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सीवर का पानी रोके बगैर कैसे पखारेंगे पांवधोई के पांव

सी13 से 15- सीवर नालों पर रोक के बिना कैसे होगा पवित्र पांवधोई का उद्धार नदी के सुधार व सौन्दर्यकरण पर किए जा रहे करोड़ों खर्च जागरण संवाददाता सहारनपुर सहारनपुर की पवित्र पांवधोई नदी को बचाने की कवायद एक बार फिर से जोर-शोर से चल रही है। नदी के उदगम स्थल से लेकर बाबा लालदास के बाड़े तक नदी की की धारा को उज्जवल बनाने के लिए जिला व मंडल प्रशासन के अलावा नगर निगम सहित कई विभाग दिनरात एक किए है।इसके बावजूद नदी में गिरने वाले नालों व सीवर पर रोक नहीं लग पाने के कारण नदी की धारा कैसे पवित्र हो पायेगी यह बडा सवाल बनता जा रहा है। बता दे कि पांवधोई नदी को बचाने की योजना पर कार्य करीब 27 वर्षों से चल रहा है। एनजीओं से लेकर प्रशासन तक हर वर्ष नदी को बचाने का बीड़ा उठाता रहा है कुछ बदलाव नजर भी आता है लेकिन चंद रोज बाद हालात फिर जस के तस हो जाते रहे है। करीब

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 May 2019 10:55 PM (IST)Updated: Fri, 17 May 2019 06:28 AM (IST)
सीवर का पानी रोके बगैर कैसे पखारेंगे पांवधोई के पांव
सीवर का पानी रोके बगैर कैसे पखारेंगे पांवधोई के पांव

सहारनपुर : सहारनपुर की पवित्र पांवधोई नदी को बचाने की कवायद एक बार फिर से जोर-शोर से शुरू हो गई है। नदी के उद्गम स्थल से लेकर बाबा लालदास के बाड़े तक नदी की धारा को स्वच्छ बनाने के लिए जिला, मंडल प्रशासन, नगर निगम सहित कई विभाग दिनरात एक किए हैं। इस पूरी कवायद के बीच नदियों में गिर रहे नालों का सवाल आम आदमी को परेशान किए हुए है। दरअसल नदी में गिरने वाले नालों व सीवर पर रोक नहीं लगाई गई है। इसके बगैर यह पूरी कवायद कठघरे में है।

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पांवधोई नदी को बचाने की योजना पर कार्य करीब 27 वर्षों से चल रहा है। एनजीओ से लेकर प्रशासन तक हर वर्ष नदी को बचाने का बीड़ा उठाता रहा है, कुछ बदलाव नजर भी आया, लेकिन चंद रोज बाद हालात फिर जस के तस हो गए। करीब 8 वर्ष पूर्व तत्कालिक कमिश्नर आरपी शुक्ल ने तो शंकलापुरी स्थित नदी के उद्गम स्थल से लेकर घंटाघर के निकट स्थित ढमोला नदी के संगम तक पांवधोई किनारे पर न केवल अनेक घाटों का निर्माण कराया, बल्कि करीब 5 हजार ट्रक सिल्ट निकलवाई। नदी की सफाई कराने के साथ ही नदी के दोनों किनारों पर जाल लगवाए। यहां पर केवट लीला भी शुरू कराई गई, यही नहीं आइआइटी रुड़की के वैज्ञानिकों को बुलाकर नदी की जलस्तर बढ़ाने की योजना पर कार्य शुरू कराने के अलावा नदी में गिरने वाले नालों व सीवर पर सख्ती से रोक लगाने के साथ ही कार्रवाई भी कराई थी। अब फिर नदी बचाने की योजना पर कार्य शुरू हुआ है। सिचाई विभाग को नगर का पानी नदी छोड़ जलस्तर बढ़ाने का जिम्मा सौंपा है। नदी के उद्धार के लिए एक बार फिर से डीएम की अध्यक्षता में पांवधोई बचाव समिति को सक्रिय किया गया है। साथ ही 4,09,493 रुपए का बजट भी रखा गया है। जल उत्सव कार्यक्रम आयोजन की तैयारी जोरों पर है, ऐसे में जब तक नदी में गिरने वाले नालों व सीवर पर रोक नहीं लगती नदी किस प्रकार साफ हो पायेगी यह अपने आप में सवाल है?

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बनाये जा रहे चेक डेम व तटबंध

पांवधोई नदी को बचाने के लिए संकलापुरी से लेकर बाबा लालदास के बाड़े तक तटबंध बनाने का कार्य चल रहा है। यही नहीं जलस्तर बढ़ाने को चेक डेम बनाने की योजना है। इसके बावजूद नदी उद्गम स्थल से लेकर बाड़े तक अनेक कालोनियों के नालों की टेपिग कराने के बावजूद सीवर व गंदा पानी नदी में गिर रहा है। नाजिमपुरा, वाल्मीकि कालोनी भगवती कालोनी तथा सरदार कालोनी सहित अनेक नवविकसित कालोनियों व संकलापुरी गांव का पानी नदी में गिर रहा है। हालांकि प्रशासन की प्रथम चरण में बाबा लालदास के बाड़े के निकट तक तटबंध बनाने की योजना है। बाद में स्मार्ट सिटी योजना के तहत नदी का सुधार कराया जाना है। यह स्थिति तब है, जबकि सपा सरकार के दौरान नदी में गिरने वाले सीवर व नालों पर रोक को करीब 35 करोड़ के प्रोजेक्ट को शासन द्वारा स्वीकृति प्रदान करने के साथ ही पहली किश्त भी जारी कर दी थी, योजना का क्रियान्वयन कहां किया गया, इसकी जानकारी किसी को नहीं है।

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पूर्व में हो चुके अनेक कार्यक्रम

प्रशासन ने अब पांवधोई तट पर 28 मई को जल उत्सव कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है। इससे करीब 10 वर्ष पूर्व यहीं बैसाखी मेले के पुन: आयोजन की प्रक्रिया तत्कालिक कमिश्नर से शुरू कराई थी। ये अलग बात है कि वर्ष 2019 में मेले का आयोजन नहीं हो पाया, जबकि 2018 में अनेक बड़े संत महात्मा, महामंडलेश्वर, पदमश्री सरकार के मंत्रियों ने कई कार्यक्रमों के दौरान हजारों बच्चों व लोगों को नदी बचाने का संकल्प दिलाया था। दीपावली पर दीपदान जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। इसके बावजूद नदी की स्थिति में कोई सुधार देखने को नहीं मिला है। हर बार प्रशासन ही नदी सुधार को कदम उठाता रहा है, जबकि जनसहभागिता का हमेशा अभाव रहा है। यही कारण है कि नदीं स्वच्छ नहीं हो पा रही है। देखना अब यह कि नदी बचाने की मुहिम इस बार क्या रंग लाती है।


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