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मेला म्हाड़ी और गुघाल के आयोजन पर ब्रेक

कोरोना संकट के कारण इस बार मेला म्हाड़ी और गुघाल के आयोजन पर ब्रेक लग गया है। हरियाली तीज के दिन नेजा (सरदार छड़ी) नहीं उठाया गया। घर पर विधि-विधान से नेजे की पूजा की गई। ऐतिहासिक मेले में दूर-दूर से यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु पहुंचते थे। श्री गोगा म्हाड़ी सुधार सभा का कहना है कि मेले के आयोजन के बारे में जिला प्रशासन की गाइडलाइन का अनुपालन कराया जायेगा।

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 10:46 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 06:09 AM (IST)
मेला म्हाड़ी और गुघाल के आयोजन पर ब्रेक
मेला म्हाड़ी और गुघाल के आयोजन पर ब्रेक

सहारनपुर, जेएनएन। कोरोना संकट के कारण इस बार मेला म्हाड़ी और गुघाल के आयोजन पर ब्रेक लग गया है। हरियाली तीज के दिन नेजा (सरदार छड़ी) नहीं उठाया गया। घर पर विधि-विधान से नेजे की पूजा की गई। ऐतिहासिक मेले में दूर-दूर से यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु पहुंचते थे। श्री गोगा म्हाड़ी सुधार सभा का कहना है कि मेले के आयोजन के बारे में जिला प्रशासन की गाइडलाइन का अनुपालन कराया जायेगा।

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राजस्थान के बाद सबसे बड़ा मेला गुघाल सहारनपुर में आयोजित किया जाता है। गंगोह रोड स्थित जाहरवीर गोगा जी की म्हाड़ी पर तीन दिन तक दूर-दूर से पहुंचकर लाखों श्रद्धालु शीश नवाकर मन्नते मांगते हैं। म्हाड़ी मेले के बाद मेला गुघाल एक पखवाड़े तक चलता है। पिछले कई सौ वर्षो से यह परंपरा कायम है। ऐसी मान्यता है कि यहां निशान और प्रसाद चढ़ाने से हर कामना पूरी होती है, इस बार कोरोना संकट के कारण मेले के आयोजन पर ब्रेक की स्थिति है। हर वर्ष हरियाली तीज के दिन पुरानी मंडी गणपत सराय से नेजा की मालकिन त्रिशला देवी के यहां से पूजा के बाद नेजा उठाया जाता है, इसके एक घंटा वहां रखने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों से होते हुए यमुना नदी पर पहुंचाया जाता है। वहां से गाड़ी से राजस्थान स्थित बागड़ ले जाते हैं और इसके बाद ही मेला आरंभ होता है।

26 छड़ियों की होती हैं परिक्रमा

मेला गुघाल के शुरू होने के दिन पुरानी मंडी से सरदार छड़ी के साथ ही 26 छड़ियों की नगर परिक्रमा कराते हुए म्हाड़ी स्थल तक बैंडबाजों के साथ धूमधाम से लाया जाता है। म्हाड़ी पर कढ़ी-चावल के भंडारे चलते हैं। आसपास के गांवों से हजारों लोग गंगोह रोड पर प्रसाद की दुकानें लगाकर अपनी रोजी कमाते हैं। सी-13

गोगा म्हाड़ी स्थल के सेवादार अनिल प्रकाश बताते है कि अंग्रेजी शासन के दौरान एक अफसर ने यहां मेले पर प्रतिबंध लगा दिया था, और इसके बाद अफसर के यहां बड़ी संख्या मे सांप निकल आए थे। बाद में अफसर ने मेले के आदेश दिए और तब से यहां पूरी भव्यता के साथ हर वर्ष मेला भर रहा है। इस घटना को वह 80-90 वर्ष पुरानी बताते हैं। परिवार के बड़े-बुजुर्गों से उन्होंने इस बारे में सुना है। इस बार कोरोना महामारी के कारण मेला नहीं लग रहा है, जो सभी के हित में है। जिला प्रशासन की गाइडलाइन का पूरी तरह से पालन किया जायेगा। सी-14

गोगा म्हाड़ी स्थल के सेवादार बब्बी भगत ने बताया कि कमली भगत ने गोगा महाराज जी को स्वयं प्रतीक दिया था। हरियाली तीज से ही नेजा घर से चलकर भैरो मंदिर होता हुआ गांव-गांव जाकर बागड़ जाता है। एक सप्ताह बाद यमुना पूजन किया जाता है। मेले को लेकर इस बार नेजा नहीं उठाया गया। नेजा की मालकिन त्रिशला देवी के यहां ही नेजा की पूजा-अर्चना की गई। इनका कहना है-

श्री गोगा म्हाड़ी सुधार सभा के महामंत्री ओम प्रकाश सैनी ने बताया कि सभा का एक प्रतिनिधिमंडल मेला गुघाल मेले के लिए जिलाधिकारी से मिला था। कोरोना के कारण डीएम द्वारा मेले को प्रतिबंधित किया गया है। इस बार घर-घर छड़ियां नही जाएंगी।


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