आत्मसंयम से ही काबू होती हैं बुरी आदतें
मानव जीवन में संयमशीलता की आवश्यकता को सभी विचारशील व्यक्तियों ने स्वीकार किया है। सांसारिक व्यवहार एवं संबंधों को बनाए रखने के लिए आत्मसंयम की अत्यंत आवश्यकता है।
सहारनपुर, जेएनएन। मानव जीवन में संयमशीलता की आवश्यकता को सभी विचारशील व्यक्तियों ने स्वीकार किया है। सांसारिक व्यवहार एवं संबंधों को बनाए रखने के लिए आत्मसंयम की अत्यंत आवश्यकता है। संसार के प्रत्येक क्षेत्र में जीवन के प्रत्येक पहलू पर सफलता, विकास एवं उत्थान की ओर अग्रसर होने के लिए संयम की उपयोगिता है। विश्व के महान पुरुषों की जीवनियों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि उन्होंने जीवन में जो भी सफलता, उन्नति, श्रेय, महानता, आत्म कल्याण आदि की प्राप्ति की, उनके कारणों में संयमशीलता की प्रधानता है। संयम के पथ पर अग्रसर होकर ही उन्होंने अपने जीवन को महान बनाया। अपनी बुरी आदतों पर काबू पाना ही आत्मसंयम के पथ पर अग्रसर होना है।
अपने विकारों पर नियंत्रण करने तथा हानिकारक आदतों से छुटकारा पाने के लिए जो चेष्टा की जाती है उसी का नाम आत्मसंयम है। किन्तु यह कार्य इतना सरल नहीं है जितना कि केवल इसके अर्थ को समझ लेना, जब इसे क्रिया क्षेत्र में अथवा साधना क्षेत्र में उतारा जाता है तो संयम शीलता का पथ बड़ा कठिन जान पड़ता है। अपनी एक छोटी सी बुरी आदत अथवा मानसिक विकार पर नियंत्रण कर लेना कितना मुश्किल होता है यह लोग अच्छी तरह जानते है।
आत्म संयम के पथिकों को प्रतिदिन अपना आत्म निरीक्षण करते रहना अत्यावश्यक है। अपने विचारों तथा कृत्यों के बारे में सदैव सूक्ष्म निरीक्षण करते रहना चाहिए। विचारों तथा कार्यों का परस्पर घनिष्ठ संबंध होता है, जैसे विचार होंगे वे ही क्रिया रूप में अवश्य परिणत होंगे इसलिए बुरी विचारधारा से सदैव बचना चाहिए, साथ ही विचारों से किये जाने वाले कृत्यों से दूर रहना आवश्यक है। आत्म निरीक्षण के लिए प्रात: उठते समय एवं सायंकाल को सोने के पूर्व अपने दिन भर के कार्यों एवं विचारों का निरीक्षण करना चाहिए।
आत्म संयम के लिए अपनी बुराइयों को मुक्त कंठ से स्वीकार करना होगा। धैर्य और साहस के साथ इस ओर निरन्तर प्रयत्न करने पर अवश्य ही संयम साधना पूर्ण होती है और मनुष्य अपने लक्ष्य में सफल हो जाता है। जल्दी बाजी अथवा आधारित से लक्ष्य तक पहुंचना प्राय: असंभव ही होता है।
शकील अहमद प्रधानाचार्य एल्पाईन पब्लिक स्कूल, सहारनपुर