107 वर्षीय चतर सिंह रूहेला हालांकि सही तरीके बोल नहीं पाते हैं, लेकिन संभलकर बोलते हुए उन्होंने बताया कि गली-गली झंडे व डंडे लेकर लोगों को आजादी के लिए जगाते थे। अंग्रेजों के खिलाफ अपनी एकजुटता के लिए कई बार देवबंद व सहारनपुर की बैठक में पैदल चलकर पहुंचे। वहां पकडे़ जाने पर जेल भी गए।
अंबेहटा: कस्बे के सबसे उम्र दराज बुजुर्ग अब्दुल हमीद आजादी की पहली किरण के गवाह हैं। 105 वर्षीय अब्दुल हमीद आज भी बागान में चौकीदारी करते हैं। उन्होंने बताया कि हिन्दुस्तान में अंग्रेजी सरकार का दौर बहुत बुरा रहा। उन्होंने अपनी आंखों से पेड़ों पर दस-दस लाशों को लटकते देखा। बिना किसी जुर्म के भी गोरे सिपाही हिन्दुस्तानियों को कोड़े मारते थे। नगर में बड़े पिलखन के पेड़ थे (कुछ पेड़ आज भी मौजूद है), जिनका अंग्रेज फांसी पर लटकाने में प्रयोग करते थे। घोड़े पर सवार होकर पगड़ीधारी सिपाही नगर में भ्रमण करते रहते थे। हिन्दुस्तान के आजाद होने के बाद 13 दिन तक गीत गाए गए थे।
महंगी: 14 अगस्त 1947 की आधी रात को ही आजाद भारत का एलान हो चुका था। बस इंतजार था तो आजादी की पहली सुबह के जश्न का। वह रात भी बेहद कठिन थी। क्योंकि खुशी में उस 14 अगस्त की रात कोई नींद भर सो भी नहीं पाया। सुबह हुई और रेडियो पर आजाद भारत की घोषणा होते ही जश्न का आलम फैल गया। यह निराली सुबह 15 अगस्त सन 1947 की थी। गंगोह में आजादी से पहले जन्मे 97 वर्षीय लाला कांता प्रसाद आज भी उस सुबह को याद कर बताते हैं कि अंग्रेजों की हकूमत के चलते बेहद शोषण था। विकास के नाम पर कुछ नहीं था। 1947 में आजादी मिलने पर लोगों की आखों में खुशी के आंसू थे।
चिलकाना : सुल्तानपुर निवासी पंडित जयनारायण शर्मा ने कहा कि हमने देश को आजादी मिलने का जो सपना देखा था वह आज साकार होता नजर आ रहा है। राष्ट्रपति अवार्ड से नवाजे गये सेवानिवृत्त ग्राम पंचायत सेवक 90 वर्षीय पंडित जयनारायण शर्मा का कहना है 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ था तब हमने सोचा था कि अब देश में हमारी सरकार होंगी, हमारे कानून होंगे। अब लोगों को आजादी का सही मतलब समझ आने लगा है।
इस्लामनगर: इस्लाम नगर के नरसिंह सैनी आजादी मिलने के समय 8 साल के थे, उन्हें आज भी 15 अगस्त 1947 का वह दिन याद है जिस दिन भारत आजाद हुआ था। नरसिंह सैनी ने बताया कि 15 अगस्त 1947 को पूरे गांव में तिरंगे लेकर यात्रा निकाली गई थी और हर कोई जश्न मना रहा था। नरसिंह सैनी का कहना है कि आजादी मिलने के बाद आज देश में बहुत तरक्की की है।